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Mahakumbh 2025: क्या होती है महाकुंभ में संतों की पेशवाई, इसके बाद ही क्यों करते हैं शाही स्नान जानिए

Mahakumbh 2025: सनातन धर्म में साधु-संतों का विषेश महत्व है। इस बात का प्रतीक महाकुंभ का भव्य आयोजन है। महाकुंभ में भी शाही स्नान जो कि साधु-सतों की पेशवाई के बाद ही शुरु होता है।

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Mahakumbh 2025

Mahakumbh 2025

Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महांकुभ के भव्य मेले की तैयारियां जोरो पर हैं। सनातन धर्म का यह भव्य आयोजन 45 दिन तक चलेगा। जिसमें देश-विदेश से करोड़ श्रद्धालुओं के आने की आशंका है। भहाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम का मनोरम दृश्य धार्मिक दृष्टी से बड़ा सुखद अनुभव कराता है। क्योंकि इस विशाल धार्मिक आयोजन में संतों का भी भारी संख्या में समागम होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि महाकुंभ में साधुओं की पेशवाई क्या होती है? यहां जानिए।

नागाओं की पेशवाई

महाकुंभ देश का विशाल धार्मिक आयोजन है। जिसमें लाखों की संख्या में संत और अखाड़े शामिल होते हैं। इस विशाल महोत्सव में संतों की पेशवाई विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। इसमें साधु-संत अपने अखाड़ों से एक भव्य शोभायात्रा लेकर निकलते हैं। पेशवाई में अखाड़ों के प्रमुख महंत , नागा साधु और उनके तमाम अनुयायी शामिल होते हैं। ये शोभायात्रा बैंड-बाजे, हाथी, घोड़े और सजाए गए रथों के साथ निकाली जाती है। इन रथों पर सम्मानित गुरु या संत विरामान होते हैं और इनके साथ में पैदल इनके भक्त और अनुयायी चलते हैं। इसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं और संतों का स्वागत करते हैं। इस आयोजन में अखाड़ों का वैभव, अनुशासन और शक्ति का प्रदर्शन माना जाता है।

शाही स्नान से पेशवाई का संबंध

धार्मिक दृष्टी से महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्त्व है। इसे राजयोग स्नान भी कहते हैं। शाही स्नान के दौरान विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत और नागा साधु सबसे पहले स्नान करते हैं। उनके स्नान के बाद ही आम श्रद्धालु संगम की पवित्र और अमृतमयी जलधारा में डुबकी लगाते हैं। संतों की पेशवाई शाही स्नान के लिए अखाड़ों के नगर में प्रवेश का प्रतीक है। मान्यता है कि पेशवाई के साथ अखाड़े अपने निवास स्थान में प्रवेश करते हैं और इसके बाद वे शाही स्नान के लिए तैयार होते हैं।

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