चित्तौड़गढ़

राजस्थान के फेमस इस्कॉन मंदिर में 15 दिन तक भगवान को करेंगे ‘क्वारंटीन’, भक्तों को नहीं होंगे दर्शन

Iskcon Temple Lord Jagannath Quarantine : भगवान जगन्नाथ स्नान करने के बाद अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा सहित बीमार होंगे। इसे भगवान की ’ज्वर लीला’ कहा जाता है।

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Iskcon Temple : भगवान जगन्नाथ स्नान करने के बाद अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा सहित बीमार होंगे। इसे भगवान की ’ज्वर लीला’ कहा जाता है। इसके बाद वे पंद्रह दिन तक एकांतवास (क्वारंटीन) में रहेंगे। इस काल को अनासर काल कहा जाता है। दरअसल, शहर के मीरा नगर स्थित इस्कॉन मंदिर में भगवान जगन्नाथ की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए ज्वर लीला की जाएगी। इसमें 22 जून को ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा से भगवान जगन्नाथ बीमार होंगे।

इसके बाद वे विश्राम मुद्रा में आ जाएंगे। इस दौरान भक्तों के लिए पट बंद रहेंगे। फिर 5 जुलाई को आषाढ़ कृष्ण अमावस्या पर भगवान भाई-बहन सहित स्वस्थ होकर भक्तों को दर्शन देने लौटेंगे। मान्यता है कि स्नान यात्रा महोत्सव के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं। इस दौरान अमावस्या तक वे अस्वस्थ रहते हैं। मंदिर में भगवान को काढ़ा, विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां देकर इलाज किया जाता है। इसे भगवान की ‘ज्वर लीला’ कहा जाता है।

यह है पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा को स्नान पूर्णिमा के दिन 108 घड़े के पवित्र जल से स्नान कराया गया था। इतना स्नान कराने से उन तीनों को बुखार हो गया था। यह संक्रमण और लोगों में न फैले, इसके लिए तीनों देवी-देवताओं को अनासर घर ले जाया गया और वहीं रखा गया था। अनासर घर में ही उनका इलाज किया गया। तीनों देवी-देवता 14वें दिन ठीक हुए थे। इसी वजह से यह परंपरा चली आ रही है। हर साल रथ यात्रा से 14 दिन पहले भगवान क्वारंटीन हो जाते हैं और 15वें दिन स्वस्थ होने पर बाहर निकलते हैं।

देंगे फल और जड़ी-बूटियां

क्वारंटीन के दौरान भगवान को फल और हल्का भोजन दिया जाएगा। साथ ही उन्हें दवाई के तौर पर जड़ी-बूटियों का प्रसाद पहाड़ा चढ़ाया जाएगा। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। 15 दिनों के अंतराल के बाद भगवान पूरी तरीके से स्वस्थ होंगे और उसके बाद नगर भ्रमण पर निकलेंगे। इसके लिए इस्कॉन मंदिर की तरफ से समारोह का आयोजन किया जाएगा। रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथ नगर दर्शन के लिए निकलेंगे। इसे नेत्रोत्सव पर्व के रूप में मनाया जाता है।

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