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Women’s Jeans: लड़कियों के जींस की जेब क्यों होती है छोटी? पुराना और विवादित है इसका इतिहास

Women's Jeans: महिलाओं और पुरुषों के कपड़ों में जेबों को लेकर यह भेदभाव सदियों पुराना है। कभी इसे फैशन का नाम दिया गया तो कभी इसका कारण हैंडबैग मार्केट को माना गया। आइए जानते हैं, इसकी पूरी कहानी के बारे में...

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Feb 19, 2025
Women's Jeans

Women's Jeans: क्या आपने कभी गौर किया है कि लड़कियों की जींस की जेबें (Women's Jeans Pocket) या तो बहुत छोटी होती हैं या फिर सिर्फ दिखावे के लिए बनी होती हैं। वहीं, लड़कों की जींस में आराम से मोबाइल, पर्स और कई दूसरी चीजें भी रखी जा सकती हैं। यह सिर्फ डिजाइन का मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे सदियों पुराना एक इतिहास छिपा है। आइए जानते हैं कि महिलाओं के कपड़ों में जेबों की यह असमानता कब और कैसे शुरू हुई इसकी पूरी कहानी…

जब जेबों का अविष्कार ही नहीं हुआ था

आज भले ही कपड़ों में जेब होना आम बात है, लेकिन बहुत पहले ऐसा नहीं था। प्राचीन समय में पुरुष और महिलाएं दोनों ही छोटी पोटलियों या बैग्स का इस्तेमाल करते थे। ये बैग्स एक रस्सी से कमर पर बांधकर रखे जाते थे, जिसमें जरूरत का सामान रखा जाता था। उस समय दोनों के बीच कोई भेदभाव नहीं था। लेकिन समय के साथ चीजें बदलीं और महिलाओं को इस सुविधा से धीरे-धीरे दूर कर दिया गया।

17वीं सदी में शुरू हुई असमानता

17वीं सदी में कपड़ों में ही जेबें सिलने का चलन शुरू हुआ, लेकिन यह बदलाव केवल पुरुषों के लिए हुआ। उनकी कोट और पैंट में जेबें सीधी सिल दी जाती थीं, जिससे वे आसानी से सामान रख सकते थे। दूसरी तरफ 17वीं सदी के दौर में महिलाओं के कपड़ों में जेब की सुविधा नहीं दी गई थी। इसके लिए उन्हें एक अलग कपड़े के बैग में सामान रखना पड़ता था, जिसे वे कमर पर बांधकर पेटीकोट के अंदर छुपाकर रखा करती थी।

इससे एक बड़ी समस्या यह थी कि सार्वजनिक जगहों पर महिलाएं आसानी से सामान नहीं निकाल सकती थीं, क्योंकि इसके लिए उन्हें पूरा पेटीकोट ऊपर उठाना पड़ता था। यही वह समय था जब महिलाओं के कपड़ों से सुविधा धीरे-धीरे कम होने लगी।

19वीं सदी में महिलाओं ने किया विरोध

Women's Jeans Pocket

19वीं सदी के अंत तक महिलाओं को यह असमानता समझ आने लगी और उन्होंने इसका विरोध करना शुरू किया। लंदन में रैशनल ड्रेस सोसायटी नाम की संस्था बनी थी। जिसने महिलाओं के कपड़ों को अधिक आरामदायक और सुविधाजनक बनाने की मांग उठाई। उनकी सबसे बड़ी मांगों में से एक यह थी कि महिलाओं के कपड़ों में जेबें होनी चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर महसूस कर सकें।

20वीं सदी में महिलाओं ने पैंट पहनना शुरू किया

1900 के शुरुआती दशक में महिलाओं ने पैंट पहनना शुरू किया, जिनमें जेबें भी दी जाती थीं। 1910 में सफ्राजेट सूट्स आए जिनमें कम से कम छह जेबें होती थीं। यह उस दौर का महिलाओं के लिए एक बड़ा बदलाव था। इसके बाद जब 1914 से 1945 के बीच दोनों विश्वयुद्ध हुए तब महिलाओं को बाहर काम करने की जरूरत पड़ने लगी। इस दौरान उनके कपड़ों को सुविधाजनक बनाया जाने लगा और उनमें जेबें दी जाने लगीं।

21वीं सदी में फिर बढ़ी परेशानी

आज के समय में महिलाओं के कपड़ों में फिर से वही पुरानी दिक्कतें देखने को मिलने लगी हैं। अब उनकी जींस और दूसरे कपड़ों में या तो बहुत छोटी जेबें होती हैं या फिर सिर्फ दिखावे के लिए सिल दी जाती हैं। कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसकी वजह फैशन इंडस्ट्री की पुरुष-प्रधान सोच है। यहां महिलाओं के कपड़ों में सुविधा से ज्यादा स्टाइल पर ध्यान दिया जाता है, जिससे कपड़ों का डिजाइन उनके बॉडी को पतला और फॉर्म-फिटिंग दिखने के लिए बनाया जाता हैं।

हैंडबैग मार्केट का भी है असर

Handbag Industry

महिलाओं के जेब छोटे रखने का एक और बड़ा कारण हैंडबैग इंडस्ट्री को भी माना जाता है। बाजार में कई तरह के स्टाइलिश बैग्स उपलब्ध हैं, जिन्हें फैशन ट्रेंड्स के हिसाब से डिजाइन किया जाता है। बड़े ब्रांड्स को लगता है कि अगर महिलाओं की जेबें बड़ी होंगी तो हैंडबैग्स की बिक्री कम हो सकती है। यही कारण है कि महिलाओं के कपड़ों में जेबों को छोटा रखा जाता है।

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