शिक्षा क्षेत्र में बरती जा रही लापरवाही किसी एक परीक्षा का मामला नहीं, बल्कि एक पीढ़ी का भविष्य खराब करना है। मध्यप्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का स्तर सुधारने की जरूरत है। इस क्षेत्र में पढ़ाई, परीक्षा और परिणाम तीनों को लेकर सवाल उठते रहते हैं। ताजा मामला 4 मई को देशभर में हुई नीट-यूजी की […]
मध्यप्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का स्तर सुधारने की जरूरत है। इस क्षेत्र में पढ़ाई, परीक्षा और परिणाम तीनों को लेकर सवाल उठते रहते हैं। ताजा मामला 4 मई को देशभर में हुई नीट-यूजी की परीक्षा का है। इंदौर में 24 परीक्षा केंद्र थे। परीक्षा के दिन आंधी-बारिश के कारण परीक्षा केंद्रों की बिजली गुल हो गई। वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने से कई केंद्रों पर परीक्षार्थियों को मोमबत्ती की रोशनी में परीक्षा देनी पड़ी। कई जगह इसका भी इंतजाम नहीं था। हाईकोर्ट ने इस मामले में दिशा-निर्देश दिए हैं। दरअसल, देशव्यापी और महत्त्वपूर्ण इस परीक्षा में इस प्रकार की लापरवाही प्रशासनिक अफसरों की कार्ययोजना पर सवाल है। ऐसा ‘अफसरीजुर्म’ महज एक बानगी है। इससे पहले भी कई परीक्षाओं में विद्यार्थियों की परेशानी के मामले उजागर होते रहे हैं। परीक्षा हो भी जाए तो मूल्यांकन और फिर परिणाम में गैर जिमेदारी की ‘परंपरा’ निभाई जाती है। इसी के चलते कभी एमपी ऑनलाइन के किसी सेंटर पर कोई मूल्यांकनकर्ता उत्तर पुस्तिकाएं भूल जाता है तो कभी परीक्षा से पहले ही पेपर के पन्ने वायरल हो जाते हैं। एमपीपीएससी की परीक्षाओं में परिणामों की बाट जोहते हुए कई अभ्यर्थी उम्रदराज हो चुके हैं। इस प्रकार के घटनाक्रमों को लेकर अफसरों के पास रटा-रटाया जवाब होता है कि जांच के बाद कार्रवाई करेंगे। यह और बात है कि अब तक प्रदेशभर में हुए शिक्षा घोटालों को लेकर ऐसी कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई, जो मोटी तनवाह लेने वालों में खौफ और जिम्मेदारी का भाव पैदा कर सके। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी में मूल्यांकन में गड़बड़ी के मामले आए दिन सामने आते हैं। विद्यार्थी कई बार चक्कर लगाकर अफसरों से सुधार की गुहार लगाते हैं। मूल्यांकन में गड़बड़ी साबित होने के बाद केवल कुछ लोगों को काली सूची में डालने जैसी साधारण कार्रवाई की जाती है। जिम्मेदारों को पुनर्विचार करना होगा कि ऐसे मामलों को आपराधिक कृत्य के दायरे में क्यों न लाया जाए। प्रदेश के युवा उमीदें पूरी करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाकर तैयारी करते हैं और इस प्रकार की लापरवाही से मायूस होकर जीवनभर के लिए कुंठित हो जाते हैं। जो आज अफसर हैं, वे भी सोचें कि कितनी रातें किताबों के सवालों से जूझे, तब जिंदगी ने उन्हें जवाब में बड़ी कुर्सी दी है। जरूरी यह है कि उन्हें कुर्सी देने वाले गलत होने पर उनसे कुर्सी छीनने का साहस भी करें। समय आ गया है कि शिक्षा का निजाम बदला जाए और हर अफसर की जवाबदेही तय की जाए।
-मोहमद रफीक
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