काले स्वरूप में विराजमान हैं केतू के अधिपति देवता, उग्र रूप में होती है गणेश जी की पूजा, धुएं से होती है आरती
dhumra vinayak mandir : भगवान श्री गणेश के विविध रूपों की स्थापना घरों में हुई है। वहीं संस्कारधानी के गणेश मंदिरों में भी भगवान के मनोहारी रूपों के दर्शन हो रहे हैं। ऐसे में कुदवारी में विराजमान भगवान धूम्र विनायक की चर्चा तो होगी ही। जो एकमात्र काले व उग्र रूप में दो दशकों से भक्तों की आस्था का केन्द्र बने हुए हैं। वैसे तो पूरे साल यहां भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन गणेशोत्सव के दस दिन यहां सुबह से शाम तक कष्ट निवारण की मनोकामना के लिए सैंकड़ों भक्त पहुंचते हैं।
धूम्र विनायक गणेश भगवान की स्थापना साल 2002 में संयुक्त संचालक लोक शिक्षण विधि प्रकोष्ठ में सहायक संचालक रहे पं. जितेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने की थी। उन्होंने बताया भगवान गणेश का यह रूप तंत्र साधना, कष्ट मुक्ति के साथ कलियुग में पू’य माना गया है। गणेश जी के इस रूप का उल्लेख संकट नाशक स्रोत के श्लोक धूम्र वर्णनम तथास्तमम् में मिलता है। ये प्रथम पू’य का आठवां अवतार माने जाते हैं। गणेश पुराण के अनुसार अलग-अलग युगों में गणेश जी के अलग स्वरूपों का पूजन मान्य किया गया है। कलियुग में धूम्रवर्ण स्वरूप का पूजन मान्य है।
ज्योतिषाचार्यों की मानें तो धूम्र विनायक केतू के अधिपति देवता हैं। कलियुग में इस रूप के पूजन व दर्शन से राहू-केतू दोष से मुक्ति मिलती है। उग्र रूप होने के साथ तंत्र साधना व सिद्धि के लिए इनका पूजन किया जाता है। इनकी दाहिनी ओर तुंड है, जो कि कष्ट हरण कहलाती है।
सामान्यत: गणेश जी का पूजन बुधवार को करना शुभफलदायी माना जाता है, लेकिन धूम्र विनायक का पूजन करना रविवार को शुभ माना जाता है। इस दिन धूम्र वर्ण की धुएं से आरती का विधान है। मंदिर में पिछले 20 साल से धूनी लग रही है। धूम्र आरती समस्त संकटों का हरण करने वाली मानी गई है।