जगदलपुर

Bastar Dussehra 2024: बस्तर दशहरा की प्रमुख रस्म निशा जात्रा देर रात हुई पूरी, बुरी आत्माओं के प्रभाव को रोकने होती है विशेष पूजा

Bastar Dussehra 2024: विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में अश्वनी शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि शुक्रवार को नवरात्रि की महाअष्टमी पर हवन-पूजन के बाद आधी रात में निशा जात्रा विधान किया गया।

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Oct 12, 2024

Bastar Dussehra 2024: विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में अश्वनी शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि शुक्रवार को नवरात्रि की महाअष्टमी पर हवन-पूजन के बाद आधी रात में निशा जात्रा विधान किया गया। यह विधान अनुपमा चौक में स्थित मां खेमेश्वरी के निशा जात्रा मंदिर में हुआ। यह रात को देवी-देवताओं की संतुष्टि के लिए बलि देने की रात होती है।

यदुवंशी तैयार करते हैं भोग: इस रस्म के लिए मावली मंदिर में 12 गांवों के यदुवंशी देवी- देवताओं और उनके गणों के लिए पवित्रता से भोग तैयार करते हैं, जिसमें चावल, खीर और उड़द की दाल तथा उड़द से बने बड़े बनाकर मिट्टी की खाली 24 हंडियों के मुंह में कपड़े बांधकर रखा जाता है। भोग सामग्री वाली हंडियों को निशागुड़ी तक ले जाने के लिए राऊत जाति के लोगों की कांवड़ यात्रा जनसमूह के साथ जुलूस के रूप में निकाली जाती है।

बलि देने के पीछे यह है मान्यता

इसके बाद 12 बकरों की बलि दी जाती है ताकि देवी-देवता संतुष्ट रहें और बस्तर में खुशहाली हो। साथ ही क्षेत्र की जनता पर बुरी आत्माओं का कोई प्रभाव ना पड़े। बलि से पहले राजगुरु बकरों के कान में मंत्र फूंककर देवी-देवताओं को समर्पित करने और हत्या का दोष किसी पर न लगे, इसकी घोषणा करते हैं।

पूजा के बाद फोड़ देते हैं हंडियां

निशागुड़ी में राजपरिवार, राजगुरु और देवी दंतेश्वरी के पुजारी के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के बाद भोग सामग्री की खाली हंडियों को फोड़ दिया जाता है ताकि इनका दुरुपयोग न हो।

Published on:
12 Oct 2024 03:24 pm
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