गोरखपुर

ठांय…ठांय…ठांय… 5-5 गोलियां आंखों में दागी, ‌फिर हार्ट किधर होता है पूछकर बरसाईं थीं और 20 गोलियां

जब कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर हुआ उस वक्त उसकी जुबान पर सिर्फ एक ही बात थी.. “जनेऊ का ख्याल तो किया होता…

3 min read
Dec 05, 2025

31 मार्च 1997, सुबह का समय। लखनऊ का इंदिरानगर इलाका। सड़कों पर बच्चों की खिलखिलाहट गूंज रही थी। स्प्रिंगडेल स्कूल का रिजल्ट डे था। मासूमों की चहल-पहल और माता-पिता के चेहरों पर गर्व और उत्सुकता। तभी अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से अफरा-तफरी मच गई। तीन परछाइयां- एक लम्बा, स्मार्ट और दोनों हाथों में पिस्टल लिए, दूसरा स्टेनगन थामे और तीसरा कवर देते हुए।

सड़क पर औंधे पड़े एक आदमी के चेहरे पर गोलियां दागते हुए, उनमें से एक बुदबुदाया, "बहुत घूर-घूरकर देखता था…!" फिर आंखों में पांच-पांच गोलियां…सीने में दस-दस गोलियां…और आ‌खिर में थूककर बोलता हुआ, "चल बे… खेल खत्म!"

मक्खियों से घिरी लाश पूर्वांचल के सबसे ताकतवर माफिया वीरेंद्र प्रताप शाही की थी, और उस दिन पूरे यूपी में एक नया नाम गूंजा- श्रीप्रकाश शुक्ला।

अब आइए जानते हैं गोरखपुर के साधारण से लड़के का 90 के दशक का सबसे खूंखार अपराधी बनने की कहानी...

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के मामखोर गांव में हुआ था। पिता स्कूल में शिक्षक थे। घर सामान्य था। सब कुछ सही चल रहा था। इसी बीच 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला की बहन के साथ किसी ने छेड़खानी कर दी थी। इस बात से नाराज होकर उसने उस शख्स को बीच बाजार गोली मार दी। 20 साल की उम्र में श्रीप्रकाश ने पहला मर्डर किया। इस हत्याकांड के बाद श्रीप्रकाश बैंकॉक भाग गया था, वहां से वापस आने के बाद मोकामा (बिहार) का रुख किया और सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया।

रेलवे के ठेकों पर पूर्वांचल के दो बड़े नाम

पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय के मुताबिक, 90 के दशक में रेलवे के ठेकों पर पूर्वांचल के दो बड़े नाम, हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही का दबदबा था। रेलवे का पेपर टेंडर सिस्टम अपने आप में आतंक बन चुका था। कोई भी व्यक्ति टेंडर फॉर्म खरीदकर बाहर निकलता, तो दोनों गैंग के लोग उसका नाम नोट करते। अगर वह फॉर्म जमा करने आता और किसी गैंग से ताल्लुक न रखता, तो फॉर्म छीना जाता, फाड़ दिया जाता और विरोध करने पर गोली तक मार दी जाती।

इसी दौर में बिहार के सूरजभान सिंह भी रेलवे में ठेकेदारी कर रहे थे, लेकिन गोरखपुर क्षेत्र में उनका दखल बढ़ाने की हर कोशिश को शाही गैंग के लोग नाकाम कर देते थे। यही तनाव आगे चलकर एक घातक गठजोड़ की वजह बना।

'शाही को मारो, एक नहीं 2 AK-47 दूंगा'

एक हत्या के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकॉक भाग गया था। लौटने पर उसे आसरा मिला सूरजभान सिंह के पास। एक पॉडकास्ट में पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय बताते हैं कि सूरजभान सिंह को किसी स्थानीय दबंग की जरूरत थी। इसी दौरान सूरजभान को श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में बताया गया। सूरजभान सिंह जब गोरखपुर आया करता था तब वह अपने साथ दो-दो एके-47 लेकर आता था। श्रीप्रकाश शुक्ला ने पहली बार के-47 सूरजभान के पास देखी। उसे नए और ब्रांडेड हथियार का काफी शौक था। वह कपड़े भी ब्रांडेड पहनता था।

एक मुलाकात के दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला ने सूरजभान से कहा कि दादा आप मुझे एक एके-47 दे दीजिए। सूरजभान ने जवाब दिया, “एक नहीं, दो दूंगा… लेकिन पहले वीरेंद्र शाही को मारो।” यहीं से शुरू हुआ शुक्ला का वह खूनी सफर जिसने पूर्वांचल के अपराध इतिहास में उसकी पहचान हमेशा के लिए दर्ज कर दी।

बीच सड़क 126 गोलियां मारी

पांडेय के अनुसार, गोरखपुर में शाही और शुक्ला की पहली भिड़ंत के दौरान शुक्ला ने जीवन में पहली बार AK-47 चलाई।
हमले में शाही का गनर मारा गया, जबकि वह किसी तरह बच निकले।

शुक्ला ने लौटकर कहा, “काम कर दिया, AK 47 दे दीजिए।” लेकिन सूरजभान अड़ा रहा, शाही जिंदा है, हथियार नहीं मिलेगा।” इसके बाद से श्रीप्रकाश शुक्ला ने वीरेंद्र शाही का पीछा करना शुरू कर दिया। आखिरकार उसने 31 मार्च 1997 को लखनऊ के इंदिरानगर में शाही की बेरहमी से हत्या कर दी। इस वारदात के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में एक नाम गूंजा-वो था श्री प्रकाश शुक्ला।

महज 19 साल की उम्र में अपराध की राह पर उतरा यह गैंगस्टर धीरे-धीरे सियासत, पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया। उसकी दहशत का आलम ऐसा था कि रसूखदार नेता से लेकर बड़े कारोबारी तक उसका नाम सुनकर सहम जाते थे। अपराध की दुनिया में उसके हौसले इतने बढ़ चुके थे कि उसने एक समय मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी लेने तक से परहेज़ नहीं किया। 90 के दशक में श्रीप्रकाश का आतंक इस हद तक फैल गया कि उसे रोकने के लिए 1998 में यूपी पुलिस को विशेष कार्यबल (STF) का गठन करना पड़ा।

और आखिरकार वह दिन भी आ गया

22 सितंबर 1998 को गाजियाबाद में यूपी STF ने एक मुठभेड़ में श्रीप्रकाश को ढेर कर दिया। उस ऑपरेशन में कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। इनमें यूपी पुलिस के सुपर कॉप कहे जाने वाले इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा भी शामिल थे। हाल ही में एक पॉडकास्ट में बातचीत के दौरान जब इंस्पेक्टर अविनाश से पूछा गया कि “मरते वक्त श्रीप्रकाश के आखिरी शब्द क्या थे?” तो उन्होंने खुद यह राज खोला। अविनाश मिश्रा ने बताया कि श्रीप्रकाश ने अंतिम सांसें लेते हुए सिर्फ इतना कहा था-“जनेऊ का ख्याल तो किया होता…”

Updated on:
05 Dec 2025 03:32 pm
Published on:
05 Dec 2025 03:03 pm
Also Read
View All

अगली खबर