First IAS Officer of India: भारत के पहले आईएएस अधिकारी सत्येंद्रनाथ टैगोर 1863 में बने थे। जानिए उनकी शिक्षा, जीवन यात्रा, उपलब्धियां और कैसे उन्होंने ब्रिटिश शासन में इतिहास रचा।
First IAS Officer of India: भारत में आईएएस (IAS) बनना आज लाखों युवाओं का सपना है लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के पहले आईएएस अधिकारी कौन थे? साल 1863 में जब अंग्रेजों का शासन था तब एक भारतीय युवक ने हिम्मत, ज्ञान और संघर्ष के दम पर इतिहास रच दिया। उनका नाम सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) था जो न सिर्फ भारत के पहले आईएएस अधिकारी बने बल्कि एक लेखक, कवि और समाज सुधारक के रूप में भी देश को नई दिशा देने का काम किया था।
सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता (तब का कलकत्ता) में हुआ था। वे महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के पुत्र थे और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। टैगोर परिवार उस समय बंगाल के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील परिवारों में गिना जाता था जो ब्राह्मो समाज आंदोलन से गहराई से जुड़ा हुआ था।
बचपन से ही सत्येंद्रनाथ का पालन-पोषण ऐसे वातावरण में हुआ, जहां शिक्षा, समाज सुधार और समानता की बातें की जाती थीं। इसी माहौल ने उनके भीतर सामाजिक जागरूकता और बदलाव की भावना को जन्म दिया।
सत्येंद्रनाथ टैगोर ने अपनी शुरुआती शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से पूरी की थी। उस समय भारत में सिविल सेवा परीक्षा (Indian Civil Services - ICS) केवल लंदन में होती थी जिसमें भारतीय उम्मीदवारों के लिए चयन लगभग असंभव माना जाता था। लेकिन उन्होंने इस धारणा को तोड़ने का निश्चय किया। साल 1862 में वे इंग्लैंड गए और अगले ही वर्ष 1863 में परीक्षा पास कर भारत के पहले भारतीय सिविल सेवक बने। यह वह समय था जब भारतीयों को ब्रिटिश प्रशासन में शामिल नहीं किया जाता था इसलिए यह उपलब्धि अपने आप में ऐतिहासिक थी।
सत्येंद्रनाथ टैगोर ने अपनी सेवा की शुरुआत बॉम्बे प्रेसीडेंसी से की थी। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय जनता के हितों की रक्षा के लिए काम किया। उनका प्रशासनिक दृष्टिकोण निष्पक्ष, ईमानदार और प्रगतिशील था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, जातिगत भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक सुधार की दिशा में कई कदम उठाए। सिविल सर्विस के दौरान भी वे आम लोगों के बीच लोकप्रिय रहे और हमेशा भारतीय समाज के उत्थान के लिए कार्य करते रहे।
सत्येंद्रनाथ टैगोर सिर्फ एक अधिकारी नहीं थे वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे। वे कवि, लेखक और संगीतकार भी थे। उन्होंने कई गीत और कविताएं लिखीं जिनमें भारतीय संस्कृति और एकता का संदेश था। उनका प्रसिद्ध गीत 'मिले सबे भारत सन्तान, एक तन गाओ गान' भारत में एकता का प्रतीक माना जाता है।
उन्होंने रूमी, हाफिज, शेक्सपीयर और बायरन की रचनाओं का अनुवाद बंगाली में किया, जिससे आम जनता को विश्व साहित्य से जुड़ने का अवसर मिला।
सत्येंद्रनाथ टैगोर के वर्षों बाद, स्वतंत्र भारत में साल 1951 में देश की पहली महिला आईएएस अधिकारी मिलीं, जिनका नाम अन्ना राजम माल्होत्रा था। उन्होंने उस समय आईएएस चुना जब महिलाओं को सरकारी सेवा में सीमित अवसर मिलते थे। अपने करियर में उन्होंने कई बड़े प्रोजेक्ट्स जैसे जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट, मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे और 1982 एशियन गेम्स के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें 1989 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
सत्येंद्रनाथ टैगोर ने उस दौर में इतिहास रचा जब भारतीयों के लिए ब्रिटिश प्रशासन में शामिल होना असंभव माना जाता था। उनकी सफलता ने आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास दिलाया कि मेहनत, शिक्षा और आत्मविश्वास से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।