MP News: मल्टीप्लेक्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के कारण लोग सिनेमाघरों से दूर हो गए है...
MP News: कभी शहर की शान रहे सिनेमाघरों का चलन लगातार फीका पड़ रहा है। ग्वालियर के 14 नामी-गिरामी टॉकीज में से अब 10 पर ताला लग चुका है, और जो बचे हैं, उनकी टिकट खिड़की पर भी इक्का-दुक्का लोग ही नजर आते हैं। मल्टीप्लेक्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते चलन ने सिल्वर स्क्रीन पर ब्रेक लगा दिया है, जिससे टॉकीज मालिक दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तरफ सिने प्रेमियों का मोहभंग हो गया है, तो दूसरी तरफ सिनेमाघरों की इमारतें धीरे-धीरे जर्जर हो रही हैं।
रॉक्सी, हरिनिर्मल, चित्रा, फिल्मस्तान, यादव, भारत, रीगल, श्री, अल्पना, हनुमान और बसंत टॉकीज… कुछ बरस पहले तक ये सिनेमाघर शहर की पहचान थे। नई सड़क निवासी आशुतोष मिश्रा याद करते हैं कि ये सिनेमाघर आज भले वीरान हैं, लेकिन कुछ बरस पहले तक इनके पर्दे पर कई फिल्मों ने सिल्वर और गोल्डन जुबली के झंडे गाढ़े हैं। लेकिन कोरोना काल के बाद ज्यादातर टॉकीज के दरवाजे बंद हो गए और फिर दोबारा नहीं खुले। फिलहाल शहर में डिलाइट, कैलाश और काजल टॉकीज ही बमुश्किल चल रहे हैं।
गेंडेवाली सड़क निवासी रोहित कहते हैं कि फिल्मों का शौक तो लोगों को आज भी है, बस उन्हें देखने की जगह बदली हैं। टॉकीज की जगह मल्टीप्लेक्स और होम थियेटर आ गए हैं, जिससे लोग घर पर ही सिनेमा हॉल का लुत्फ उठा रहे हैं। यह बदलाव सिनेमाघरों के पतन का मुख्य कारण बन रहा है।
शहर में जहां एक तरफ सिनेमाघर बंद पड़े हैं, वहीं दूसरी तरफ यातायात जाम एक बड़ी समस्या है। पुलिस की नजर में अगर इन सिनेमाघरों के संचालक आगे आएं तो उनकी खाली पार्किंग शहर की यातायात समस्या में मददगार साबित हो सकती है।
यातायात एएसपी अनु बेनीवाल ने बताया, सड़कों पर पार्क होने वाले वाहनों को वीरान सिनेमाघरों की पार्किंग में खड़ा किया जाए तो कई बाजारों में जाम से काफी निजात मिल सकती है। इसके लिए टॉकीज संचालकों की रजामंदी जरूरी है और इस दिशा में प्रयास किए जाएंगे। यह देखना होगा कि क्या टॉकीज मालिक इस सुझाव पर विचार करते हैं, जिससे उनके खाली पड़े परिसर का सदुपयोग हो सके।