धर्म-कर्म

Mahakumbh Mela 2025: ममतानंद गिरी बनीं ऐक्ट्रेस ममता कुलकर्णी, यहां जानिए महामंडलेश्वर बनने के नियम

Mahakumbh Mela 2025: महामंडलेश्वर जब चयन किया जाता है। तब एक भव्य समारोह आयोजित होता है जिसे राज्याभिषेक कहते हैं। नए महामंडलेश्वर को आशीर्वाद दिया जाता है और उन्हें दंड, आसन और अंगवस्त्र प्रदान किए जाते हैं, जो उनकी नई पदवी का प्रतीक होते हैं।

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ममता कुलकर्णी

Mahakumbh Mela 2025: प्रयागराज के संगम में पवित्र स्नान करने औरमहाकुंभ के दिव्य और भव्य आयोजन में शामिल होने के लिए देश विदेश से श्रद्धालु आ रहे हैं। इसके साथ फिल्मी दुनिया के बड़े-बड़े आदाकार और कलाकार भी महाकुंभ में पवित्र डुबकी लगाते दिख रहे हैं। इन्हीं में से 90s की प्रसिद्ध आदाकारा ममता कुलकर्णी ने त्रिवेणी में डुबकी लगाकर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं हैं। तो आइए जानते हैं कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर, क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया

महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया

महामंडलेश्वर बनने के लिए सबसे पहले उम्मीदवार को अपने गुरु और अखाड़े के वरिष्ठ सदस्यों से समर्थन प्राप्त करना होता है। गुरु के मार्गदर्शन में उम्मीदवार की धार्मिक और आध्यात्मिक योग्यता का मूल्यांकन किया जाता है। इसके बाद साधक को अखड़े की परंपरा के अनुसार त्रिवेणी के संगम में स्नान और पिंडदान करना होता है। इसके बाद भगवान वस्त्र धारण कराए जाते हैं। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उनको दूध से स्नान कराया जाता है। यह उम्मीदवार को पवित्र और शुद्ध करने का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद जो भी अखाड़े के महामंडलेश्वर होते हैं वह उनको नया नाम देते हैं। जैसे ममता कलकर्णी का नया नाम श्री यमाई ममतानंद गिरी नाम दिया गया है।

क्या है किन्नर अखाड़े का इतिहास

किन्नर अखाड़े की स्थापना 2015 में हुई थी। इसकी पहचान मुख्य धारा के प्रमुख 13 अखाड़ों से अलग है। किन्नर अखाड़े अपनी विशेषताएं हैं। क्योंकि यहां साधकों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों जीवन जीने की अनुमति होती है। किन्नर अखाड़े का मुख्य आश्रम उज्जैन में है।

दायित्व और उत्तरदायित्व

महामंडलेश्वर बनने के बाद व्यक्ति को किन्नर अखाड़े के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों का नेतृत्व करना होता है।
धर्म का प्रचार-प्रसार करना, अखाड़े की परंपराओं को आगे बढ़ाना और समाज में किन्नर समुदाय के अधिकारों के लिए कार्य करना उनकी जिम्मेदारी होती है।

समाज में भूमिका

यह पद केवल उन्हीं को दिया जाता है जो न केवल धार्मिक रूप से सक्षम हों, बल्कि समाज में आदर्श नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखते हों। महामंडलेश्वर बनने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं है। यह अखाड़े की परंपराओं और निर्णय पर निर्भर करता है। यह प्रक्रिया किन्नर समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है और यह दिखाती है कि कैसे यह समुदाय अपनी विशिष्ट पहचान के साथ धर्म और समाज में योगदान देता है।

डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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