पंचांग की गणना के अनुसार देखें तो वैशाख मास के पूर्णिमा तिथि पर बुद्ध पूर्णिमा व कूर्म जयंती का उल्लेख मिलता है। बुद्ध पूर्णिमा तथा कूर्म जयंती का महत्त्व पौराणिक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है।
पंचांग की गणना के अनुसार देखें तो वैशाख मास के पूर्णिमा तिथि पर बुद्ध पूर्णिमा व कूर्म जयंती का उल्लेख मिलता है। बुद्ध पूर्णिमा तथा कूर्म जयंती का महत्त्व पौराणिक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। मध्यकालीन इतिहास में बुद्ध का संदर्भ अलग प्रकार से लिया गया है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में बुद्ध का स्थान आता है। दोनों ही अनुक्रम में एक अंतर है कालखंड का। बुद्ध के सिद्धांत और विचारों की हम बात करें तो वह विचार चिंता मुक्त जीवन जीने के लिए एवं प्रकृति को मन, बुद्धि, आत्मा से सहयोग कर अपनी ही आत्मा को परमात्मा के रूप में समझते हुए आगे की यात्रा को बढ़ाना है।
वैशाख पूर्णिमा का विशेष दिन इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पूर्ण तिथि से संबंधित है। 12 माह की आने वाली पूर्णिमा में वैशाख की पूर्णिमा अलग-अलग प्रकारों से महत्त्वपूर्ण है। पहले तो बुद्ध पूर्णिमा, दूसरा कूर्म जयंती और तीसरा भगवान विष्णु से संबंधित पूर्णिमा तिथि पर किया गया तीर्थ अनुक्रम यह तीनों ही अपने आप में विशिष्ट हैं। अपने दर्शन के द्वारा या अपनी धार्मिक प्रक्रिया के द्वारा स्वयं को समझना व परम शक्ति जिसे परमात्मा कहते हैं। उसके साथ अपनी आत्मा का मन बुद्धि से संबंध स्थापित करना और यह समझना कि प्राकृतिक शक्ति सभी प्रकार के तनावों से मुक्त कर सकती है।
बुद्ध पूर्णिमा से सीखने वाली बात यह भी है कि इस दिन प्रकृति का चक्र ऋतु के बदलाव का संकेत देता है। पंचमहाभूतों में प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान यह पांच प्रमुख तत्त्व जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं। यहां पर कोई संकल्प अपनी लक्ष्य की सिद्धि के लिए लिया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि वैशाख की पूर्णिमा पर किया गया संकल्प पूर्ण होता है। इस दृष्टि से अपनी अंतरात्मा को संकल्प के लिए खासकर तब जब वह सामाजिक हित या स्वयं के हित या परिवार के हित के लिए निर्धारित किया गया हो वह संकल्प ले लेना चाहिए।
विशिष्ट संकल्पना में हम बात करें तो आने वाली पीढिय़ों को सही मार्गदर्शन देना, संस्कार, संस्कृति, अनुशासन, सदाचार व समर्पण आदि बिंदुओं को चिन्हित करते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी को यह समझना है कि संसार में प्रकृति और आत्म तत्त्व ईश्वर की ओर बढऩे का खास बिंदु है। इसी बिंदु से संबंधों की अनुकूलता और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। इस दृष्टि से जो आवश्यक है उसके बीच सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत होती है।
बुद्ध के दर्शनों में हिंसा नहीं करना, चोरी नहीं करना, किसी भी चीज का संग्रह नहीं करना एवं विचलित नहीं होना यह सभी सैद्धांतिक दर्शन की श्रेणी में आते हैं यह सत्य भी है। यदि सामाजिक अनुरूपता या स्वयं की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को अनुकूल बनाना है तो विकृतियों से दूर रहने की आवश्यकता है। कोई यह न कहे कि इस व्यक्ति ने ऐसा कार्य किया है। इन्हें सुनने से बचना ही बुद्ध के दर्शन की व्यवस्था है। पंचशील सिद्धांत में भी अणुव्रत आदि को पालने की स्थिति को दर्शाया गया है।
-पंडित अमर डब्बावाला (त्रिवेदी) ज्योतिषाचार्य