जयपुर में इन 86 कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन हाइकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी। राहत के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन वहां भी कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए लौटा दिया। अब गेंद आवासन मण्डल के पाले में है।
Rajasthan Housing Board: जयपुर में आवासन मंडल की अवाप्तशुदा जमीनों पर अवैध कॉलोनियों के नियमन के खेल की बुनियाद उसकी अवाप्ति के साथ ही रख दी गई थी। पहले कब्जा शुरू हुआ, फिर बसावट के साथ कानूनी पेंच में उलझाते गए। इस बीच करीब तीन साल पहले जुलाई, 2022 में नियमन की राह पूरी तरह साफ कर दी। यहीं से अवैध बसावट को वैध करने की अधिकारिक रूप से गली खोल दी गई।
नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसमें नगरीय निकायों और आवासन मण्डल की अवाप्तशुदा जमीन पर बसी कॉलोनियों को पट्टा देना तय कर दिया। इसके बाद बेशकीमती खाली पड़ी जमीनों पर निर्माण तेज हो गए। इसमें मुख्य रूप से टोंक रोड पर बी2 बाइपास स्थित 42 बीघा शामिल है। हैरानी की बात यह है कि अवाप्ति से लेकर आज तक आवासन मंडल में 39 आयुक्त रहे (एक अफसर का कार्यकाल दो बार रहा), लेकिन किसी ने भी मौके पर कब्जा लेने की प्रभावी कोशिश तक नहीं की। उलटे सरकारी सिस्टम ने ही कब्जों को ‘वैधता’ का जामा पहनाने की तैयारी कर ली।
इन कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन हाइकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी। राहत के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन वहां भी कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए लौटा दिया। अब गेंद आवासन मण्डल के पाले में है।
| क्रम संख्या | अधिकारी का नाम | कार्यकाल प्रारंभ | कार्यकाल समाप्ति |
|---|---|---|---|
| 1 | पी. के. लौरिया | 13 सितम्बर 1989 | 1 जनवरी 1990 |
| 2 | एस. के. मुखर्जी | 1 जनवरी 1990 | 31 दिसम्बर 1990 |
| 3 | एस. एल. जोशी | 1 जनवरी 1991 | 31 अगस्त 1992 |
| 4 | बी. जी. शर्मा | 15 जनवरी 1993 | 2 मार्च 1994 |
| 5 | अब्दुल मतीन | 1 जुलाई 1994 | 28 अगस्त 1995 |
| 6 | एन. एन. नरहरि | 29 अगस्त 1995 | 13 दिसम्बर 1996 |
| 7 | मनोहर लाल | 14 दिसम्बर 1996 | 26 सितम्बर 1998 |
| 8 | ओ. पी. मीणा | 26 सितम्बर 1998 | 13 अप्रैल 1999 |
| 9 | प्रीतम सिंह | 13 अप्रैल 1999 | 3 मार्च 2000 |
| 10 | विनोद जुत्शी | 3 मार्च 2000 | 13 नवम्बर 2000 |
| 11 | दामोदर शर्मा | 13 नवम्बर 2000 | 17 मई 2001 |
| 12 | बी. एल. आर्य | 17 मई 2001 | 15 जनवरी 2002 |
| 13 | एम. के. खन्ना | 15 जनवरी 2002 | 9 अगस्त 2002 |
| 14 | अतुल शर्मा | 13 अगस्त 2002 | 31 मई 2003 |
| 15 | कुलदीप शर्मा | 31 मई 2003 | 15 जून 2005 |
| 16 | नरहरि शर्मा | 21 जून 2005 | 17 सितम्बर 2005 |
| 17 | ए. के. हेमकार | 17 सितम्बर 2005 | 9 मई 2006 |
| 18 | सोहन लाल | 9 मई 2006 | 7 अप्रैल 2007 |
