World Heritage Day : अंतर्राष्ट्रीय धरोहर दिवस 18 अप्रेल को मनाया जा रहा है। इसके माध्यम से लोगों को शहर की ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। इंदौर शहर के प्रमुख होलकरकालीन राजबाड़ा, लालबाग और केंद्रीय संग्रालय का इतिहास हमेशा दर्शकों के दिल तक पहुंचता है।
World Heritage Day : अंतर्राष्ट्रीय धरोहर दिवस 18 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इसके माध्यम से लोगों को शहर की ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। इंदौर शहर(Indore) के प्रमुख होलकरकालीन राजबाड़ा, लालबाग और केंद्रीय संग्रालय का इतिहास हमेशा दर्शकों के दिल तक पहुंचता है। यही कारण है कि राजबाड़ा के जिर्णोद्धार के बाद पर्यटकों की संख्या में लगातर बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही लालबाग पैलेस के पहली बार खुलने से अब तक उसकी सुंदरता निहारने भी बड़ी संख्या में लो पहुंच रहे हैं। प्रतिमाह 20 से 25 एनआरआइ पर्यटक दोनों धरोहरों को देखने पहुंचते हैं, वहीं देश-विदेश के पर्यटकों की संख्या लाखों के करीब होती है।
धरोहरों( World Heritage Day) को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ वर्षों में दर्शकों में जागरुकता बढ़ी है। अब धीरे-धीरे ऐतिहासिक इमारतों का इतिहास समझने के लिए प्रोत्साहित भी हो रहे हैं। लालबाग के प्रति दर्शकों का रुझान बढ़ता रहा है, वहीं राजबाड़ा रिनोवेशन के बाद दर्शकों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। 2017 से पहले राजबाड़ा में दर्शको के लिए सिर्फ होलकर गैलरी खुली थी। अब दर्शक पूरा राजबाड़ा देख सकते हैं। इसलिए दर्शकों की संख्या बढ़ रही है।
वर्तमान में पुराने आरटीओ की खाली पड़ी दो मंजिला जर्जर इमारत का अपना एक इतिहास(World Heritage Day) है। इसे एक समय में रामपुर कोठी के नाम से जाना जाता था। यह रोहेला नवाब का रेस्ट हाउस हुआ करता था। 1870 में इसे होलकर शासकों ने नवाब के रुकने के लिए निर्मित किया था। इसका तलघर बहुत ही आकर्षक आकार में बना हुआ है। इसके जीर्णोद्धार को लेकर शासन और पुरातत्व विभाग के बीच चर्चा की जा रही है।
शहर की इमारतों को देखने वाले दर्शकों की संख्या में कमी नहीं आई है, बल्कि एक चौंकाने वाले आकड़े सामने आए हैं। विदेशी मेहमानों की संख्या एक माह में लगभग 25 से 30 रहती है, जबकि 2010 से 2016 के बीच इनकी संख्या ज्यादा हुआ करती थी। इसका कारण इंदौर में कई क्रिकेट मैचों का आयोजन हो रहा था। इन मैचों को देखने विदेशी मेहमान शहर पहुंचते थे, तब वे इन इमारतों को देखने भी जाते थे। -प्रकाश परापंजपे, डिप्टी डायरेक्टर, केंद्रीय संग्रालय, इंदौर