Rajasthan Monsoon 2025: कभी बारिश को तरसने वाले राजस्थान में बाढ़ के हालात हो रहे हैं। जिन क्षेत्रों की पहचान सूखे के रूप में की जाती रही है, वहां भारी बारिश के दिन बढ़ गए हैं।
विजय शर्मा
जयपुर। कभी बारिश को तरसने वाले राजस्थान में बाढ़ के हालात हो रहे हैं। जिन क्षेत्रों की पहचान सूखे के रूप में की जाती रही है, वहां भारी बारिश के दिन बढ़ गए हैं। प्रदेश में यह बदलाव बीते एक दशक में हुआ है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के अध्ययन डिकोडिंग इंडियाज चेंजिंग मॉनसून पैटर्न्स मेें यह सामने आया है।
यह अध्ययन वर्ष 1982-2011 की क्लाइमेट बेसलाइन की तुलना में 2012-2022 के आंकड़ों पर किया गया। इसमें देश और कई राज्यों की बारिश की तुलना 1982-2011 और 2012 ये 2022 के बीच की गई है। यह अध्ययन देश की 4419 और राजस्थान की 300 से ज्यादा तहसीलों पर किया गया। राजस्थान की 313 तहसीलों में एक फीसदी से लेकर 79 फीसदी तक बढ़ोतरी सामने आई है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि राजस्थान की कई तहसीलें, जो पहले पानी की कमी से जूझती थीं, अब भारी वर्षा के कारण जलभराव और बाढ़ की समस्या का सामना कर रही हैं। बाड़मेर और जैसलमेर जैसे क्षेत्र रेगिस्तानी जलवायु के लिए जाने जाते हैं। लेकिन यहां बीते 10 सालों में भारी बारिश के दिन बढ़ गए हैं। जैसलमेर में सबसे अधिक 79 फीसदी तक बारिश बढ़ी है। इस बदलते मौसम पैटर्न का असर राजस्थान की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी पड़ रहा है।
अत्यधिक बारिश फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि बेहतर जल प्रबंधन से सूखे की स्थिति में सुधार संभव है। किसानों के लिए यह दोहरी चुनौती है। अध्ययन के सह-लेखक विश्वास चितले के अनुसार सीईईडब्ल्यू ने सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए रणनीतियां विकसित करनी चाहिए। इसमें बाढ़ प्रबंधन, बेहतर जल निकासी प्रणाली, और जलवायु-लचीली कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना शामिल है।
अध्ययन के अनुसार राज्य की 77 प्रतिशत तहसीलों ने जून से सितंबर के दौरान होने वाली बारिश में 10 फीसदी से अधिक की वृद्धि देखी है। कई जगह यह 30 प्रतिशत से भी अधिक रही है। खास बात है कि राष्ट्रीय स्तर पर, 64 प्रतिशत तहसीलों में पिछले 30 वर्षों की तुलना में भारी बारिश के दिनों में 15 दिनों तक की वृद्धि देखी गई। लेकिन राजस्थान में यह बदलाव सबसे अधिक रहा है।
-40 वर्षों (1982-2022) में नई दिल्ली, बेंगलूरु, नीलगिरि, जयपुर, कच्छ और इंदौर जैसे 23 प्रतिशत जिलों ने कम और अत्यधिक वर्षा वाले वर्ष देखे हैं।
-पिछले दशक (2012-2022) में 55 प्रतिशत तहसीलों ने दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली बारिश में बढ़ोतरी हुई।
-11 प्रतिशत तहसीलों में 1982-2011 की तुलना में बारिश में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट।
-राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में पारंपरिक रूप से सूखे वाली तहसीलों में सांख्यिकीय रूप से बारिश में वृद्धि।
-जिन तहसीलों में दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली बारिश घटी है, उनमें से 68 प्रतिशत तहसीलों में दक्षिण-पश्चिम -मानसून के सभी महीनों यानी जून से सितंबर तक वर्षा घटी है।
-87 प्रतिश तहसीलों में केवल जून और जुलाई के शुरुआती मानसूनी महीनों में बारिश में गिरावट देखी गई।
-पिछले दशक में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान भारत की 64 प्रतिशत तहसीलों में भारी वर्षा वाले दिनों की आवृत्ति बढ़ी।
-भारत में 48 प्रतिशत तहसीलों में अक्टूबर के दौरान बारिश में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि।
जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के पैटर्न में यह बदलाव आ रहा है। राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में बारिश की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि चिंताजनक है। यह न केवल बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है, बल्कि जल प्रबंधन और कृषि जैसे क्षेत्रों के लिए भी नई चुनौतियां पेश करता है।
-श्रवण प्रभु, सीईईडब्ल्यू के शोधकर्ता