जयपुर

कहानी SMS अस्पताल की: मैं एसएमएस हूं, सेवा करता हूं, जीवन बचाता हूं…पर मेरा दम घोंटा जा रहा है

राजधानी जयपुर में स्थित एसएमएस अस्पताल देश का प्रमुख मेडिकल हब है, जहां रोज हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन बाहर अव्यवस्था, गंदगी, ठेले और पार्किंग जाम मरीजों की राह रोकते हैं। अस्पताल की छवि सेवा से नहीं, बाहर के हालात से भी बनती है।

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Jul 26, 2025
Jaipur SMS Hospital (Patrika Photo)

जयपुर: मैं एसएमएस अस्पताल हूं…राजस्थान ही नहीं, उत्तर भारत के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में शामिल हूं। रोजाना 10 हजार से ज्यादा मरीज मेरे आउटडोर में इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं। मेरे इनडोर में करीब 3000 बेड हैं, जिनमें सैकड़ों गंभीर रोगी भर्ती हैं।

प्रयोगशालाओं में हर दिन हजारों जांचे होती हैं। ऑपरेशन थियेटर विश्वस्तरीय हैं और मेरे डॉक्टर जीवन की उम्मीद लौटा लाते हैं। मगर…ये सब भीतर की बात है। बाहर से में कैसा दिखता हूं? आइए देखें…मैं सेवा करता हूं, मैं जीवन बचाता हूं। मगर मेरा गला घोंट रही है वो लापरवाही, जो मेरी साख पर बट्टा लगा रही है।

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कहां जाएं मरीज?


जो लोग मेरी ओर उम्मीद से देखते हैं, उनके लिए पहला कदम ही संघर्ष है। जैसे ही वो मेरे गेट से प्रवेश करते हैं, वाहन चालकों की भीड़, अव्यवस्थित पार्किंग और ठेलों की कतार मिलती है। क्या किसी आपातकालीन मरीज के लिए यह रास्ता जीवनदायिनी है? नहीं…ये रास्ता तो खुद मरीजों को रोकता है।


आपातकालीन ट्रॉमा सेंटर से लेकर चरक भवन, ओपीडी ब्लॉक तक के रास्ते पर वाहनों की कतार लगी है। रैंप, जिन पर स्ट्रेचर या व्हीलचेयर चलनी चाहिए, वहां मेडिकल स्टॉफ से लेकर निजी एंबुलेंस वालों की गाड़ियां खड़ी मिलती हैं।


मुख्य भवनों में प्रवेश करने वाले रैंप और सीढ़ियों पर ही स्ट्रेचर और व्हीलचेयर की जगह दोपहिया वाहनों का कब्जा है। मेरे बाहर खड़े सुरक्षा गार्ड भी बस देखते रहते हैं। यही हाल अन्य भवनों का है। कुछ कर्मचारी तो जहां बैठते हैं, वहीं नजदीक जाकर अपना वाहन खड़ा करते हैं।


बाहर की तस्वीरें कुछ और कहती हैं


मेरे अंदर आपको हर विभाग में विशेषज्ञ डॉक्टर मिलेंगे। आईसीयू, कार्डियोलॉजी लैब, न्यूरोसर्जरी, ऑपरेशन थियेटर किसी निजी अस्पताल से कम नहीं। यहां का नर्सिंग स्टाफ और अन्य स्टाफ दक्ष है। मैं दिन-रात लोगों की सेवा कर रहा हूं। मगर मेरी यह क्षमता उस समय नजर नहीं आती, जब बाहर मेरे ही सामने गंदगी, अतिक्रमण और अव्यवस्था का मंजर होता है।


खाने के नाम पर गंदगी


चारों और गुमटियों और तेलों से उठती दुर्गंध मुझ पर ही सवाल उठाती हैं। न जांच होती है, न कोई निगरानी। मरीज, उनके तीमारदार और कई बार तो स्टॉफ यहीं खाते हैं…और फिर नया रोग लेकर लौटते हैं।


आपकी भी तो जिम्मेदारी है?


मेरी छवि सिर्फ मेरे भीतर नहीं, मेरे बाहर से भी बनती है। यदि मेरे स्टॉफ के वाहन ही स्ट्रेचर की जगह घेरे रहेंगे, अगर नगर निगम और पुलिस मेरे बाहर ठेले और जाम नहीं हटाएंगे, अगर लोग नियमों की धज्जियां उड़ाएंगे तो में कितना भी कोशिश करूं…मैं बदनाम हो जाऊंगा।

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Published on:
26 Jul 2025 08:31 am
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