Sonam Raghuwanshi Case: पूरे देश को स्तब्ध करने वाले राजा और सोनम रघुवंशी केस ने भारती सामाजिक ताने-बाने को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं, वहीं इंदौर के माथे पर लगा सनसनीखेज हत्या का ये कलंक क्या मिट पाएगा...शर्मिंदगी के दाग तो धोने होंगे...
Sonam Raghuwanshi Case: हनीमून हेट स्टोरी और उसमें सनसनीखेज राजा हत्याकांड से उत्पन्न सामाजिक व व्यवस्थागत शूल की तरह चुभने वाले कई अहम सवाल सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। वह तो गनीमत है कि मेघालय पुलिस ने बिना किसी बाहरी दबाव और विचलित हुए खामोशी से पूरी वारदात में कड़ी से कड़ी जोड़ने में कामयाबी हासिल की। अपने टूरिस्ट स्पॉट को बदनामी और प्रदेश को आपराधिक छवि के लांछन से स्मार्टली बचा लिया। इंदौर पुलिस ने भी शिलांग पुलिस से अत्यंत गोपनीय समन्वय करके साथ निभाया। हालांकि हत्या के बाद सोनम के 14 दिन इंदौर में रहने का दावा शिलांग पुलिस ने किया है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इसकी भनक इंदौर पुलिस को क्यों नहीं लग पाई?
वारदात की शुरुआत में जरूर लगा कि दोनों जगह की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है, लेकिन बहुत प्रोफेशनली मर्डर मिस्ट्री से पर्दा उठाने के बाद मेघालय पुलिस की कार्यशैली के सब कायल हो गए। यही वजह रही कि इंदौर में राजा के परिवार वालों ने मेघालय पुलिस से इस बात के लिए माफी मांगी कि हत्यारों के खुलासे में देरी पर अत्यंत दुखद स्थिति में उन्होंने उनको कोसा। इधर, इंदौर के जिमेदार लोगों ने भी मेघालय पुलिस की सूझबूझ के लिए साधुवाद और धन्यवाद प्रेषित किया।
दरअसल, राजा मर्डर मिस्ट्री में पत्नी सोनम की साजिश और उसकी करतूत से पूरा देश स्तब्ध है। हर परिवार में आठ-दस दिन से यही चर्चा का विषय है। इस हेट स्टोरी ने मोबाइल के ड्रॉ बैक से लेकर सामाजिक ताने-बाने के छिन्न-भिन्न होने की आशंका से जुड़ी चिंता को बढ़ा दिया है। हर जुबां पर एक ही सवाल है कि समाज में आखिर ये हो क्या रहा है?
पिछले कुछ समय में देश में हुई कुछ ऐसी वारदातों को जोड़कर मीडिया जितना मुखर है, वहीं आमजन उतने ही अवाक। वे पूछ रहे हैं, क्या विवाह जैसी पवित्र संस्था को नई पीढ़ी की नजर लग गई? बच्चों को संस्कारों के साथ परवरिश में माता-पिता की कोई कमी तो नहीं छूट रही? यहां हम यह स्पष्ट कर दें कि सवाल एक जेंडर विशेष आधारित क्राइम का नहीं है। अपराध को अपराध की दृष्टि से ही देखना बेहतर होगा। ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण मौकों पर हमें एकांगी दृष्टिकोण की बजाय, समग्रता में देखना होगा, तभी हम अपराध मुक्त समाज की अपनी मूल अवधारणा को बहुत हद तक कायम रख सकते हैं।
पूरे मामले में इंदौर का केंद्र में होना और भी दुखद है, क्योंकि काफी समय से यूथ से जुड़ी अवांछित गतिविधियों से यह शहर हलाकान है। यह अकेली वारदात नहीं है, जिसमें इंदौर अंदर से हिला हो और आम जनमानस शातिर सोनम की करतूत को लेकर इतने गुस्से में हो। बीते दिनों हुई कितनी ही ऐसी वारदात हैं, जिसने हमें शर्मिंदा किया है। यही वजह रही कि 24 घंटे बिजनेस के सपनों को लेकर शुरू हुआ नाइट कल्चर अपराध के दलदल और अंधेरे में डूब गया। असमय यह प्रयोग भी दम तोड़ गया।
रिहाइशी क्षेत्रों में किराये के घर लेकर दिल दहला देने वाली वारदातों को अंजाम देने वालों ने भी शहर को हैरान-परेशान कर रखा है। ऐसे में हर इंदौरवासी ने यहां की संस्कृति को किसी की नजर लगने जैसा महसूस किया। निश्चित ही तेज विकास की थोड़ी-बहुत कीमत विकासशील शहरों को चुकानी पड़ती है, लेकिन इंदौर में अब हद हो गई है।
लगातार कलंक कथाओं से इंदौर को उबारना वैसे तो आसान नहीं होगा, लेकिन पुलिस-प्रशासन, सरकार-समाज को मिलकर कुछ न कुछ ऐसा करना ही होगा, जिससे इस चक्रव्यूह से बच सकें और निकल भी सकें। इसकी शुरुआत आज ही जहां से बन पड़े, करनी होगी, ताकि गली-मोहल्लों और घरों की गंदगी साफ करने में नाम कमाने वाला यह शहर घृणित अपराधों की गंदगी को भी साफ कर पाए और बदनामी के दाग जितनी जल्दी हो, धो सके।
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