जयपुर

Rajasthan Housing Board: कब्जा करो, पट्टा पाओ; आवासन मंडल के 39 आयुक्तों की चुप्पी से पनपा सरकारी जमीनों पर कब्जे का खेल

जयपुर में इन 86 कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन हाइकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी। राहत के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन वहां भी कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए लौटा दिया। अब गेंद आवासन मण्डल के पाले में है।

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Oct 28, 2025
अवाप्तशुदा जमीन पर बसी 86 कॉलोनी से हटेंगे अतिक्रमण, पत्रिका फोटो

Rajasthan Housing Board: जयपुर में आवासन मंडल की अवाप्तशुदा जमीनों पर अवैध कॉलोनियों के नियमन के खेल की बुनियाद उसकी अवाप्ति के साथ ही रख दी गई थी। पहले कब्जा शुरू हुआ, फिर बसावट के साथ कानूनी पेंच में उलझाते गए। इस बीच करीब तीन साल पहले जुलाई, 2022 में नियमन की राह पूरी तरह साफ कर दी। यहीं से अवैध बसावट को वैध करने की अधिकारिक रूप से गली खोल दी गई।

नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसमें नगरीय निकायों और आवासन मण्डल की अवाप्तशुदा जमीन पर बसी कॉलोनियों को पट्टा देना तय कर दिया। इसके बाद बेशकीमती खाली पड़ी जमीनों पर निर्माण तेज हो गए। इसमें मुख्य रूप से टोंक रोड पर बी2 बाइपास स्थित 42 बीघा शामिल है। हैरानी की बात यह है कि अवाप्ति से लेकर आज तक आवासन मंडल में 39 आयुक्त रहे (एक अफसर का कार्यकाल दो बार रहा), लेकिन किसी ने भी मौके पर कब्जा लेने की प्रभावी कोशिश तक नहीं की। उलटे सरकारी सिस्टम ने ही कब्जों को ‘वैधता’ का जामा पहनाने की तैयारी कर ली।

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कोर्ट के आदेश से टूटी उम्मीद

इन कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन हाइकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी। राहत के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन वहां भी कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए लौटा दिया। अब गेंद आवासन मण्डल के पाले में है।

ये रहे आवासन मण्डल आयुक्त (वर्ष 1990 से आज तक)

क्रम संख्याअधिकारी का नामकार्यकाल प्रारंभकार्यकाल समाप्ति
1पी. के. लौरिया13 सितम्बर 19891 जनवरी 1990
2एस. के. मुखर्जी1 जनवरी 199031 दिसम्बर 1990
3एस. एल. जोशी1 जनवरी 199131 अगस्त 1992
4बी. जी. शर्मा15 जनवरी 19932 मार्च 1994
5अब्दुल मतीन1 जुलाई 199428 अगस्त 1995
6एन. एन. नरहरि29 अगस्त 199513 दिसम्बर 1996
7मनोहर लाल14 दिसम्बर 199626 सितम्बर 1998
8ओ. पी. मीणा26 सितम्बर 199813 अप्रैल 1999
9प्रीतम सिंह13 अप्रैल 19993 मार्च 2000
10विनोद जुत्शी3 मार्च 200013 नवम्बर 2000
11दामोदर शर्मा13 नवम्बर 200017 मई 2001
12बी. एल. आर्य17 मई 200115 जनवरी 2002
13एम. के. खन्ना15 जनवरी 20029 अगस्त 2002
14अतुल शर्मा13 अगस्त 200231 मई 2003
15कुलदीप शर्मा31 मई 200315 जून 2005
16नरहरि शर्मा21 जून 200517 सितम्बर 2005
17ए. के. हेमकार17 सितम्बर 20059 मई 2006
18सोहन लाल9 मई 20067 अप्रैल 2007
19सी. एम. मीणा7 अप्रैल 200718 फरवरी 2008
20अजय सिंह18 फरवरी 200830 जुलाई 2008
21तपेन्द्र कुमार30 जुलाई 200818 जून 2009
22आशीष बहुगुणा18 जून 200924 अगस्त 2009
23पवन गोयल24 अगस्त 20099 मई 2012
24टी. रविकान्त10 मई 201228 सितम्बर 2012
25नीरज के. पवन1 अक्टूबर 201219 फरवरी 2013
26आर. वेंकटेश्वरन19 फरवरी 201312 फरवरी 2014
27आनन्द कुमार12 फरवरी 201424 जून 2015
28ओमप्रकाश सैनी24 जून 20155 फरवरी 2016
29ओ. पी. मीणा5 फरवरी 20161 जुलाई 2016
30ए. मुखोपाध्याय1 जुलाई 20165 मई 2017
31के. बी. गुप्ता10 मई 201728 फरवरी 2018
32पी. बी. यशवन्त28 फरवरी 20187 मई 2018
33रोहित गुप्ता7 मई 20188 जुलाई 2018
34पी. बी. यशवन्त16 जुलाई 201828 दिसम्बर 2018
35रविकुमार सुरपुर28 दिसम्बर 20185 मार्च 2019
36सुबीर कुमार5 मार्च 201927 जून 2019
37पवन अरोड़ा27 जून 201918 अगस्त 2023
38अल्पा चौधरी19 अगस्त 20233 सितम्बर 2023
39कुमार पाल गौतम4 सितम्बर 202315 फरवरी 2024
40रश्मि शर्मा6 सितम्बर 2024वर्तमान में कार्यरत

इस आदेश से खेल

नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग ने एक जुलाई, 2022 को आदेश जारी किया। उस समय में नगरीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव कुंजीलाल मीणा और स्वायत्त शासन विभाग के सचिव जोगाराम थे। आदेश के तहत उन सरकारी जमीनों पर बस चुके लोगों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए आंशिक, पूर्ण सृजित, विकसित कॉलोनी में पट्टे जारी करने के निर्देश दिए गए।

यह हुआ असर

आदेश जारी होते ही जहां-जहां जमीनें खाली थीं, वहां बाउंड्रीवाल खड़ी कर दी गई। कोठी बना दी, बिजली-पानी के कनेक्शन ले लिए गए, ताकि बाद में दावा किया जा सके कि यहां तो लोग रह रहे हैं। टोंक रोड पर बी2 बाइपास के कॉर्नर पर 42 बीघा पर श्रीराम विहार कॉलोनी है। यहां आज भी ज्यादातर जगह बाउंड्रीवाल, कच्चे-पक्के निर्माण मिल जाएंगे।

सवाल यह है कि…

जब कोर्ट ने इन कॉलोनियों के नियमन पर रोक लगा दी है, तो सरकारी अफसरों के आदेश से शुरू हुई यह बसावट किसकी शह पर हुई?
यदि सरकारी जमीनें कब्जाने वालों को ही ‘वैध’ बना दिया जाएगा, तो फिर नियम-कायदे, कानून की जरूरत ही कहां बचेगी?

तत्काल कब्जे में लेना चाहिए था

इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ हो सकता है। जैसे जयपुर की चारदीवारी में ऑपरेशन पिंक चलाकर वर्षों पुराने बरामदे खाली कराए गए थे। जमीन अवाप्त करने के तत्काल बाद उसे कब्जे में ले लेनी चाहिए थी। भविष्य में इसकी कठोरता से पालना हो यह सुनिश्चित हो। हालांकि, कई बार राजनीतिक दबाव और मौका स्थिति के अनुसार देरी हो जाती है। मंजीत सिंह, पूर्व आइएएस, पूर्व अति. मुख्य सचिव, स्वायत्त शासन विभाग

Updated on:
28 Oct 2025 10:13 am
Published on:
28 Oct 2025 08:38 am
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