
Premanand Ji Maharaj Education (Image: Premanand Ji Maharaj Instagram)
Premanand Ji Maharaj Education: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर आज करोड़ों लोगों के श्रद्धा-स्थल बन चुके प्रेमानंद महाराज का जीवन किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं है। जहां बच्चे उस उम्र में खेल-कूद और पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं वहीं प्रेमानंद महाराज ने सिर्फ 13 साल की उम्र में घर छोड़कर ईश्वर की खोज में तपस्या का मार्ग चुना। उनका बचपन बेहद सात्विक वातावरण में बीता और शिक्षा के दौरान ही उनके भीतर अध्यात्म की लौ प्रज्वलित हो उठी। भक्ति और वैराग्य की इस राह पर चलकर उन्होंने ऐसा आध्यात्मिक जीवन जिया जिसने आज उन्हें देश-विदेश में एक सम्मानित संत के रूप में स्थापित कर दिया है। ऐसे में बहुत सारे लोग हैं जानना चाहते हैं उन्होंने कहां तक पढ़ाई की है और यहां तक पहुंचने का सफर कैसा रहा है? इस आर्टिकल में यही सब जानेंगे।
प्रेमानंद महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक के आखिरी गांव में एक सात्विक ब्राह्मण परिवार में अनिरुद्ध कुमार पांडेय के रूप में हुआ। घर का वातावरण पूर्णतः धार्मिक और भक्ति-मय था। उनके दादा एक सन्यासी थे, पिता शंभू पांडेय ने भी आगे चलकर सन्यास ग्रहण किया और माता रमा देवी भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। घर में नियमित रूप से संत सेवा, भागवत कथा और भक्ति पाठ होते थे, जिससे छोटे अनिरुद्ध पर बचपन से ही भक्ति का गहरा प्रभाव पड़ा।
प्रेमानंद महाराज बचपन से ही धार्मिक ग्रंथों के प्रति आकर्षित थे। उन्होंने कम उम्र में ही गीता प्रेस की 'सुखसागर' जैसी पुस्तकों का अध्ययन शुरू कर दिया था। जब वे कक्षा 5वीं में थे, तभी उन्होंने कई चालीसाओं का पाठ करना शुरू कर दिया।धीरे-धीरे उनमें जीवन के उद्देश्य को जानने की तीव्र जिज्ञासा जागने लगी।
वे सोचते थे, ''क्या माता-पिता का प्रेम शाश्वत है? यदि नहीं, तो अस्थायी सुखों में क्यों उलझना?'' यह विचार उनके मन में स्थायी रूप से बैठ गया और उन्होंने भक्ति को ही जीवन का सच्चा मार्ग मान लिया।
जब प्रेमानंद महाराज कक्षा 9वीं में थे, तब उन्होंने यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि वे जीवन को भक्ति और साधना के मार्ग पर समर्पित करेंगे। सिर्फ 13 वर्ष की आयु में, एक दिन तड़के सुबह 3 बजे उन्होंने घर छोड़ दिया और बिना किसी भय या मोह के, ईश्वर की खोज में निकल पड़े। यहीं से एक साधक से संन्यासी बनने की दिशा में उनके जीवन की यात्रा शुरू हुई।
प्रेमानंद महाराज ने पहले नैष्ठिक ब्रह्मचर्य अपनाया और उन्हें नया नाम आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी मिला। बाद में जब उन्होंने सन्यास ग्रहण किया, तब उन्हें स्वामी आनंदाश्रम का नाम दिया गया। उन्होंने अपना पूरा जीवन शरीर, वस्त्र और मौसम की परवाह किए बिना गंगा के तटों पर तपस्या में बिताया। गंगा उनके लिए 'दूसरी मां' बन गईं।
प्रेमानंद महाराज आगे चलकर वृंदावन की ओर खिंचाव हुआ। वहीं उन्होंने राधावल्लभ संप्रदाय की दीक्षा ली और हित गौरांगी शरण महाराज को अपना गुरु मान लिया। गुरु की सेवा में दस वर्ष बिताने के बाद वे पूरी तरह भक्ति और प्रेम के भाव में लीन हो गए। आज प्रेमानंद महाराज को देश-विदेश में उनके प्रेम, सरलता और भक्ति-भाव के लिए जाना जाता है।
प्रेमानंद महाराज ने औपचारिक शिक्षा केवल कक्षा 8वीं तक ही प्राप्त की है लेकिन उनके जीवन अनुभव, भक्ति, और आध्यात्मिक ज्ञान ने उन्हें आध्यात्मिक जगत का मार्गदर्शक बना दिया है।
Published on:
14 Oct 2025 04:13 pm
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