मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने पिछले 50 साल से लंबित प्रथम अपील पर गुरुवार को अपना फैसला सुना दिया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने पिछले 50 साल से लंबित प्रथम अपील पर गुरुवार को अपना फैसला सुना दिया। कोर्ट ने सैयद हबीब शाह उर्फ नवाब मियां द्वारा अपने बड़े भाई सैय्यद मंसूर शाह के पक्ष में निष्पादित किए गए एक दस्तावेज 'दस्तबरदारी' (संपत्ति त्यागने का दस्तावेज) को शून्य और अमान्य घोषित कर दिया है। इसके साथ ही, हबीब शाह के कानूनी वारिसों का पुश्तैनी संपत्ति में 2/5वां हिस्सा बहाल कर दिया गया है। यह हाईकोर्ट का सबसे पुराना केस भी था। दादा ने केस लगाया था और पोता केस लड़ रहा था। क्या है मामला सैयद हबीब शाह के कानूनी वारिसों ने निचली अदालत ने 6 जनवरी 1973 के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें 23-फरवरी 1966 के 'दस्तबरदारी' दस्तावेज को त्यागपत्र विलेख माना गया था। सैयद हबीब शाह ने हाईकोर्ट में जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। हाईकोर्ट में 1976 से प्रथम अपील लंबित चली आ रही थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनिल मिश्रा ने तर्क दिया कि जो दस्तबरदारी लिखवाई गई थी, उसके लिए दबाव बनाया गया था। इसलिए यह दस्तावेज वैध नहीं है। प्रतिवादियों ने अपील का विरोध किया। कोर्ट ने अंतिम बहस के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। अपील पर कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला कई दशकों से लंबित था और अपील को अंतिम सुनवाई के लिए लाने में प्रतिवादियों द्वारा लगातार बाधाएं उत्पन्न की गईं। कोर्ट ने उल्लेख किया कि मूल रिकॉर्ड वर्ष 2006 में नष्ट कर दिया गया था और रिकॉर्ड के पुनर्निर्माण में भी प्रतिवादियों की ओर से असहयोग रहा। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी सुनवाई से बचने के लिए लगातार कोशिश कर रहे थे।