Vishweshwar Katha: विश्वेश्वर व्रत की महिमा बड़ी निराली है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि इस व्रत का पालन कर भगवान शिव हैं। इस शुभ दिन पर महादेव से जो भी वरदान मांगा जाता है, वह आपको मिलता है। भगवान शिव के इस स्वरूप को समर्पित एक मंदिर कर्नाटक में है।
Vishweshwar Katha: विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए रखा जाता है। इस दिन को देवों के देव महादेव की पूजा की जाती है। कर्नाटक में भगवान विश्वेश्वर मंदिर भी है जो येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। धार्मिक कथाओं में भगवान शिव को विश्वनाथ भी कहा गया है। आइए जानते हैं विश्वेश्वर व्रत की पूरी कथा..
धार्मिक कथाओं के अनुसार कुथार राजवंश में एक शूद्र राजा रहते थे। जिनको लोग कुंडा राजा के नाम से जानते थे। एक बार कुंडा राजा ने भार्गव मुनि को अपने राज्य में आने का निमंत्रण भेजा था। लेकिन मुनि भार्गव ने निमंत्रण को अस्वीकर करते हुए कहा कि आपके राज्य में मंदिरों और पवित्र नदियों की कमी है। आपके राज्य में कोई ऐसा पवित्र स्थान नहीं है जहां ऋषि-मुनि पूजा पाठ और ध्यान कर सकें। मुनि भार्गव ने आगे कहा कि कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के पांच दिन के त्यौहार पर तीसरे दिन पूजा करने के लिए उचित स्थान की आवश्यकता होती है। जिसका उन्हें राजा कुंडा के राज्य में अभाव लग रहा है।
राजा कुंडा को जब इस बात का पता लगा तो वह इस बात से बहुत परेशान हुए। तभी राजा ने फैसला किया कि अब वह राज पाठ छोड़कर गंगा किनारे तपस्या करने के लिए जाएंगे। और भगवान शिव की आराधाना करेंगे। जब राजा गंगा किनारे पहुंचे तो उन्होंने नदी किनारे एक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया। राजा कुंडा ने यह यज्ञ भगवान शिव को साक्षी मानकर किया था। भगवान शिव राजा की तपस्या से प्रसन्न हुए और राजा से वरदान मांगने को कहा। तब राजा ने भगवान शंकर से उनके राज्य में रहने की इच्छा जताई। जिसे भगवान भोलेनाथ ने स्वीकार किया।
धार्मिक मान्यता है कि उस दिन से भगवान शंकर राजा कुंडा के राज्य में एक कंद के पेड़ में रहने लगे थे। एक दिन एक आदिवासी स्त्री जंगल में अपने खोए हुए बेटे को ढूंढने आई थी। जो वहीं जंगल में खो गया था। माना जाता है कि उस स्त्री ने वहां कंद के वृक्ष पर अपनी तलवार से प्रहार कर दिया। जिसके बाद उस वृक्ष से रक्त बहने लगा। जब स्त्री की नजर बहते रक्त पर पड़ी तो स्त्री ने समझा कि वह कंद नहीं बल्कि उसका पुत्र है। जिसके बाद वह जोर जोर से अपने बेटे का नाम पुकारने लगी। पुत्र का नाम ‘येलु’था। तभी उस स्थान पर भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से यहां पर बने मंदिर को येलुरु विश्वेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
कर्नाटक में यह मंदिर महाथोबारा येलुरुश्री विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि उस आदिवासी स्त्री की तलवार से किए गए प्रहार के निशान आज भी मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर बने हुए हैं। यह भी माना जाता है कि कुंडा राजा ने प्रहार के स्थान पर नारियल पानी डाला था तभी कंद का खून बहना बंद हुआ था। इसलिए आज भी यहां भगवान शिव को नारियल पानी या नारियल का तेल चढ़ाने का विधान है।
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