Rajasthan News: राजस्थान में एक कफ सिरप ने मासूम बच्चों की जान ले ली और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
Rajasthan News: राजस्थान में एक कफ सिरप ने मासूम बच्चों की जान ले ली और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। जयपुर की केसंस फार्मा कंपनी द्वारा निर्मित इस सिरप के सेवन से भरतपुर और सीकर जिलों में दो बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि 11 अन्य बच्चे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए।
यह सिरप सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा योजना के तहत बांटी जा रही थी। बच्चों में उल्टी, बेचैनी और कई घंटों तक बेहोशी जैसे लक्षण देखे गए। इस हादसे के बाद पूरे राज्य में हड़कंप मचा हुआ है। सवाल उठ रहे हैं कि ऐसी घातक दवा अस्पताल तक कैसे पहुंची और दोषियों पर तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
दरअसल, केसंस फार्मा का नाम इससे पहले भी विवादों में रहा है। फरवरी 2023 में कंपनी की एक दवा में मेंथॉल की मात्रा कम पाए जाने के कारण इसे सरकारी टेंडर से एक साल के लिए प्रतिबंधित किया गया था। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने इसे नजरअंदाज किया और कंपनी को नए टेंडर मिलते रहे। हैरानी की बात यह है कि 2021 में दिल्ली में इसी डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन युक्त कफ सिरप के कारण 16 बच्चे बीमार पड़ गए थे। तब भी कंपनी पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
राजस्थान ड्रग कंट्रोलर का कहना है कि दिल्ली मामले की जानकारी थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर क्वालिटी चेकिंग में कोई खामी नहीं मिली। सवाल यह है कि इतने सबूतों के बावजूद इस दवा को मंजूरी कैसे मिल गई? क्या यह सरकारी लापरवाही थी या किसी तरह का दबाव?
पड़ताल में सामने आया कि कंपनी के मालिक वीरेंद्र कुमार गुप्ता जयपुर के बनी पार्क इलाके के निवासी हैं। फैक्ट्री का संचालन और गुणवत्ता की जिम्मेदारी जनरल मैनेजर देवल कुमार गुप्ता के पास थी। बच्चों की मौत के कई दिन बाद भी इनके खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार, मालिक कार्रवाई से पहले ही फरार हो चुका है। यह सवाल उठता है कि क्या उसे किसी का संरक्षण प्राप्त है?
हादसे के बाद सरकार ने जांच कमेटी बनाई और दवा के 22 बैचों का वितरण रोक दिया। राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन ने 19 बैचों पर प्रतिबंध लगाया और डॉक्टरों को इसे न लिखने की सलाह दी। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की टीम ने पानी और दवा के सैंपल एकत्र किए हैं।
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि सैंपल रिपोर्ट के बाद ही एफआईआर दर्ज होगी। लेकिन मौतों के ठोस सबूत होने के बावजूद तत्काल एफआईआर न दर्ज करना भी सवालों के घेरे में है। विपक्ष ने इसे सरकारी लापरवाही करार देते हुए स्वास्थ्य मंत्री से जवाब मांगा है। क्या कंपनी को बचाने की कोशिश हो रही है?