बुआई का बढ़ता रकबा प्रति बीघा 40 से 45 क्विंटल उत्पादन
बुआई का बढ़ता रकबा
प्रति बीघा 40 से 45 क्विंटल उत्पादन
भालता (झालावाड़) जिले के भालता कस्बे के उपसली, बावड़ी खेड़ा, बिंदाखेड़ा, उमरिया, रांकडा समेत दर्जनों गांवों के किसानों का रुझान अब परम्परागत खेती के अलावा प्याज उत्पादन करने में भी होने लगा है। नुकसान की संभावना कम और मुनाफा अधिक मिलने से किसान इसमें रुचि ले रहे हैं। एक बीघा में करीब 40 से 45 क्विंटल तक प्याज उत्पादन हो जाता है। कई किसानो ने शुरुआत में थोड़ी सी जमीन पर प्याज की खेती शुरू की थी। अच्छा उत्पादन मिलने पर अब लगातार प्याज की बुआई करते हैं।
खेतो में ही पहुंचते व्यापारी
व्यापारी खेतों में ही तुलाई के बाद भुगतान भी नकद कर देते हैं। प्याज उत्पादक किसानों का कहना है, मंडियों में क्वालिटी के हिसाब से अधिक दाम मिलते हैं। वर्तमान में थोक में एक हजार से 13 सौ रुपये प्रति क्विंटल तक भाव है। भालता, उमरिया, सरड़ा, गरडा व एमपी से माचलपुर, जीरापुर के व्यापारी प्याज की खरीदी करने पहुंचते हैं। इसकी अत्यधिक मांग के चलते किसानों को उनकी मेहनत से ज्यादा मुनाफा हो जाता है।
गोबर की खाद का उपयोग
किसानों ने बताया, प्रमाणित किस्म की कणी से पौध तैयार की जाती है। यहां मिट्टी के हिसाब से प्रशांत, अलोरा, प्राची, एन 53, एनएचआरडीएफ सहित कई किस्म के प्याज उगाए जाते हैं। रोपण (चोपने) के अलावा सीधे बुआई भी करते हैं। इसके बाद समय -समय पर सिंचाई की जाती है। गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं। पौध को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है। फसल करीब पांच से छह महीनों में तैयार होती है। इसके बाद कटाई व ग्रेडिंग कर हवादार कट्टीयों में भर कर स्थानीय व्यापारियों व कोटा, जयपुर, नीमच मंडियों में बेचा जाता है।
&क्षेत्र में प्याज की खेती में किसानों की रुचि बढ़ती जा रही है। इससे बुआई का रकबा बढ़ रहा है। यह मुनाफे की फसल साबित हो रही है। इससे गरीब व मध्यम वर्ग के किसानों को आर्थिक सम्बल मिल रहा है।