माता के ज्यादातर शक्तिपीठ और मंदिर पहाड़ियों पर स्थित है। यह एक संयोग मात्र नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण छुपे हुए हैं। इस लेख में जानते हैं वे कारण...
Shaktipeeth Pahadi Par Kyo Hote Hain: शारदीय नवरात्रि के पवित्र 9 दिनों की शुरुआत हो चुकी है। इस दौरान मां शारदा के कई भक्त मंदिर या शक्तिपीठ दर्शन के लिए जाते हैं। कुल 51 शक्तिपीठों में अधिकांश शक्तिपीठ ऐसे हैं, जो पहाड़ों पर स्थित हैं। यहां तक कि माता के अन्य मंदिर भी ज्यादातर पहाड़ी पर ही होते हैं। इन मंदिरों तक पहुंचने के लिए कठिन रास्तों से होकर जाना पड़ता है, ऊंची चढ़ाई के बाद कहीं जाकर दर्शन का सौभाग्य मिलता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये मंदिर अक्सर ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर ही क्यों स्थित होते हैं? आज इससे जुड़े कई कारण हम आपको बताने वाले हैं।
पहाड़ों पर मां की शक्ति और श्रेष्ठता का अनुभव होता है। दरअसल, देवी भागवत पुराण में वर्णन है कि माता सती के शरीर के 52 अंग अलग-अलग कई पहाड़ों पर गिरे थे। जैसे तंत्र चूड़ामणि के अनुसार हरसिद्धि शक्तिपीठ, उज्जैन में मां सती के दाहिने हाथ की कोहनी (Right Elbow) गिरी थी। उनके अंग जहां-जहां गिरे, उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। इस वजह से भी अधिकांश शक्तिपीठ पहाड़ियों पर विराजमान हैं।
कालिका पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार देवी पार्वती हिमवान (हिमाचल) की पुत्री हैं। यह भी एक कारण है कि उनके ज्यादातर मंदिर पहाड़ों पर ही विद्यमान होते हैं, जो पिता-पुत्री के अद्भुत प्रेम को दिखाते हैं।
कुछ धार्मिक परंपराओं में माना जाता है कि पहाड़ पृथ्वी का मुकुट और सिंहासन हैं। ऐसे में देवी के मंदिरों को ऊंचाई पर बनाया गया, जो उनकी सर्वोच्चता और श्रेष्ठता को दिखाते हैं।
पहाड़ों को प्रकृति के सबसे निकट (करीब) माना जाता है। साथ ही ऊंचाई पर होने की वजह से शुद्ध हवा और सकारात्मक माहौल होता है। इससे भक्तों की धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति को बल मिलता है।
माता के मंदिरों का पहाड़ियों पर होना संयोग मात्र नहीं है। इसके पीछे कई धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक वजहें हैं। यहां एकांत और अद्भुत शांति का अनुभव होता है। पुराने समय में ऋषि-मुनि भी ध्यान और तप के लिए पहाड़ों को चुनते थे। ऐसे में सांसारिक शोर से दूर पहाड़ों पर एक अलग शांत वातावरण होता है, जिसका विशेष धार्मिक महत्व होता है।
इतिहास में एक समय ऐसा भी रहा है, जब मंदिरों पर टारगेटेड हमले होते थे। कई मंदिरों को तोड़कर (सोना-चांदी की) लूटपाट की जाती थी। ऐसे में सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी इन्हें ऊंचाई पर बनाया गया, क्योंकि इतनी ऊंचाई पर कठिन चढ़ाई चढ़कर पहुंचना सरल नहीं था। ऐसे में यह भी एक अहम कारण था, ताकि आक्रांता और हमलावर यहां आसानी से न पहुंच सके।