Rabies Injection : उत्तर प्रदेश में 22 वर्षीय कबड्डी खिलाड़ी बृजेश सोलंकी और हरदोई के 39 वर्षीय राजू की रेबीज से मौत ने सभी को झकझोर दिया है। एक पिल्ले को बचाते वक्त बृजेश को कुत्ते ने काटा, लेकिन उन्होंने एंटी-रेबीज वैक्सीन नहीं लगवाई और कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गई।
Kabaddi Player Brijesh Solanki Dies of Rabies : हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक होनहार 22 वर्षीय कबड्डी खिलाड़ी, बृजेश सोलंकी और हरदोई के 39 वर्षीय राजू की मौत की रेबीज के कारण हुई दर्दनाक मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। एक छोटे से पिल्ले को नाले से बचाने की इंसानियत भरी कोशिश ने बृजेश जान ले ली, क्योंकि कुत्ते के काटने के बाद उन्होंने एंटी-रेबीज वैक्सीन (Rabies Injection) नहीं लगवाई। यह घटना हम सभी के लिए एक बड़ी चेतावनी है कि रेबीज कितना घातक हो सकता है और इसके प्रति लापरवाही कितनी भारी पड़ सकती है।
हरदोई में भी एक ऐसी ही घटना सामने आई, जहां एंटी-रेबीज इंजेक्शन की दूसरी खुराक समय पर न लगवाने के कारण 39 वर्षीय राजू की मौत हो गई। एक जून को आवारा कुत्ते के काटने के बाद उन्होंने तीन जून को पहली खुराक ली थी, लेकिन दूसरी खुराक छह जून के बजाय देरी से लगवाई। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दूसरी खुराक लगवाने पहुंचे राजू की हालत बिगड़ गई और उन्हें पानी से डर लगने लगा (हाइड्रोफोबिया)। डॉक्टरों ने उन्हें मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत हो गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, रेबीज एक वायरल बीमारी है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है और इसे टीकाकरण से रोका जा सकता है। एक बार लक्षण दिखाई देने के बाद रेबीज का इलाज लगभग असंभव होता है और मनुष्यों में यह लगभग हमेशा घातक होता है।
यह एक जूनोटिक बीमारी है जिसका अर्थ है कि यह जानवरों से मनुष्यों में फैलती है। लगभग 99% मानव रेबीज के मामलों में कुत्ते प्राथमिक स्रोत होते हैं। 5 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। यह वायरस कुत्ते, बिल्लियां, पशुधन और जंगली जानवर जैसे स्तनधारियों को संक्रमित कर सकता है। यह आमतौर पर संक्रमित जानवरों की लार से फैलता है, अक्सर काटने, खरोंचने या श्लेष्म झिल्ली (जैसे आंखें, मुंह या खुले घाव) के संपर्क में आने से।
रेबीज की ऊष्मायन अवधि (Incubation period) आमतौर पर दो से तीन महीने होती है हालांकि यह एक सप्ताह से लेकर एक साल तक भी हो सकती है। शुरुआती लक्षण अक्सर सामान्य होते हैं और इसमें बुखार, दर्द या घाव के आसपास असामान्य संवेदनाएं जैसे झुनझुनी, चुभन या जलन शामिल हो सकते हैं। जैसे ही वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचता है, यह मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में गंभीर और घातक सूजन पैदा करता है।
उग्र रेबीज (Furious Rabies): यह अति सक्रियता, अत्यधिक उत्तेजना, मतिभ्रम, खराब समन्वय, और पानी (हाइड्रोफोबिया) या हवा (एरोफोबिया) के डर से चिह्नित होता है। स्थिति तेजी से बिगड़ती है, जिसमें आमतौर पर कुछ दिनों के भीतर हृदय और श्वसन विफलता (Heart and Respiratory Failure) के कारण मृत्यु हो जाती है।
पक्षाघात रेबीज (Paralytic Rabies): लगभग 20% मामलों में देखा जाता है यह अधिक धीरे-धीरे और सूक्ष्मता से बढ़ता है। मांसपेशियों का पक्षाघात (muscle paralysis) काटने के क्षेत्र के पास शुरू होता है और धीरे-धीरे फैलता है, जिससे कोमा और मृत्यु हो जाती है। इस रूप का अक्सर गलत निदान किया जाता है, जिससे रेबीज की रिपोर्टिंग कम होती है।
