छतरपुर

जटाओं की तरह बहती जलधारा से पड़ा जटाशंकर नाम

जिले में विंध्य पर्वत श्रृंखला पर बसा जटाशंकर धाम धार्मिक के साथ ही प्राकृतिक दृष्टि से अद्भुत है। चारों ओर पर्वतों से घिरा जटाशंकर धाम भगवान शंकर के स्वयंभू प्राकृतिक उद्भव के रूप में प्रकट होने से पहचान में आया है। जटाशंकर धाम की ख्याति प्राकृतिक बनावट और पहाडिय़ों, कंदराओं व जड़ीबूटियों के मध्य से होकर आ रहे पानी में विशेष गुणों के कारण बढ़ी है।

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Jul 16, 2024
जटाशंकर में बारिश की धारा

छतरपुर. जिले में विंध्य पर्वत श्रृंखला पर बसा जटाशंकर धाम धार्मिक के साथ ही प्राकृतिक दृष्टि से अद्भुत है। चारों ओर पर्वतों से घिरा जटाशंकर धाम भगवान शंकर के स्वयंभू प्राकृतिक उद्भव के रूप में प्रकट होने से पहचान में आया है। जटाशंकर धाम की ख्याति प्राकृतिक बनावट और पहाडिय़ों, कंदराओं व जड़ीबूटियों के मध्य से होकर आ रहे पानी में विशेष गुणों के कारण बढ़ी है। शिव लिंग के पास मौजूद दो प्राकृतिक कुंडों में हमेशा ठंडे और गर्म रहने वाले पानी के स्नान से चर्म रोग दूरे होने से जटाशंकर की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है। जटाशंकर धाम में अमावस्या, पूर्णमासी और सोमवार को बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि दूर दूर से श्रद्घालु आते हैं। महाशिवरिात्र पर्व के दौरान शिव पार्वती विवाह महोत्सव बेहद आकर्षण का केन्द्र होता है। पहाड़ों की गोद में बसे जटाशंकर धाम को हाल ही में पर्यटन विभाग से जोड़ा गया है।

संताप दूर करने ध्यान मग्न हुए महादेव


जटाशंकर धाम पर लगे शिलालेख के मुताबिक प्राचीन स्थल होने के प्रमाणिक दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन लोगों की मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जरा दैत्य को मारने के बाद भगवान शिव यहां आकर ध्सान मग्न हो गए थे। शंकर जी को जो संताप था उसकी तृप्ति के लिए भगवान शंकर यहां आकर विराजे और यह जटाशंकर नाम से प्रसिद्घ होकर पावन तीर्थ बना। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए विध्य पर्वत की इन्ही कंदराओं में आकर तप किया था। तब भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को दर्शन दिए।

चरवाहे ने खोजा स्थान


जटाशंकर ट्रस्ट के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल का कहना है कि मान्यता है कि एक चरवाहे को कुष्ठरोग था। उसकी बकरियां जंगल, पहाड़ उतरकर गुम हो गई, चरवाहा उन्हें तलाशते हुए इस स्थान पर पहुंचा। यहां गुफा में झाडिय़ों के बीच एक पिंडी थी और पास में ही शीतल जल का झरना बह रहा था। चरवाहे ने पानी पीकर अपनी प्यास शांत की इसके बाद इसी जल में स्नान किया जिससे उसे चमत्कारिक लाभ हुआ और कुष्ठरोग दूर हो गया। चरवाहे ने गुफा की साफ सफाई की और शिव पिंडी को जल चढ़ाया, इसके बाद वह नियमित रूप से यहां आकर स्नान के बाद जल अर्पण करने लगा। जब यह खबर क्षेत्र में फैली तो भगवान शिव की महिमा और जल के गुणों को प्रसिद्घि मिली।

सेवा कार्य भी कर रहा जटाशंकर ट्रस्ट


जटाशंकर धाम की गतिविधियों के संचालन के लिए जटाशंकर ट्रस्ट बनाया गया है। ट्रस्ट के माध्यम से सेवा कार्य भी किए जा रहे हैं। धाम आने वाले श्रद्धालुओं को 14 जनवरी 2016 से बम बम भोले भंडारा नाम की रसोई से 30 रुपए में रोजाना भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। आम दिनों में 150 से 200 लोग और सोमवार, अमावस्या, पूर्णिमा के दिन 500 श्रद्धालु भंडारा में भोजन करते हैं। इसके अलावा ट्रस्ट ने 7 मार्च 2016 को शिवरात्रि के दिन वस्त्र बैंक शुरु किया, जहां लोग अपने पुराने कपड़े भेंट करते है, जिन्हें कोई भी जरूरतमंद निशुल्क प्राप्त करता है। ट्रस्ट हरियाली अमावस्या पर प्रसाद के साथ पौधा वितरण भी करता है। इसके साथ ही जन्मदिन, सालगिरह और पुण्यतिथि के अवसर पर प्रसाद चढ़ाने आने वालों को भी पौधा भेंट किया जाता है। धाम में ठहरने के लिए निशुल्क धर्मशालाओं भी संचालित है। वहीं सार्वजनिक आयोजन शादी, अनुष्ठान आदि के लिए कुछ शुल्क के साथ धर्मशाला उपलब्ध कराई जाती है।

Published on:
16 Jul 2024 11:02 am
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