Pm Awas Yojana: सीएम विष्णुदेव साय प्रदेशभर में दावा कर रहे हैं कि पीएम आवास में फर्जीवाड़ा हुआ, तो सीधे कलेक्टर पर कार्रवाई होगी। यहां तो कलेक्टर की नाक के नीचे ही खेला हो गया।
Pm Awas Yojana: @ गौरव शर्मा। गरियाबंद जिले में पीएम आवास के नाम पर लूट-खसोट का धंधा चल रहा है। फर्जीवाड़े की सबसे ज्यादा शिकायत छुरा और फिंगेश्वर ब्लॉक में है। अब इसमें खुद पीएम आवास योजना का जिला समन्वयक फंसता नजर आ रहा है। उसने पैतृक गांव में अपने पिता के नाम पर पीएम आवास मंजूर करवा दिया। तीन पिलर खड़े कर एक दीवार बनाई और मकान पूरा बताकर योजना के तहत 2 किस्त भी निकाल लिए। वो भी तब, जब उनके पास पहले से पक्का मकान है। उधर, राज्य के मुखिया सीएम विष्णुदेव साय प्रदेशभर में दावा कर रहे हैं कि पीएम आवास में फर्जीवाड़ा हुआ, तो सीधे कलेक्टर पर कार्रवाई होगी। यहां तो कलेक्टर की नाक के नीचे ही खेला हो गया।
पूरा मामला फिंगेश्वर ब्लॉक के बेलर ग्राम पंचायत का है। 2024-25 में यहां पीएम आवास योजना के गरियाबंद जिला समन्वयक विजय साहू के पिता के नाम पर मकान को मंजूरी मिली। नियमत: परिवार के सदस्य सरकारी नौकरी में हों और वार्षिक आय 3 लाख से ज्यादा हो, तो ऐसे लोग पीएम आवास के लिए पात्र नहीं माने जाते। बेलर गांव के मामले में हितग्राही के दोनों बेटे सरकारी नौकरी में हैं। संभव है कि हितग्राही को परिवार से अलग दिखाकर योजना के तहत राशि मंजूर करवाई गई हो, फिर भी योजना का फायदा उठाने के पीछे मकान बनाने की नीयत नहीं, भ्रष्टाचार था।
वो इसलिए क्योंकि मौके पर तीन पिलर और एक दीवार खड़ी कर मकान को पूरा बता दिया गया, जबकि यह आधा-अधूरा स्ट्रक्चर हितग्राही के पुराने पक्के मकान से लगा हुआ है। अलग से कोई स्वतंत्र मकान नहीं है। ऐसे में जियो टैगिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं, जिसे लेकर खुद जिले के कलेक्टर ने दावा किया था कि इस तकनीक को अमल में लाने के बाद मॉनिटरिंग तगड़ी होगी। भ्रष्टाचार रूकेगा। हालांकि, उनके अपने मातहतों के बनाए चोर रास्ते इस दावे पर पलीता लगा रहे हैं।
मई महीने में ही छुरा के रसेला से पीएम आवास में घोटाला सामने आया। यहां पूर्व सरपंच पर आरोप था कि 2024 में उसने गांव में जितने लोगों के नाम पर भी पीएम आवास स्वीकृत हुए, उनसे चढ़ावा लिया। पहली किस्त के रूप में सरकार की ओर से 40 हजार मिले, चॉइस सेंटर वाले ने इसमें से 6 हजार काटकर हितग्राहियों को 34 हजार रुपए ही दिए।
देवभोग और मैनपुर जनपद में मैदानी अमले ने कई अधूरे मकानों को पूरा बताकर फर्जी जियो टैगिंग कर दी। जून महीने में 15 दिनों के भीतर 1366 मकानों को पूरा बताया, जबकि इनमे से 400 से ज्यादा मकान संदेहास्पद थे। जांच में पता चला कि 1 मकान 2 लोगों के नाम पर दिखाया गया। पुरनापानी गांव में दो जियो टैगिंग एक ही मकान में की गई। ऐसी 30 गड़बड़ी मिली। झाखरपारा में भी एक मकान के अलग-अलग एंगल से फोटो लेकर 2 जियो टैगिंग की।
जिले में पीएम आवास योजना में फर्जीवाड़ा करने के मामले में पहले कई कुछएक कर्मचारियों पर छिटपुट कार्रवाई हुई है। बेलर गांव जैसे ही एक मामले में देवभोग के पूर्व ब्लॉक समन्वयक की नौकरी तक जा चुकी है। अब जिला समन्वयक भी उसी राह हैं। प्रशासन वैसी कार्रवाई करता है या नहीं! इस पर भी चर्चा का बाजार गरम है। बहरहाल, बेलर गांव में पीएम आवास के नाम पर फर्जीवाड़े का यह इकलौता मामला नहीं है। सूत्रों की मानें तो गांव में ऐसे और भी कई मकान हैं, जिन्हें हितग्राहियों की पात्रता नजरअंदाज करते हुए मंजूर किया गया। ऐसे में इलाके में बने सभी पीएम आवास के हितग्राहियों की जांच और कार्रवाई की मांग उठ रही है।
पीएम आवास के तहत फर्जी तरीके से पैसे निकालने का भंडाफोड़ होने के बाद मकान की तीसरी किस्त रोकने की सूचना है। जियो टैगिंग को लेकर आवास मित्र पर भी सवाल उठ रहे हैं। मीडिया से बातचीत में आवास मित्र कामेश सिन्हा ने बताया, जिला समन्वयक अधिकारी ने अपने पिता के आवास को पूरा बताने कहा था। उनके दबाव की वजह से मुझे अधूरे मकान की जियो टैगिंग करनी पड़ी। फर्जीवाड़े में उसने खुद को निर्दोष बताते हुए योजना के जिला समन्व्यक को जिम्मेदार ठहराया। इस प्रकरण में योजना के ब्लॉक समन्वयक के साथ तकनीकी सहायक की भूमिका भी संदेह के दायरे में है।
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मई महीने में पीएम आवास 2.0 के सर्वे में नाम शामिल करवाने के लिए छुरा ब्लॉक के अतरमरा गांव में लोगों से 3 हजार रुपए से लेकर 10 हजार रुपए की वसूली करने का मामला सामने आया। गांव के लोगों ने मामले में मुख्य रोजगार सहायक और आवास मित्र के खिलाफ विधायक से शिकायत की। सुशासन तिहार के दौरान भी कई आवेदन दिए गए। बताते हैं कि जनपद स्तर पर जांच के बाद फाइल जिला पंचायत को भेज दी गई थी।
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