Anta by-election: दो साल पूरे करने जा रही भाजपा सरकार के लिए यह हार केवल चुनावी पराजय नहीं, बल्कि संगठनात्मक कमजोरियों और जमीनी असंतोष को समझने का मौका भी है।
जयपुर। अंता विधानसभा उपचुनाव का परिणाम राजस्थान की राजनीति में अप्रत्याशित बदलाव का संकेत देता है। दो साल पूरे करने जा रही भाजपा सरकार के लिए यह हार केवल चुनावी पराजय नहीं, बल्कि संगठनात्मक कमजोरियों और जमीनी असंतोष को समझने का मौका भी है। दूसरी ओर कांग्रेस के लिए यह जीत कई महीनों बाद मिला राजनीतिक ऑक्सीजन है, जिसने पार्टी के भीतर नई सक्रियता और जोश भर दिया है।
भाजपा हालिया उपचुनावों में 7 सीटें जीत चुकी थी जबकि कांग्रेस केवल दौसा में सफल रही थी। इस पृष्ठभूमि में अंता का परिणाम भाजपा के जीत पैटर्न को तोड़ने वाला साबित हुआ। खास बात यह कि हाड़ौती जैसे भाजपा के पारंपरिक गढ़ में कांग्रेस ने वापसी की है। पिछले चुनाव में 5,861 वोट से हारने वाले प्रमोद जैन भाया इस बार करीब तीन गुना अंतर से जीतकर लौटे हैं।
कांग्रेस की जीत का आधार पार्टी का बूथ स्तर तक फैला समन्वित अभियान, संगठित रणनीति और जमीनी मुद्दों पर केंद्रित चुनाव प्रबंधन रहा। कांग्रेस वॉर रूम की सक्रियता, उम्मीदवार की स्थानीय पकड़ और विभिन्न गुटों की एकजुटता ने हवा कांग्रेस की ओर मोड़ी।
इसके विपरीत भाजपा पूरे अभियान में असहज दिखी। टिकट चयन पर असहमति, गुटबाजी, और स्थानीय प्रभावी नेताओं को बैकफुट पर रखने जैसी रणनीतिक गलतियों ने पार्टी की गति रोक दी। प्रचार को एक सीमित दायरे में केंद्रित रखने से मतदाताओं तक व्यापक संदेश नहीं पहुंच सका।
अंता का रुझान प्रदेश राजनीति में यह स्पष्ट करता है कि आने वाले निकाय, पंचायत और लोकसभा चुनाव में स्थानीय चेहरे व मजबूत संगठन की रणनीति ही निर्णायक होगी। प्रदेश में अब मुकाबला और ज्यादा प्रतिस्पर्धी तथा क्षेत्रीय समीकरणों पर आधारित होने जा रहा है।
-भाजपा ने हाड़ौती के दो कैबिनेट मंत्री मदन दिलावर और हीरालाल नागर जैसे स्थानीय प्रभावशाली नेताओं को सक्रिय अभियान से दूर रखा।
-कांग्रेस से नाराज नरेश मीणा ने निर्दलीय ताल ठोकी, तो भाजपा को लगा कांग्रेस के वोट काटेंगे, इसलिए गंभीरता से नहीं लिया गया।
-कांग्रेस ने तुरंत रणनीति बदली और संभावित नुकसान को संभालते हुए जमीनी पकड़ मजबूत की।