| 19 | सी. एम. मीणा | 7 अप्रैल 2007 | 18 फरवरी 2008 |
| 20 | अजय सिंह | 18 फरवरी 2008 | 30 जुलाई 2008 |
| 21 | तपेन्द्र कुमार | 30 जुलाई 2008 | 18 जून 2009 |
| 22 | आशीष बहुगुणा | 18 जून 2009 | 24 अगस्त 2009 |
| 23 | पवन गोयल | 24 अगस्त 2009 | 9 मई 2012 |
| 24 | टी. रविकान्त | 10 मई 2012 | 28 सितम्बर 2012 |
| 25 | नीरज के. पवन | 1 अक्टूबर 2012 | 19 फरवरी 2013 |
| 26 | आर. वेंकटेश्वरन | 19 फरवरी 2013 | 12 फरवरी 2014 |
| 27 | आनन्द कुमार | 12 फरवरी 2014 | 24 जून 2015 |
| 28 | ओमप्रकाश सैनी | 24 जून 2015 | 5 फरवरी 2016 |
| 29 | ओ. पी. मीणा | 5 फरवरी 2016 | 1 जुलाई 2016 |
| 30 | ए. मुखोपाध्याय | 1 जुलाई 2016 | 5 मई 2017 |
| 31 | के. बी. गुप्ता | 10 मई 2017 | 28 फरवरी 2018 |
| 32 | पी. बी. यशवन्त | 28 फरवरी 2018 | 7 मई 2018 |
| 33 | रोहित गुप्ता | 7 मई 2018 | 8 जुलाई 2018 |
| 34 | पी. बी. यशवन्त | 16 जुलाई 2018 | 28 दिसम्बर 2018 |
| 35 | रविकुमार सुरपुर | 28 दिसम्बर 2018 | 5 मार्च 2019 |
| 36 | सुबीर कुमार | 5 मार्च 2019 | 27 जून 2019 |
| 37 | पवन अरोड़ा | 27 जून 2019 | 18 अगस्त 2023 |
| 38 | अल्पा चौधरी | 19 अगस्त 2023 | 3 सितम्बर 2023 |
| 39 | कुमार पाल गौतम | 4 सितम्बर 2023 | 15 फरवरी 2024 |
| 40 | रश्मि शर्मा | 6 सितम्बर 2024 | वर्तमान में कार्यरत |
नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग ने एक जुलाई, 2022 को आदेश जारी किया। उस समय में नगरीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव कुंजीलाल मीणा और स्वायत्त शासन विभाग के सचिव जोगाराम थे। आदेश के तहत उन सरकारी जमीनों पर बस चुके लोगों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए आंशिक, पूर्ण सृजित, विकसित कॉलोनी में पट्टे जारी करने के निर्देश दिए गए।
आदेश जारी होते ही जहां-जहां जमीनें खाली थीं, वहां बाउंड्रीवाल खड़ी कर दी गई। कोठी बना दी, बिजली-पानी के कनेक्शन ले लिए गए, ताकि बाद में दावा किया जा सके कि यहां तो लोग रह रहे हैं। टोंक रोड पर बी2 बाइपास के कॉर्नर पर 42 बीघा पर श्रीराम विहार कॉलोनी है। यहां आज भी ज्यादातर जगह बाउंड्रीवाल, कच्चे-पक्के निर्माण मिल जाएंगे।
जब कोर्ट ने इन कॉलोनियों के नियमन पर रोक लगा दी है, तो सरकारी अफसरों के आदेश से शुरू हुई यह बसावट किसकी शह पर हुई?
यदि सरकारी जमीनें कब्जाने वालों को ही ‘वैध’ बना दिया जाएगा, तो फिर नियम-कायदे, कानून की जरूरत ही कहां बचेगी?
इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ हो सकता है। जैसे जयपुर की चारदीवारी में ऑपरेशन पिंक चलाकर वर्षों पुराने बरामदे खाली कराए गए थे। जमीन अवाप्त करने के तत्काल बाद उसे कब्जे में ले लेनी चाहिए थी। भविष्य में इसकी कठोरता से पालना हो यह सुनिश्चित हो। हालांकि, कई बार राजनीतिक दबाव और मौका स्थिति के अनुसार देरी हो जाती है। मंजीत सिंह, पूर्व आइएएस, पूर्व अति. मुख्य सचिव, स्वायत्त शासन विभाग