आकाश चोपड़ा ने कहा, कई खिलाड़ी ऐसे थे, जो कलाई पर कई तरह के बैंड बांधते थे और इसे भाग्यशाली मानते थे। यहां तक कि कलाई बैंड का रंग भी मायने रखता था। कुछ खिलाड़ी अपनी जर्सी नंबर पर विश्वास करते थे। अगर उन्हें जो नंबर चाहिए था, वह पहले से ही ले लिया गया था, तो वे सलाह के लिए किसी अंकशास्त्री के पास जाते थे।
आम इंसान ही नहीं बल्कि भारतीय क्रिकेटर भी कई तरह के अंधविश्वासों पर भरोसा करते हैं। इसका खुलासा भारतीय टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज आकाश चोपड़ा और स्पिनर प्रज्ञान ओझा ने किया है। उन्होंने बताया कि कई ऐसे खिलाड़ी थे, जो अंक ज्योतिषी के अलावा कई और चीजों पर विश्वास करते थे। उन्होंने कहा कि सिर्फ पूर्व विस्फोटक बल्लेबाज विरेन्दर सहवाग ऐसे थे, जो किसी चीज पर भरोसा नहीं करते थे।
आकाश चोपड़ा ने कहा, कई खिलाड़ी ऐसे थे, जो कलाई पर कई तरह के बैंड बांधते थे और इसे भाग्यशाली मानते थे। यहां तक कि कलाई बैंड का रंग भी मायने रखता था। कुछ खिलाड़ी अपनी जर्सी नंबर पर विश्वास करते थे। अगर उन्हें जो नंबर चाहिए था, वह पहले से ही ले लिया गया था, तो वे सलाह के लिए किसी अंकशास्त्री के पास जाते थे।
सहवाग कहते थे, मैं बिना नंबर के खेलूंगा आकाश ने कहा कि उनके साथी खिलाड़ी विरेन्दर सहवाग इस तरह की चीजें नहीं मानते थे। वे कहते थे, ये सब बेकार की बात हैं और मैं बिना किसी नंबर के ही खेलूंगा। उनका मानना था कि नंबर के होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अन्य खिलाड़ी पसंदीदा नंबर पाने के लिए ज्योतिषी की सलाह लेते थे।
पूर्व स्पिनर ओझा ने कहा, मैच से पहले जब भी मैं टीम बस में चढ़ता था, तो पहले मां को, फिर पताजी को फोन करता था। अगर वे दोनों साथ बैठे भी होते, तो मैं उन्हें अलग-अलग फोन करता। फिर मैं अपने चाचा को फोन करता, जो एक क्रिकेटर थे। लेकिन उस समय श्रीलंका में नेटवर्क नहीं था और कॉल नहीं लग पाई। इसी वजह से मैं मुथैया मुरलीधरन का 800वां विकेट बन गया।
आकाश चोपड़ा ने कहा, जब मैं बच्चा था, तो मेरा सबसे पहला अंधविश्वास एक टी-शर्ट को लेकर था। मैंने उस टी-शर्ट को पहनकर रन बनाए और भारत अंडर-19 के लिए चुना भी गया। हम श्रीलंका के दौरे पर गए थे। वहां भी मैंने अच्छे रन बनाए। दौरे के बाद मुझे एहसास हुआ कि टी-शर्ट घिस रही है। तभी मैंने फैसला किया, टी-शर्ट से आगे बढ़ो और खेल पर ध्यान दो।