Multiple myeloma : भोजपुरी और मैथिली की सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा ((Sharda Sinha cancer death)) का हाल ही में मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) नामक गंभीर बीमारी के कारण निधन हो गया, जिससे इस खतरनाक ब्लड कैंसर को लेकर लोगों में जागरूकता और चिंता बढ़ गई है।
Multiple myeloma : हाल ही में प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा (Sharda Sinha cancer death) का मल्टीपल मायलोमा के कारण निधन हो गया। उनकी इस बीमारी से जूझने की कहानी ने देशभर में इस घातक ब्लड कैंसर को लेकर जागरूकता और चिंता बढ़ा दी है। यह बीमारी शरीर की प्लाज्मा कोशिकाओं से शुरू होती है, जो संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाती हैं। जब ये कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं, तो मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) जैसी गंभीर बीमारी का रूप ले लेती हैं।
मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) एक प्रकार का ब्लड कैंसर है, जिसमें शरीर की प्लाज्मा कोशिकाओं में असामान्य बढ़ोतरी होती है। प्लाज्मा कोशिकाएं सामान्यतया इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए होती हैं, लेकिन इस बीमारी में ये कोशिकाएं हड्डियों और शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित करने लगती हैं। डॉ. राहुल भार्गव ने इस बीमारी के बारे में बताया, "यह बीमारी आमतौर पर 60 साल की उम्र के बाद अधिक होती है, लेकिन भारत में इसके मामले 50 की उम्र के बाद भी देखने को मिल रहे हैं।"
मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) के लक्षण अक्सर शुरुआती दौर में स्पष्ट नहीं होते, लेकिन हड्डियों में दर्द, कमजोरी, थकान, और बार-बार संक्रमण इसका संकेत हो सकते हैं। आमतौर पर रक्त परीक्षण और बोन मैरो परीक्षण के माध्यम से इसका निदान किया जाता है।
मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। कीमोथेरेपी और आधुनिक दवाइयों की मदद से मरीज 5 से 7 साल तक जी सकते हैं और कुछ मामलों में 10-15 साल तक भी जीवन का विस्तार हो सकता है। डॉ. राहुल भार्गव का कहना है, आज बाजार में कई नई दवाइयां उपलब्ध हैं जिनसे इस बीमारी को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। पहले इस बीमारी के मरीज दो से तीन साल तक ही जीवित रह पाते थे, लेकिन अब स्थिति बेहतर है।"
बोन मैरो ट्रांसप्लांट मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) के मरीजों के लिए एक प्रभावी उपचार विकल्प है। इससे मरीजों की जीवन प्रत्याशा 3 से 4 गुना तक बढ़ सकती है। डॉ. भार्गव का मानना है कि "हर मल्टीपल मायलोमा के मरीज का 70 साल की उम्र तक बोन मैरो ट्रांसप्लांट होना चाहिए। इससे उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।"
मल्टीपल मायलोमा (Multiple myeloma) के इलाज के लिए शोधकर्ता नई दवाइयों पर काम कर रहे हैं, जिनके आने से उपचार में और भी सुधार की संभावना है। विशेषज्ञों के अनुसार, जल्द ही एक नई दवा आने वाली है जो 90 प्रतिशत तक मरीजों पर सकारात्मक असर डाल सकती है। इससे मरीजों का जीवन और बेहतर हो सकेगा।
डॉ. राहुल भार्गव के अनुसार, मल्टीपल मायलोमा के कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन जोखिम को बढ़ा सकते हैं, लेकिन इसे वंशानुगत बीमारी के रूप में नहीं माना जाता है।