Polygraph and Narco Tests : हाल ही में कोलकाता आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए रेप मामले के आरोपी के पॉलीग्राफ टेस्ट का आदेश दिया गया है।
Polygraph and Narco Tests : हाल ही में कोलकाता आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए रेप मामले के आरोपी के पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Tests) का आदेश दिया गया है। लेकिन अक्सर लोग पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट (Narco Tests) को एक ही समझ लेते हैं। आइए जानें कि इन दोनों टेस्टों में क्या अंतर है और उनका उपयोग कैसे किया जाता है।
पॉलीग्राफ, जिसे आमतौर पर लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है, का उपयोग व्यक्ति के झूठ बोलने की संभावना को मापने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट में व्यक्ति के शरीर पर विशेष सेंसर्स लगाए जाते हैं जो उसके हृदय की धड़कन, रक्तचाप और श्वास की दर को रिकॉर्ड करते हैं। इन डेटा को एक ग्राफ पर दर्शाया जाता है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की दवा या इंजेक्शन का प्रयोग नहीं किया जाता। टेस्ट पूरी तरह से होश में होता है और व्यक्ति अपने सामान्य मानसिक स्थिति में होता है।
भारत में पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) की सुविधा प्रदान करने वाली कंपनियों में प्रेस्टो इंफोसॉल्यूशंस, मेडिकैम, और रिलायबल टेस्टिंग सॉल्युशंस शामिल हैं। ये कंपनियां पॉलीग्राफ मशीनों का निर्माण और अन्य फोरेंसिक डिवाइस की आपूर्ति करती हैं।
नार्को टेस्ट, जिसे नार्कोएनालिसिस भी कहा जाता है, में आरोपी को सोडियम पेंटोथल नामक दवा का इंजेक्शन दिया जाता है। यह दवा व्यक्ति को बेहोशी की स्थिति में लाकर उसके दिमाग को पूरी तरह से सक्रिय रखती है। इस अवस्था में व्यक्ति को पूछताछ की जाती है, और उम्मीद की जाती है कि वह सत्य बताने में सक्षम होगा।
नार्को टेस्ट (Narco test) से पहले व्यक्ति की फिटनेस जांच की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह दवा के प्रभाव से ठीक रहेगा।
कानूनी पहलू
दोनों प्रकार के टेस्ट के लिए अदालत की मंजूरी और आरोपी की सहमति आवश्यक होती है। कई देशों में नार्को टेस्ट (Narco test) पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, जबकि भारत में यह कुछ स्थितियों में प्रयोग किया जाता है।
कोलकाता आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए रेप मामले के आरोपी के लिए पॉलीग्राफ टेस्ट का आदेश दिया गया है, जो नार्को टेस्ट (Narco test) से पूरी तरह अलग है। जबकि पॉलीग्राफ टेस्ट व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर सच्चाई की जांच करता है, नार्को टेस्ट बेहोशी की स्थिति में पूछताछ करता है। दोनों परीक्षणों का प्रयोग विशिष्ट परिस्थितियों में किया जाता है और दोनों के लिए कानूनी स्वीकृति आवश्यक होती है।