विशेषज्ञ मानते हैं कि कैंसर का इलाज इंतजार नहीं करता। इलाज का हर दिन मरीज के जीवन से जुड़ा होता है। ऐसे में सरकार को तत्काल व्यवस्था बनानी चाहिए कि गंभीर मरीजों को प्राथमिकता से अनुमति दी जाए।
RGHS: राजस्थान में गंभीर के मरीजों के लिए लाइफ लाइन बनने के स्थान पर राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) अब उनके लिए इंतजार और बेबसी की कहानी बनती जा रही है। कैंसर जैसे असाध्य रोग से जूझ रहे मरीज दवाओं और थैरेपी से पहले सरकारी मंजूरी के कागजी जाल में उलझ रहे हैं। इलाज जहां मिनटों की देर बर्दाश्त नहीं करता, वहीं यहां मरीजों को एक सप्ताह से लेकर दस दिन और कभी-कभी उससे भी अधिक समय मेडिकल बोर्ड और अनुमति की प्रक्रिया में खपाना पड़ रहा है।
आरजीएचएस कार्यालयों में कैंसर मरीजों को बुलाया जा रहा है। किसी के दवा की अनुमति के कागज अधूरे बताए जा रहे है, तो किसी को मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का इंतजार करने को कहा जा रहा है। दूसरी ओर, बोर्ड बनाने की प्रक्रिया भी किसी परीक्षा से कम नहीं। कई अस्पतालों में डॉक्टरों के छुट्टी पर रहने से बोर्ड की बैठकें टल रही है। नतीजतन मरीजों की फाइलें अगली बैठक के नाम पर अटक रही हैं।
आरजीएचएस के तहत कैंसर, हार्ट, किडनी और अन्य असाध्य बीमारियों के लिए महंगी दवाओं और थैरेपी का खर्च राज्य सरकार उठाती है, लेकिन इसके लिए पहले मेडिकल बोर्ड की मंजूरी और फिर आरजीएचएस दफ्तर से अनुमति जरूरी है। यह व्यवस्था मरीज के हित में बनी थी, लेकिन अब यह उनकी तकलीफ का कारण बन रही है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि कैंसर का इलाज इंतजार नहीं करता। इलाज का हर दिन मरीज के जीवन से जुड़ा होता है। ऐसे में सरकार को तत्काल व्यवस्था बनानी चाहिए कि गंभीर मरीजों को प्राथमिकता से अनुमति दी जाए। जरूरत हो तो ऑनलाइन बोर्ड प्रक्रिया या आपात अनुमति तंत्र शुरू किया जाए, ताकि इलाज में देरी से कोई जान न जाए।
जयपुर के एक निजी अस्पताल में इलाज करवा रहे 82 वर्षीय बुजुर्ग के परिजनों ने बताया कि दवा लगनी थी, लेकिन आरजीएचएस से अनुमति के लिए छह दिन से इंतजार करना पड़ रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि आरजीएचएस कार्यालय की ओर से मेडिकल बोर्ड का गठन कर 6 अक्टूबर को पत्र एसएमएस मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया। लेकिन वहां बोर्ड की प्रक्रिया तीन दिन में भी पूरी नहीं हुई। जानकारी करने पर उन्हें बताया गया डॉक्टर अवकाश पर हैं, ऐसे में उनके इलाज की अनुमति सोमवार तक ही मिल पाएगी।
मेडिकल बोर्ड के लिए जो भी फाइल आती है, उसको समय में स्वीकृत कर दिया जाता है। कुछ मामलों में संबंधित डॉक्टर की उपलब्धता नहीं होने के कारण देरी हो जाती है, लेकिन गंभीर मामलों में दूसरा मेडिकल बोर्ड बनाने के निर्देश है। देरी वाले मामलों की जांच कर सुधार किया जाएगा। दीपक माहेश्वरी, प्राचार्य व नियंत्रक एसएमएस मेडिकल कॉलेज