शास्त्रीय संगीत की महान परंपरा और तानसेन की विरासत के लिए विख्यात ग्वालियर आज अपनी संगीत शिक्षा को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है।
ग्वालियर. शास्त्रीय संगीत की महान परंपरा और तानसेन की विरासत के लिए विख्यात ग्वालियर आज अपनी संगीत शिक्षा को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय तानसेन संगीत समारोह के समापन के बीच शिक्षक पदों पर वर्षों से भर्ती न होना, नीतिगत अस्थिरता और प्रशासनिक उदासीनता के कारण शहर के तीन सरकारी अनुदानित संगीत विद्यालय - भारतीय संगीत, तानसेन संगीत व शंकर गांधर्व संगीत विद्यालय - अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं।
पद स्वीकृत, व्यवस्थाएं जर्जर
तीनों विद्यालयों में शिक्षक पद स्वीकृत होने के बावजूद अप्रेल 2000 के बाद एक भी स्थायी नियुक्ति नहीं हुई। 1970-80 के दशक में नियुक्त शिक्षक सेवानिवृत्त होते गए और उनकी जगह कोई नहीं आया। आज हालात यह हैं कि प्रत्येक विद्यालय में दो-तीन शिक्षक ही बचे हैं, कई विषयों की कक्षाएं बंद हो चुकी हैं। 75 वर्षीय शिक्षक आज भी कक्षाएं ले रहे हैं।
तीन इलाके, एक जैसी अनदेखी…
तीनों संस्थान अलग-अलग सामाजिक और भौगोलिक क्षेत्रों के विद्यार्थियों को संगीत शिक्षा उपलब्ध कराते रहे हैं। इनकी सबसे बड़ी ताकत संध्या कक्षाएं थीं, जिससे स्कूल, कॉलेज और नौकरीपेशा युवा संगीत सीख पाते थे।
अप्रेल, 2000 के बाद नहीं हुई कोई भर्ती
संगीत विद्यालय: 3 (हुजरात, किलागेट, कंपू)
स्थापना: 1970 का दशक
कोर्स: 2, 4 और 6 वर्षीय डिप्लोमा
कार्यरत शिक्षक: केवल 2-3
नई भर्ती: अप्रेल 2000 के बाद शून्य
मेंटेनेंस ग्रांट: कभी नहीं
फीस: क्र25 से बढ़कर क्र100
कोर्ट केस: 4-5 साल से लंबित
आशंका: 2-3 साल में संस्थान बंद