Swine flu: नमी और बदलता तापमान स्वाइन फ्लू के वायरस के जीवित रहने और फैलने में सहायक होता है....
Swine flu: इंदौर शहर में वायरल फीवर, डेंगू और स्वाइन फ्लू के मरीज मिल रहे हैं। वायरल फीवर से मिलते-जुलते लक्षण स्वाइन फ्लू व डेंगू के मरीजों में भी हैं। ऐसे में लोग दो से तीन दिन बाद जांच व इलाज शुरू कर रहे हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार, एक जैसे लक्षण का कारण वेरिएंट चेंज भी हो सकता है। इसकी जांच इंदौर में शुरू नहीं हो पाई है, जबकि दो साल पहले एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जीनोम सिक्वेंसिंग जांच मशीन आ गई है।
एमवायएच, जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, मोहल्ला क्लिनिक और निजी अस्पतालों में हर रोज वायरल फीवर के करीब 2000 मरीज पहुंच रहे हैं। एमवायएच के मेडिसिन विभाग में ही ऐसे मरीजों की संख्या करीब 200 है। मेडिसिन विभाग के डॉ. अशोक ठाकुर ने बताया कि इस बार वायरल फीवर के साथ खांसी भी हो रही है, जिसे ठीक होने में छह से सात दिन लग रहे हैं। वायरल के साथ सिर दर्द, तेज बुखार अधिकांश लोगों में है। कई लोगों को सर्दी भी हो रही है।
● 100 डिग्री से अधिक बुखार।
● लगातार खांसी, गले में जलन या खराश।
● सर्दी के साथ नाक बहना।
● शरीर में लगातार दर्द रहना।
● सिर दर्द और जी मचलाना।
नमी और बदलता तापमान स्वाइन लू के वायरस के जीवित रहने और फैलने में सहायक होता है। इससे बचाव के लिए बार-बार हाथ धोएं, सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनें, संक्रमित से दूरी रखें, पौष्टिक आहार लें, नियमित व्यायाम करें व अच्छी नींद लें।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज में वायरस वेरिएंट की जांच के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन दो साल बाद भी शुरू नहीं हो पाई है। इससे शहर में स्वाइन लू, डेंगू आदि के वायरस वेरिएंट की जांच नहीं हो पा रही है। इस मशीन से चांदीपुरा वायरस की भी जांच हो सकती है। हाल ही में एक संदिग्ध मरीज के सैंपल विभाग को पुणे स्थित लैब भेजने पड़े थे। कोरोना के दौरान वायरस वेरिएंट की जांच के लिए सैंपल पुणे या एस भोपाल भेजे जाते थे। इसे देखते हुए एमजीएममेडिकल कॉलेजमें जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन आई थी।
इससे कोरोना के साथ अन्य वायरस के वेरिएंट की जांच हो सकती है। लगभग एक साल पहले डॉक्टर्स इसके लिए पुणे में प्रशिक्षण भी ले चुके हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित का कहना है कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन एमजीएम मेडिकल कॉलेज में है। इसका कुछ सामान आना है। इसके लिए डॉक्टरों का प्रशिक्षण हो चुका है।