MBBS From Abroad: भारत में डॉक्टर बनना इतना आसान नहीं है। डिग्री पूरी होने के बाद मेडिसिन प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस लेने तक कई चरणों की परीक्षाएं पास करनी होती हैं, तब जाकर कोई डॉक्टर बन पाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारतीय क्यों MBBS के लिए विदेशों का रुख करते हैं।
MBBS From Abroad: भारत में डॉक्टर बनना इतना आसान नहीं है। यहां मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए प्रवेश परीक्षा देनी होती है, जोकि काफी टफ होता है। इसके बाद मेडिकल कोर्सेज में दाखिला मिलता है। मालूम हो कि नीट यूजी परीक्षा (NEET UG Exam) पास करके केवल एमबीबीएस ही नहीं बल्कि रैंक के मुताबिक बीडीएस, बीएएमएस, आर्युवेद और होम्योपेथी जैसी बहुत सी फील्ड्स में एडमिशन मिलता है। डिग्री पूरी होने के बाद मेडिसिन प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस लेने तक कई चरणों की परीक्षाएं पास करनी होती हैं, तब जाकर कोई डॉक्टर बन पाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारतीय क्यों MBBS के लिए विदेशों का रुख करते हैं।
बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ साइंस की ये डिग्री डॉक्टर बनने की तरफ पहला कदम है। इसे विदेश से भी पूरा किया जा सकता है। भारत में हर साल प्रवेश परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या और सरकारी व प्राइवेट कॉलेजों में उपलब्ध सीटों की संख्या में काफी अंतर होता है। ऐसे में कई छात्र हैं जो ठीक-ठाक मार्क्स रहने के बाद भी भारत के कॉलेज से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। ऐसे छात्र विदेशों की डिग्री लेते हैं। हालांकि, कई बार विदेश से पढ़ने का कारण कुछ और भी हो सकता है। लेकिन आम तौर पर यही कारण होता है।
हर साल नीट परीक्षा में 20 से 24 लाख तक बच्चे बैठते हैं और चयन 8 से 10 लाख तक का होता है, ये एक औसत संख्या है। ये सभी एमबीबीएस नहीं करते पर जो करना चाहते हैं, उनके लिए सीटों की अनुमानित व्यवस्था इस प्रकार है। इस बार करीब 22 लाख छात्रों ने नीट यूजी परीक्षा (NEET UG Exam) दी थी। करीब 349 सरकारी कॉलेजों में 50 हजार के करीब सीटे हैं, 21 एम्स में 21 हजार के आसपास सीटे हैं, प्राइवेट मेडिकल कॉलेज 280 के करीब हैं जिनमें 45 हजार के आसपास सीटें हैं। कुल मिलाकर 1 लाख 10 हजार सीटों के लिए हर साल 20 से 24 लाख बच्चे कंपटीशन करते हैं।