Jehanabad Vidhan Sabha 2025 पटना जिला से सटे जहानाबाद में अब सब कुछ सामान्य है। लेकिन, 80 के दशक की शुरुआत में यह क्षेत्र खूनी संघर्ष को लेकर जाना जाता था। किसान और मजदूरों के बीच नफरत की खाई बढ़ने लगी थी। जो कि 1986 आते आते जातीय हिंसक संघर्ष के रूप में तब्दील हो गया। उसके बाद हत्याओं का जो दौर शुरू हुआ वह वर्ष 2000 तक चलता रहा।
Jehanabad Vidhan Sabha बिहार में विधानसभा चुनाव में तो अभी समय है, लेकिन जीत अपने नाम करने के लिए संभावित प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतर गए हैं। हर एक सीट पर चार-पांच प्रत्याशी अपना दावा ठोंक रहे हैं। कमोवेश हर दल में यही हाल है। बाजी जीतने के लिए संभावित प्रत्याशी चौपाल से लेकर नुक्कड़ नाटक से अपनी बातों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा जहानाबाद विधानसभा का है। इस सीट पर वर्तमान में तो आरजेडी का कब्जा है, लेकिन पार्टी में उनका विरोध भी हो रहा है। आरजेडी के सामने अब इस सीट को बचाने की जहां चुनौती है, वहीं एनडीए गठबंधन के सामने इस सीट को अपने नाम करने की चुनौती है।
जहानाबाद विधानसभा 1951 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक 17 चुनाव देख चुका है। 2025 में जहानाबाद में 28वां विधानसभा चुनाव होगा। जहानाबाद सीट पर मुख्य मुकाबला महागठबंधन और एनडीए के बीच होने की संभावना है। हालांकि जन सूराज की इंट्री से यह लड़ाई त्रिकोणिय हो सकती है। लेकिन, यह सब कुछ तय करता है जन सूराज, महागठबंधन और एनडीए से कौन प्रत्याशी होगा। तीनों दलों में प्रत्याशियों की एक लंबी लिस्ट है। एनडीए गठबंधन में यह सीट शुरू से जदयू कोटे में रहा है। इस बार भी इसकी ही संभावना लग रही है।
जदयू से इस सीट पर चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। जदयू के जिलाध्यक्ष दिलीप कुशवाहा जहां इस सीट पर लव कुश समीकरण बताकर यहां दावा कर रहे हैं, वहीं जय प्रकाश सूर्यवंशी पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा और दलित वोटरों का नंबर बताकर अपना दावा कर रहे हैं। अभिराम शर्मा का भूमिहार वोटरों के साथ साथ दलित और पिछड़े वोट का गणित है। वहीं निरंजन केशव प्रिंस भूमिहार वोटरों के साथ साथ केंद्रीय मंत्री ललन सिंह के नाम पर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
इधर, आरजेडी के वर्तमान विधायक सुदय यादव एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। विधायक सुदय यादव आरजेडी के सीनियर नेता मुद्रीका सिंह यादव के बेटा हैं। मुद्रीका सिंह यादव की मौत के बाद पार्टी ने वर्ष 2020 के चुनाव में सुदय यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। सुदय यादव इस सीट से अपनी जीत दर्ज पार्टी की परंपरा को कायम रखा था। लेकिन इस दफा पार्टी के ही कार्यकर्ता उनका विरोध कर रहे हैं। पार्टी के अंदर सुदय यादव के इस विरोध पर पार्टी के नेता अंतर्कलह बताते हैं।
इधर, जिला परिषद सदस्य आभा रानी भी आरजेडी के बैनर तले चौपाल से लेकर नुक्ड़र नाटक तक करवा रही हैं। हालांकि वे इसे गैर राजनीतिक कार्यक्रम बता रही हैं। उनका कहना है कि यह सब कुछ मैं जिला परिषद सदस्य होने के नाते कर रही हूं। इसी प्रकार आरजेदी के जिलाध्यक्ष महेश ठाकुर एक बार फिर से अपनी दावेदारी पेश करने की तैयारी में हैं।
सीट शुरुआत में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, जहां पहले नौ में से छह चुनाव कांग्रेस ने जीते थे। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी और 1969 में शोसित दल को छोड़कर इस सीट पर कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। इस सीट पर कांग्रेस की आखिरी जीत 1985 में हुई थी, जिसके बाद पार्टी का प्रभाव खत्म हो गया। इसके बाद से इस सीट पर आरजेडी का कब्जा रहा है। वर्ष 2000 से लेकर अब तक पार्टी इस सीट पर छह बार जीत दर्ज कर चुकी है। इस जीत की संख्या सात हो सकती थी, यदि 2010 में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा होता। जिसने 13,000 से अधिक वोट काट लिए थे। यह राजद को मिले कुल मतों के लगभग आधे थे। इस विभाजन का फायदा उठाकर जदयू (जनता दल यूनाइटेड) ने जीत हासिल की। वर्तमान में, इस सीट पर आरजेडी का कब्जा है।
पटना जिला से सटे जहानाबाद में अब सब कुछ सामान्य है। लेकिन, 80 के दशक की शुरुआत में यह क्षेत्र खूनी संघर्ष को लेकर जाना जाता था। किसान और मजदूरों के बीच नफरत की खाई बढ़ने लगी थी। जो कि 1986 आते आते जातीय हिंसक संघर्ष के रूप में तब्दील हो गया। उसके बाद हत्याओं का जो दौर शुरू हुआ वह वर्ष 2000 तक चलता रहा। इस अवधि में दोनों पक्षों के बीच हिंसा प्रति हिंसा होती रही। खूनी संघर्ष से परेशान लोग अपनी सुरक्षा के लिए अपने घर की महिलाओं के जेवरात बेचकर हथियार खरीदने लगे थे। लेकिन, वह खत्म हो गया। जहानाबाद में अब सब कुछ सामान्य है।