अगर अंगदान को लेकर जागरूकता बढ़ाने प्रयास हों तो जीवन से संघर्ष कर रहे कई लोगों को जीवनदान मिल सकता है।
organ donation : संस्कारधानी अंगदान को परम्परा बना रही है। दो महीने में दो परिवारों ने ब्रेन डेड स्वजनों के अंगों का दान किया। शुक्रवार को शिल्पीग्राम भेड़ाघाट के श्रमिक पूरन लाल के ब्रेनडेड होने पर उनके परिजनों ने जहां मेडिकल के सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में दोनों किडनी व स्किन का दान किया। इससे पहले 23 जनवरी को मेडिकल के सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में ब्रेन डेड हुए 61 वर्षीय पुजारी बलि राम के हार्ट और लिवर का दान किया था। इन अंगों से भोपाल व इंदौर के दो मरीजों को नया जीवन मिला था। वहीं हार्वेस्ट की गई स्किन अब तक दो मरीजों का जीवन बचा चुकी है। मेडिकल अस्पताल में हर महीने 3-4 मरीज ब्रेन डेड होते हैं, इसे देखते हुए अगर अंगदान को लेकर जागरूकता बढ़ाने प्रयास हों तो जीवन से संघर्ष कर रहे कई लोगों को जीवनदान मिल सकता है।
ब्रेन डेड मरीज के परिजनों की अंग दान को लेकर पहल किए जाने के बाद मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ.नवनीत सक्सेना, अधीक्षक डॉ.अरविंद शर्मा, सुपरस्पेश्यिलिटी अस्पताल के डायरेक्टर डॉ.अवधेश कुशवाहा, अधीक्षक डॉ.जितेन्द्र गुप्ता, सीएमएचओ डॉ.संजय मिश्रा ने भोपाल में प्रदेश शासन की आर्गेन ट्रांसप्लांट कमेटी व अन्य अधिकारियों से बातचीत कर ट्रांसप्लांट की पूरी प्लानिंग की।
हार्ट को एयरपोर्ट तक 108 एम्बुलेंस से समय पर पहुंचाने के लिए आला पुलिस अधिकारियों ने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से डुमना के बीच प्रमुख चौराहों पर प्वॉइंट लगाए। मार्ग में बड़े और मालवाहक वाहनों का प्रवेश रोका गया। सुपरस्पेशलिटी अस्पताल से दमोहनाका के बीच पुलिस ने प्वाइंट लगाकर यातायात को सुचारु रखा।
सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में अब स्क्रीन लगाने की तैयारी है, जिस पर अंगदान करने वालों और उनके परिजनों के फोटो, वीडियो, ग्रीन कॉरिडोर की पूरी जानकारी साझा की जाएगी। इसके साथ ही उनसे संबंधित समाचारों को भी स्क्रीन पर दर्शाया जाएगा। अंगदान का महत्व भी बताया जाएगा।
सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू हो चुकी है। लेकिन लिवर व हार्ट के विशेषज्ञों के बावजूद इनके प्रत्यारोपण की सुविधा नहीं है। मौजूदा यूनिट्स को विस्तार देकर यह सुविधा शुरू करने की दरकार है। इसी तरह फेफड़ों के प्रत्यारोपण के लिए भी शासन के पास प्रस्ताव लंबित हैं।
दान किए गए अंगों को दूसरे शहरों में भर्ती जरूरतमंद मरीज तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाने की आवश्यकता पड़ती है। विशेषज्ञों का मानना है कि मेडिकल अस्पताल के समीप ही अस्थायी हेलीपेड बनाया जाना चाहिए ताकि समय की बचत हो सके। मेडिकल कॉलेज बड्डा दादा मैदान इसके लिए सही विकल्प हो सकता है।