Ganesh Chaturthi Special : दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूरी पर स्थित पिण्डावल गांव का हिलावाड़ी गणपति मंदिर। गणेश चतुर्थी पर मेले सा माहौल रहता है। हिलावाड़ी गणपति मंदिर से जुड़ी एक किंवदंती भी है। जानें।
Ganesh Chaturthi Special : दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर जिला गिरीपुर शिव और शक्ति की नगरी है। पर, यहां गौरीपुत्र के भी कई प्राचीन और पौराणिक मान्यताओं से भरे हुए मंदिर है, जो लोक आस्था के केन्द्र बने हुए हैं। एक है डूंगरपुर जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूरी पर स्थित पिण्डावल गांव का हिलावाड़ी गणपति मंदिर। यहां क्षेत्र सहित दूरदराज से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। गणेश चतुर्थी पर मेले सा माहौल रहता है। मंदिर से जुड़ी यहां किंवदंती भी है।
मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष जगदीश हिलोत बताते है कि उनके पिताजी स्व. भगवान हिलोत के अनुसार करीब 600 साल पूर्व पूर्वज मध्यप्रदेश के धार में व्यवसाय करते थे। इस दरयान वह गणपति की पूजा करने के उपरांत ही व्यवसाय एवं भोजन करते थे। कुछ वर्ष बाद जब उन्हें घर आने का मन हुआ, तो यह चिंता सताने लगी कि अब यहां भगवान गणपति की आराधना कैसे होगी।
इस पर एक रात भगवान गणपति ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मुझे यहां से ले जाओ। स्वप्न में कही बात अनुसार पूर्वजों ने धार में पूजी जा रही करीब डेढ़ फीट बड़ी पत्थर की भगवान गणेश की प्रतिमा को पीठ पर बांध दिया और 300 किलोमीटर पैदल निकल पड़े। जैसे ही पिण्डावल के हिलोतो की वाड़ी (खेत) के निकट पहुंचे। पीठ पर बंधे गणपति का वजन अचानक भारी होने से गणपति की प्रतिमा को यहीं विराजित कर दिया। यहीं पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी। इसके बाद 1975 में मंदिर में प्रथमबार जीर्णोंद्धार किया।
हिलोत बताते है कि 1975 में जीर्णोद्धार के लिए नींव खुदाई के दौरान भगवान विष्णु के साथ ही भगवा गणेश की अन्य प्रतिमा भी निकली। उन्हें भगवान गणपति के निकट ही प्रतिष्ठापित किया। इसके बाद 2005 में पुन: मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ।
पूर्व में गांव के हिलोत परिवार के मकान व खेत यहीं थे। इसलिए इन्हें हिलावाड़ी गणपति या मोटा गणेशजी कहा जाता है। मंदिर परिसर के निकट भगवान हनुमानजी का मंदिर है। जगदीश हिलोत, रमेश हिलोत, हिमराम सहित गणेशोत्सव की तैयारियों में जुटे हुए हैं।
बनकोड़ा. आजादी से पूर्व कस्बे के लोग व्यापार के लिए महाराष्ट्र में रहते थे। आकोला महाराष्ट्र से रेवाशंकर उपाध्याय वापस यहां अपने गांव आए और वर्ष 1942 में गणेशोत्सव की शुरूआत की। उनके साथ चिमनलाल उपाध्याय, दयाशंकर व्यास, मोहनलाल सोनी, हुकुमचंद सोनी, मथुरालाल आमेटा, जवेरचंद सोनी तथा हेमराज सोनी ने गणेशोत्सव में अखाड़ा प्रदर्शन शुरू किया। इसके बाद राममंदिर होली चौक में गणेशोत्सव हर साल धूमधाम से मनाया जाने लगा। इसके तहत विभिन्न सांस्कृतिक, साहित्यिक सहित धार्मिक आयोजन हुए।