Rajasthan ICT Lab : राजस्थान के सरकारी स्कूलों में आइसीटी लैब कब बनेगी? केन्द्र सरकार बजट तो दे रही है, पर अफसर लगातार खेल कर रहे हैं। तीन बार निविदा निरस्त हो चुकी, अब चौथी बार फिर वही गड़बड़ी की गई। जानें क्या है पूरा मामला।
Rajasthan ICT Lab : राजस्थान के सरकारी स्कूलों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला (आइसीटी लैब) की स्थापना के लिए केन्द्र सरकार बजट तो दे रही है, लेकिन बच्चों के भविष्य संवारने की योजना में लाभ तलाशने की अफसरों की फितरत से इसकी स्थापना फिर लटक गई है। आलम यह है कि स्कूलों में लैब के लिए जारी किए जा रहे 350 करोड़ रुपए का टेंडर लगातार विवादों के चलते धरातल पर नहीं उतर पा रहा है।
गड़बड़ियों के चलते तीन बार टेंडर निरस्त होने के बाद चौथी बार फिर वही गलती दोहराई जा रही है। जिन फर्मों की गड़बड़ी के चलते पिछले टेंडर को निरस्त किया गया, फिर उन्हीं फर्मों को नियम-विरुद्ध फायदा पहुंचाया जा रहा है। अफसरों ने इसके लिए नियम-कायदों को ताक पर रख दिया है। तकनीकी योग्यता शर्तें पूरी नहीं करने वाली और दस्तावेज पूरे नहीं करने वाली फर्मों को टेंडर प्रक्रिया में शामिल कर लिया। अब शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुंचने के बाद 350 करोड़ का टेंडर फिर विवादों की भेंट चढ़ गया है।
पिछली बार निविदा में तीन कंपनियों ने गलत वित्तीय दस्तावेज पेश किए। प्रारंभिक स्तर पर ही इन तीनों कंपनियों को खारिज करने के बजाय अफसरों ने इसे नजरअंदाज कर क्रय समिति पर दबाव बनाकर तकनीकी निविदा खोल दी। समग्र शिक्षा में आइसीटी लैब लगाने के उपकरणों की खरीद के लिए जेम पोर्टल से ही निविदा जारी करने के निर्देश है।
केन्द्र ने इस संबंध में आदेश जारी कर रखे हैं। विभाग ने कंपनियों को फायदा देने के लिए ई-प्रोक पर निविदा जारी कर दी। विभाग की ओर से बार-बार टर्न ओवर शर्तें बदली गई।
एनईपी के तहत सरकारी स्कूलों में आइसीटी लैब की स्थापना की जा रही है। केन्द्र और राज्य सरकार के सहयोग से बच्चों को आधुनिक तकनीक का ज्ञान देने के लिए ये लैब लगाई जा रही हैं। इन लैस का उद्देश्य छात्रों को डिजिटल शिक्षा से जोड़ना, कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग सिखाना है। स्टार प्रोजक्ट के तहत लैब स्थापित की जाती है और इनमें शिक्षा विभाग के स्थायी शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं।
इसके अलावा कैन्द्र की एमएचआरडी स्कीम के तहत जो आइसीटी लैब लगाई जाती हैं, उनमें संविदा पर कंप्यूटर शिक्षक लगाए जाते हैं। दूसरे राज्यों में इस तरह की लैब स्थापित हो चुकी हैं।
1- मैन्युफैचरर ऑथराइजेशन फॉर्म ड्राफ्ट के अनुसार नहीं, निविदा में फर्मों ने खुद के हिसाब से शर्तें डाली।
2- शर्तों में सशर्त डेस्कटॉप आइटम का उल्लेख, उसकी जगह फर्म ने मनमर्जी से दूसरे आइटम भर दिए।
3- निविदा में जो वर्क एक्सपीरियंस, वह कम जगह का है, जो लोकेशन की शर्त पूरी नहीं करता।
4- टेंडर शर्तों में सरकारी स्कूल, कॉलेज और संस्थान का वर्क अनुभव मांगा, जबकि फर्मों की ओर से दिया गया कार्य अनुभव को-ऑपरेटिव बैंक का है जो कि अमान्य है।
5- एंटी-वायरस में अलग से शर्त जोड़ी हुई है और जबकि सशर्त एंटी वायरस आइटम कोट किया है।
6- फर्म ने हेडफोन के स्थान पर वेब कैमरा का आरओएचएस सर्टिफिकेट दिया हुआ है जो कि अमान्य है।
7- बिड पार्टिसिपेट करने के लिए 25,000 रुपए के स्टाम्प पेपर पर बैंक गारंटी होनी चाहिए लेकिन बिडर ने 150 रुपए के स्टाम्प पेपर पर दी है। फिर भी तकनीकी रूप से फर्म को योग्य मान लिया।
8- फर्मों का कार्य अनुभव तय निविदा शर्तों के अनुसार नहीं है।
9- फर्मों ने इंटरैक्टिव फ्लैट-पैनल डिस्प्ले में जो वर्क एक्सपीरियंस लगाया हुआ है वह सबमिट कराए हुए वर्क क्पलीशन सर्टिफिकेट की डेट से मैच नहीं कर रहा।
10- डेस्कटॉप में फर्मों ने दो कंपनियों के ऑथोराइजेशन सर्टिफिकेट लगाए हुए हैं, जो कि पूरी तरह से टेंडर नियमों की अवहेलना है और कोई भी बिडर एक आइटम के लिए सिर्फ एक ही ऑथोराइजेशन दे सकता है।
शिकायतों के बाद पिछली बार टेंडर प्रक्रिया निरस्त करवाई गई थी। इस बार जो शिकायतें आ रही हैं उन्हें फाइनेंस के अफसरों से जांच करा रहे हैं। जांच के बाद अगर गलत मिलता है तो कार्यवाही करेंगे।
मदन दिलावर, शिक्षा मंत्री