- शहर की कई सामाजिक संस्थाएं और लोग कर रहे नि:स्वार्थ सेवा - लोगों से करते हैं संपर्क, बचे खाने को पहुंचा देते हैं बस्तियों से लेकर मजदूरों के पास - शादियों, समारोहों में बचा खाना बांट रहे जरूरतमंदों को, कई संस्थाएं भी दे रहीं सेवाएं
Free foods: इस शहर का नाम संस्कारधानी ऐसे ही नहीं है, यहां यदि किसी अ‘छी पहल की बात होती है तो लोग उसे आत्मसात कर लेते हैं। कुछ साल पहले सोशल मीडिया सहित सामाजिक संगठनों और समाजों के बीच होने वाली बैठकों में यह निर्णय लिया गया कि वैवाहिक समारोह हो या अन्य कोई अवसर हो जिसमें सामूहिक भोज की व्यवस्था होती है यदि वहां खाना बचता है तो उसे मवेशियों को खिलाने की अपेक्षा जरूरतमंदों को बांट दिया जाए। ताकि अन्न का एक-एक दाना भूखे पेट भर सके। बस फिर क्या था यहां एक नई परंपरा की शुरुआत हुई और आज अधिकतर घरों के बड़े आयोजनों या वैवाहिक समारोह में बचे हुए भोजन को लोग जरूरतमंदों में बांटने लगे हैं। इस कार्य में बहुत बड़ी भूमिका सोशल मीडिया भी निभा रहा है।
जबलपुर में बहुत से घरों में सामूहिक आयोजनों या बड़े किसी आयोजन में बचाने वाले भोजन को लेकर अब धारणा बदलने लगी है। लोग इसे फेंकने या मवेशियों को देने के बजाय बाकायदा पैकिंग करते हैं और गरीब बस्तियों, मजदूरों के रहने के स्थान, मंदिरों या फिर नर्मदा तट पर रहने वाले गरीबों को वितरित करते हैं। ऐसे नजारे वैवाहिक सीजन के दौरान सबसे ’यादा देखे जा सकते हैं। जब एक से एक स्वादिष्ट पकवान मजदूर और गरीबों को खाने को मिलते हैं। त्रिमूर्ति नगर निवासी नीरज ने बताया पिछले साल उनकी मां का निधन हो गया था। इस पर उन्होंने त्रयोदशी भोज का आयोजन किया, इसमें बचे भोजन को उन्होंने पैकिंग करके कृषि उपज मंडी में काम करने वाली लेबर को वितरित किया था। इसके बाद उनके यहां जितने भी आयोजन होते हैं तो थोड़ा एक्स्ट्रा खाना बनाया जाता है और उसे भोजन को जरूरतमंदों को बांटने लगे हैं।
ह्यूमैनिटी आर्गेनाइजेशन के नाम से एक शहर में काम संस्था काम करती है। जो पिछले करीब 10 साल से इस तरह का काम कर रही है। जहां भी सामूहिक या सार्वजनिक आयोजन होता है। वहां भोजन बड़ी मात्रा में बच जाता है। तब संस्था के संयोजक अभिनव सिंह और उनके साथी आयोजक से बात करके वहां अपने ब‘चों और लोगों को बुलाकर भोजन कराते हैं या फिर कई बार वहां से भोजन लाकर उन्हें व्यवस्थित रूप से परोसा जाता है। अभिनव बताते हैं कि इस तरह के कार्य से वह अनाज की बर्बादी तो रोकते ही हैं साथ में लोगों को यह भी बताने या जागरूक करने में सफल होते हैं कि अनाज पर हर एक का अधिकार है। वह व्यर्थ होने की बजाय किसी के पेट में जाना चाहिए।
अभिनव सिंह ने बताया कि उन्होंने भुपसा कैम्पेन के नाम से यह अभियान चलाया है। साल 2015 में इसकी शुरुआत की थी। हमने अब तक करीब 20 हजार लोगों का खाना बर्बाद होने से बचाया है। अब इसमें लोग स्वयं ही शामिल होने लगे हैं जो हमारे प्रयासों की सफलता कही जा सकती है।