दुनिया की मिसाल हैं श्रीकृष्ण-सुदामा की दोस्ती, किया सुदामा चरित्र का वर्णन
कथावाचक पुष्करदास महाराज ने कहा कि दुनिया आज भी श्रीकृष्ण एवं सुदामा की दोस्ती की मिसाल देती है। कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज्यादा धनवान बना दिया था। दोस्ती के इसी नेक इरादे की लोग आज भी मिसाल देते हैं। सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया। उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानी सच्ची मित्रता यही थी। शनिवार को यहां हुब्बल्ली के गब्बुर गली स्थित श्री रामदेव मंदिर परिसर में चल रही 15 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा, राम कथा एवं नानी बाई रो मायरो में कथावाचक पुष्करदास महाराज ने श्रीमद्भागवत में सुदामा चरित्र का वर्णन किया। कृष्ण-सुदामा की दोस्ती को बताया। उन्होंने कहा कि सुदामा भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे। वे समस्त वेद-पुराणों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण थे। भगवान कृष्ण के सहपाठी रहे सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार से थे। उनके सामने हालात ऐसे थे बच्चों का पेट भरना भी मुश्किल हो गया था।
पड़ोस से चार मुट्ठी मांगकर लाए चावल
गरीबी से तंग आकर एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकते हैं लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकते। ऐसे कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए। ऐसा देखकर सुदामा बहुत दुखी हुए और पत्नी से इसका उपाय पूछा। इस पर सुदामा की पत्नी ने कहा-आप बताते रहते हैं कि द्वारका के राजा कृष्ण आपके मित्र हैं तो क्यों नहीं एक बार उनके पास चले जाते। आपके दोस्त हैं तो आपकी हालत देखकर बिना मांगे ही कुछ न कुछ दे देंगे। इस पर सुदामा बड़ी मुश्किल से अपने सखा कृष्ण से मिलने के लिए तैयार हुए। अपनी पत्नी सुशीला से कहा कि किसी मित्र के यहां खाली हाथ मिलने नहीं जाते इसलिए कुछ उपहार उन्हें लेकर जाना चाहिए। लेकिन उनके घर में अन्न का एक दाना तक नहीं था। कहते हैं कि सुदामा के बहुत जिद करने पर उनकी पत्नी सुशीला ने पड़ोस से चार मु_ी चावल मांगकर लाई और वही कृष्ण के लिए उपहार के रूप में एक पोटली में बांध दिया।
वैभव देख हैरान हुए सुदामा
रामदेव मरुधर सेवा संघ हुब्बल्ली के तत्वावधान में श्रीमद्भागवत महापुराण में सुदामा चरित्र की व्याख्या करते हुए कथावाचक पुष्करदास महाराज ने कहा कि सुदामा जब द्वारका पहुंचे तो वहां का वैभव देखकर हैरान रह गए। पूरी नगरी सोने की थी। लोग बहुत ही सुखी और संपन्न थे। सुदामा किसी तरह से लोगों से पूछते हुए कृष्ण के महल तक पहुंचे और द्वार पर खड़े पहरेदारों से कहा कि वह कृष्ण से मिलना चाहते हैं। लेकिन उनकी हालत देखकर द्वारपालों ने पूछा कि क्या काम है। सुदामा ने कहा कि कृष्ण मेरे मित्र हैं। द्वारपालों ने महल में जाकर भगवान कृष्ण को बताया कोई गरीब ब्राह्मण उनसे मिलने आया है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।
सुदामा को लेने दौड़ पड़े कृष्ण
सुदामा नाम सुनते ही भगवान कृष्ण नंगे पांव सुदामा को लेने के लिए दौड़ पड़े। वहां मौजूद लोग हैरान रह गए कि एक राजा और एक गरीब साधु में कैसी दोस्ती हो सकती है। भगवान कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और पाठशाला के दिनों की यादें ताजा कीं। श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है। इस पर सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे। ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली। भगवान कृष्ण सूखे चावल ही खाने लगे। सुदामा की गरीबी देखकर उनकी आखों में आंसू आ गए। सुदामा कुछ दिन द्वारिकापुरी में रहे लेकिन संकोचवश कुछ मांग नहीं सके। विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोडऩे आए और उनसे गले लगे।
भक्ति एवं उत्साह का माहौल
कथा के बीच में भजनों की रोचक प्रस्तुति से माहौल भक्तिमय हो गया। आज हरि आए विदूर घर पावणां…समेत अन्य कर्णप्रिय भजनों की प्रस्तुति ने समां बांध दिया। श्री रामदेव मरुधर सेवा संघ हुब्बल्ली के अध्यक्ष उदाराम प्रजापत एवं सचिव मालाराम देवासी ने बताया कि 15 दिवसीय श्रीमद्भागवत, राम कथा एवं नानी बाई का मायरा में शहर के विभिन्न स्थानों से भक्तगण शामिल हो रहे हैं। कथा 4 सितम्बर तक चलेगी। श्री रामदेव मरुधर सेवा संघ हुब्बल्ली के केसाराम चौधरी ने बताया कि शनिवार को अखिल भारतीय मानस प्रचार समिति हुब्बल्ली की ओर से प्रभावना रखी गई एवं आरती की गई। कथा में भक्ति एवं उत्साह का माहौल बना हुआ है।