कुत्तों का टीकाकरण: कुत्तों का सामूहिक टीकाकरण, जिसमें पिल्ले भी शामिल हैं, मनुष्यों में रेबीज को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है, क्योंकि यह वायरस को उसके प्राथमिक स्रोत पर लक्षित करता है। केवल आवारा कुत्तों को मारना रेबीज के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद नहीं करता है।
जागरूकता बढ़ाना: बच्चों और वयस्कों दोनों को कुत्तों के साथ सुरक्षित रूप से बातचीत करने, काटने से कैसे बचें, और यदि किसी जानवर के रेबीज होने का संदेह है तो क्या कदम उठाएं, इसके बारे में शिक्षित करना रेबीज की रोकथाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिम्मेदार पालतू पशु स्वामित्व को बढ़ावा देना भी टीकाकरण प्रयासों का समर्थन करता है।
मानव टीकाकरण: रेबीज से लोगों की रक्षा के लिए सुरक्षित और प्रभावी टीके उपलब्ध हैं, दोनों निवारक उपाय के रूप में और संभावित जोखिम के बाद भी।
मानसून का मौसम कुत्तों के लिए प्रजनन का समय होता है। इस समय आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती है और वे पहले से ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। कुत्तों के अलावा बिल्लियों, लोमड़ियों, भेड़ियों, जंगली सुअरों और चमगादड़ों के काटने से भी रेबीज फैलता है। 20 से 90 दिनों में इसका असर दिखता है, लेकिन कुछ मामलों में सालों बाद भी लक्षण देखने को मिले हैं। इससे पीड़ित को सुस्ती, थकान, सिरदर्द, घाव की जगह पर चुभन महसूस होती है। ऐसे में पानी पीने या उसके बारे में सुनने से ही मांसपेशियों में जकड़न होने लगती है। तेज हवा के झोंके से भी मरीज की हालत खराब होने लगती है। एक अजीब सी घबराहट और डर मरीज महसूस करता है। ऐसी स्थिति में बचाव के लिए सही समय पर इंजेक्शन और डॉक्टर से ट्रीटमेंट जरूर लें।
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि रेबीज के टीके को आप सामान्य तौर पर भी लगवा सकते हैं। "प्रीवेंशन इज बेटर दैन क्योर" यानी रोकथाम इलाज से बेहतर है। डॉ. किशोर कहते हैं कि रेबीज का इंजेक्शन इस बीमारी का इलाज नहीं है, यह बचाव है। एक बार शरीर में रेबीज का वायरस घुस गया और इसके लक्षण दिखने लग गए तो रेबीज का टीका आपको बचा नहीं सकता है। ऐसे में बचाव के तौर पर इस टीके को लगवा सकते हैं।
डॉ. किशोर कहते हैं कि इस बात का ध्यान रखें कि उच्च जोखिम वाले लोग रेबीज का टीका लगवा लें। अगर टीका नहीं लगवाया है और कभी किसी जानवर ने काट लिया तो 24 से 72 घंटे के भीतर टीका हर हाल में लगवा लें। इसके बाद वैक्सीन लगवाने का कोई खास फायदा नहीं होता है। इतने समय के बाद रेबीज का वायरस शरीर में चला जाता है और इस बीमारी के लक्षण शुरू हो जाते हैं। एक बार लक्षण आ जाते हैं तो वैक्सीन का कोई फायदा नहीं होता है। इस स्थिति में मरीज की जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
रेबीज का टीका इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। आमतौर पर आपको 28 दिनों में 3 खुराकें दी जाती हैं। लगभग 95% लोगों को रेबीज की तीन डोज से इस बीमारी से सुरक्षा मिल जाती है। सुरक्षा कितने समय तक चलती है यह अलग-अलग हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यह कम से कम 2 साल तक चलती है। रेबीज के जोखिम वाले लोगों को सुरक्षित रहने के लिए रेबीज वैक्सीन की 1 या अधिक बूस्टर डोज हर 2 से तीन साल में ले लेनी चाहिए। इससे लंबे समय तक बीमारी से बचाव रहेगा।