कई बार हादसे भी जिंदगी जीने के मायने बदल देते हैं। ऐसा कुछ हुआ हनुमानगढ़ निवासी रमन झूंथरा के साथ। करीब डेढ़ दशक पहले एक हादसे ने रमन के छोटे भाई राहुल की जिंदगी छीन ली।
हनुमानगढ़. कई बार हादसे भी जिंदगी जीने के मायने बदल देते हैं। ऐसा कुछ हुआ हनुमानगढ़ निवासी रमन झूंथरा के साथ। करीब डेढ़ दशक पहले एक हादसे ने रमन के छोटे भाई राहुल की जिंदगी छीन ली। शोक से परिवार के निकलने के बाद रमन ने भाई की याद में बेसहारा लोगों की जिंदगी में कुछ खुशियां घोलने की सोच के साथ जिला मुख्यालय पर राहुल गुप्ता मैमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। जंक्शन में बाबा दीप कॉलोनी में नि:शुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण एवं अनुसंधान केंद्र का संचालन शुरू किया।
इस केंद्र पर ज्यादातर दिव्यांग हाथों के बल रेंगकर आते थे। लेकिन कुछ घंटे बाद जब वे यहां से निकलते तो उनके कृत्रिम अंग लगे होते। कृत्रिम अंग लगने के बाद उनके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक आसानी से देखी जा सकती थी। दिव्यांगों की सेवा का उक्त कार्य डेढ़ दशक से अधिक समय से निरंतर जारी है।
जानकारी के अनुसार करीब 17 वर्ष पहले उन्होंने पहला कैम्प लगाया। पीडि़तों की संख्या देख वह हैरान रह गए। इसके बाद वह हर वर्ष नि:शुल्क शिविर लगाकर दिव्यांगों के जीवन में खुशियां बांटने लगे। संस्था ने करीब बारह राज्यों और लेह-लद्दाख से लेकर सभी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर जाकर सेना के साथ मिलकर शिविर लगाया। सीमावर्ती क्षेत्रों में बारुदी सुरंगों की वजह से अंग-भंग के शिकार लोगों की तादाद अधिक रहती। परिणामस्वरूप हजारों पीडि़तों को कृत्रिम अंग लगाए।
बाद में हनुमानगढ़ जंक्शन स्थित दीप कालोनी में नौ अगस्त 2013 को नि:शुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण एवं अनुसंधान केंद्र की स्थापना कर स्थाई रूप से लोगों की नि:शुल्क सेवा शुरू की। यहां वह नियमित रूप से सेवा दे रहे हैं। इनके प्रयास के परिणामस्वरूप हनुमानगढ़ के आसपास वैशाखी लेकर चलने वाले लोगों की संख्या अब करीब-करीब शून्य हो गई है। शहर को वैशाखी मुक्त बनाने की सोच के साथ उन्होंने जो मुहिम शुरू की थी, वह अब कहीं न कहीं पूरी होती नजर आ रही है। अब भी दूर-दराज से लोग इनके केंद्र पर पहुंचकर नि:शुल्क कृत्रिम अंग लगवा रहे हैं।
रमन की मानें तो अब तक चालीस हजार से अधिक लोग इस केंद्र पर आकर लाभान्वित हो चुके हैं। जो दिव्यांग कृत्रिम अंग लगाकर यहां से जा रहे हैं, वह आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं। छोटा-मोटा काम करके वह आर्थिक रूप से भी सक्षम हो रहे हैं। इससे उनकी जिंदगी पहले की तुलना में आसान बन रही है।
बचपन में मिली सीख
कहते हैं व्यक्ति के माता-पिता ही उनके असल गुरु होते हैं। जो जिंदगी जीने के सही मायने उन्हें सिखाते हैं। रमन को भी सेवा की सीख माता-पिता से मिली। इसके कारण वह छोटी उम्र से ही समाजसेवा में रुचि रखने लगे। रमण झूंथरा बताते हैं कि 2007 में उन्होंने राहुल गुप्ता मैमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट का गठन किया। इसी वर्ष मारवाड़ी युवा मंच से जुडऩा हुआ। हनुमानगढ़ में सचिव के रूप में कार्य शुरू किया। पहला काम नि:शुल्क अंग प्रत्यारोपण कैम्प लगाना था। जरुरतमंदों के चेहरे पर संतोष का भाव देख मन को काफी सुकून मिला।
इसलिए इस काम को और समय देने लगा। झूंथरा परिवार के सेवा कार्यों को राज्य सरकार स्तर पर काफी सराहना मिली। तत्कालीन वसुंधराराजे सरकार ने उन्हें राज्य स्तरीय सम्मान दिया। तत्कालीन सामाजिक अधिकारिता विभाग के मंत्री डॉ. अरुण चतुर्वेदी ने रमण झूंथरा को सम्मानित किया। इसके अलावा जिला प्रशासन, भारतीय सेना, न्यायिक विभाग सहित अन्य सामाजिक संगठनों की ओर से रमण झूंथरा सम्मानित हो चुके हैं।