धार्मिक परंपराओं से लेकर श्रमिक आंदोलनों तक, साप्ताहिक अवकाश (संडे हॉलिडे) और पेड वेकेशन की शुरुआत कैसे हुई। जानिए छुट्टियों का रोचक इतिहास?
आज छुट्टी लेना हमारे लिए उतना ही सामान्य हो गया है जितना रोज काम पर जाना। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि छुट्टी देने का नियम आखिर आया कहां से? इन सवालों के जवाब इतिहास के पन्नों में दर्ज है, साप्ताहिक अवकाश (जैसे रविवार की छुट्टी) और पेड वेकेशन का कॉन्सेप्ट धार्मिक परंपराओं और मजदूरों के संघर्ष से शुरू हुआ।
321 ईस्वी में रोमन सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने ईसाई परंपरा के आधार पर रविवार को आधिकारिक अवकाश घोषित किया। लेकिन आम मजदूरों के लिए यह अधिकार हासिल करना आसान नहीं था। 20वीं सदी में अमेरिकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने 1926 में अपनी कंपनी में शनिवार और रविवार, दोनों दिन की छुट्टी लागू की। उनका तर्क था - “थका हुआ मजदूर अच्छा काम नहीं कर सकता।” फोर्ड की यह नीति बाद में पूरी दुनिया में अपनाई गई।
Holiday शब्द पुरानी अंग्रेजी के हॉलिग्डे (holy day) से बना है, जिसका अर्थ होता है - पवित्र दिन। पहले ये दिन धार्मिक त्योहारों या पूजा के लिए होते थे। प्राचीन काल में, हिंदू धर्म में रविवार को सूर्य देव का दिन माना जाता था, जबकि ईसाई धर्म में यह दिन विश्राम और ईश्वर की आराधना के लिए निर्धारित था।
भारत में छुट्टी देने का आंदोलन नारायण मेघाजी लोखंडे ने शुरू किया था। इस आंदोलन की शुरुआत मजदूरों की खराब स्थिति को देखते हुए हुई, क्योंकि अंग्रेजों के शासन में वे सप्ताह के सातों दिन काम करते थे और उन्हें आराम का कोई समय नहीं मिलता था। भारत में छुट्टी के लिए आंदोलन की शुरुआत 1857 के आसपास हुईं, जब नारायण मेघाजी लोखंडे ने मजदूरों के लिए रविवार की छुट्टी की मांग उठाई, जिसके बाद 1890 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में मान्यता दी। अंग्रेजों ने रविवार को छुट्टी का दिन इसलिए चुना क्योंकि उस दिन वे खुद चर्च जाते थे, और ऐसे में उन्होंने सबके लिए इसी दिन छुट्टी देने का फैसला किया। यह भारतीय श्रमिक वर्ग के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जिसने काम और जीवन के बीच संतुलन की राह को आसान बनाया।
साप्ताहिक छुट्टी के बाद अगला कदम था वेतन सहित अवकाश (Paid Vacation)। 19वीं सदी में जर्मनी ने सबसे पहले इस अवधारणा की शुरुआत की, लेकिन असली परिवर्तन 1936 में फ्रांस ने किया। फ्रांस ने दो हफ्ते की पेड लीव को कानूनी रूप दिया, जबकि दो साल बाद ब्रिटेन ने “Holidays with Pay Act” के तहत मजदूरों को सैलरी के साथ छुट्टी दी।
भारत में 1871 में बैंक हॉलिडे एक्ट लागू हुआ और बाद में 1948 के फैक्ट्री एक्ट ने इसे मजबूत कानूनी आधार प्रदान किया।
आज भारत में कर्मचारियों को साल में औसतन 21 से 30 दिन की वार्षिक छुट्टी मिलती है।
1930 के दशक में ब्रिटेन के बिली बुटलिन ने सस्ते हॉलिडे कैंप शुरू किए, जहां आम लोग परिवार के साथ आराम कर सकें। धीरे-धीरे छुट्टियां केवल आराम नहीं, बल्कि यात्रा, परिवार और खुद के लिए समय बिताने का अवसर बन गई। आज यूरोप में औसतन 25–30 पेड लीव मिलती हैं, जबकि अमेरिका में अब भी कोई कानूनी पेड वेकेशन नहीं है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का कथन था- “आराम करना आलस्य नहीं, बल्कि आत्मा को फिर से जाग्रत करने का अवसर है।”
यह विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है। आज जब काम और जीवन की रफ्तार लगातार बढ़ रही है, तब ‘आराम’ केवल एक विलासिता नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक संतुलन के लिए जरूरी विराम है। छुट्टियां न सिर्फ शरीर को आराम देती हैं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, रचनात्मकता और उत्पादकता को भी बढ़ाती हैं। छुट्टी का दिन हमें यह याद दिलाता है कि इंसान मशीन नहीं -एक संवेदनशील प्राणी है, जिसे ठहरने और खुद से जुड़ने का समय चाहिए। यह नियम धार्मिक परंपराओं से शुरू होकर मजदूरों के संघर्ष और समाज सुधारकों की मेहनत से आज हमारे जीवन का हिस्सा बना।