Kalpavas: कल्पवास के बारे में पद्म पुराण, मत्स्य पुराण, महाभारत और आज के ऐतिहासिक ग्रंथों में विस्तार से उल्लेख मिलता है।
Kalpavas: कल्पवास सनातन धर्म में आध्यात्मिक विकास और मोक्ष प्राप्ति का जरिया है। यह ईश्वर के प्रति आस्था और कठोर तपस्या का प्रतीक भी है। प्रमुख रूप से यह साधना तीर्थस्थलों पर की जाती है। कल्पवास के दौरान लोग बहुत साधारण और संयमित जीवनशैली जी कर परमात्मा में ध्यान लगाते हैं। इस तपस्या को मुख्यरूप से कुंभ और महाकुंभ से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन क्या कल्पवास कुंभ और महाकुंभ के बगैर भी किया जा सकता है? तो आइए जानते हैं कल्पवास की पूरी जानकारी।
कल्पवास भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसका मूल अर्थ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर रहकर ध्यान-साधना करना होता है। कल्पवास की समय सीमा कुछ इस तरह होती है- 3 दिन, 5, 7, 15, 30, 45 दिन, 3 महीने, 6 साल या 12 साल या फिर उम्रभर।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह साधना व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करती है। इस दौरान भक्त नदियों में स्नान, भजन-कीर्तन, यज्ञ और ध्यान करते हैं। कुभ या महाकुंभ के दौरान कल्पवास का विशेष महत्व होता है। इन भव्य मेलों में भक्त घर परिवार की मोहमाया छोड़कर अपनी आस्था अनुसार कल्पवास का पालन करते हैं।
विशेष रूप से कल्पवास की चर्चा कुंभ और महाकुंभ के दौरान होती है। वह भी तब जब संगम के किनारे प्रयागराज में इन भव्य मेलों का आयोजन हो। क्योंकि इस दौरान यहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। जो इस समागम की आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं।
लेकिन यदि आप कुंभ या महाकुंभ के दौरान कल्पवास नहीं कर पाते हैं या इस भव्य आध्यात्मिक समागम में शामिल नहीं हो पाते हैं तो आप किसी भी पवित्र नदी के तट पर कल्पवास कर सकते हैं। या ये कहे कि कुंभ और महाकुंभ के बिना भी कल्पवास करना संभव है।
स्नान और शुद्धि: सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करना।
सादगीपूर्ण जीवन: साधारण भोजन करना और शारीरिक सुख-सुविधाओं से बचना।
भजन और ध्यान: दिनभर ईश्वर का ध्यान और साधना में समय बिताना।
दान और सेवा: जरूरतमंदों की सेवा करना और दान देना।
सबसे महत्वपूर्ण नियम: इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण नियम ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान माने गए हैं।
कल्पवास के दौरान व्यक्ति अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण पाना सीखता है। यह मानसिक शांति, आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने वाली साधना होती है।
कुंभ और महाकुंभ के बिना भी कल्पवास किया जा सकता है। यह व्यक्ति के संकल्प, श्रद्धा और साधना पर निर्भर करता है। पवित्रता, संयम और साधना के जरिए व्यक्ति अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से ऊंचा उठा सकता है।
डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।