Artificial Intelligence Environmental Impact: हम सभी इनडायरेक्टली इसके लिए जिम्मेदार। डेटा सेंटर्स को ठंडा करने में हो रही पानी की खपत।
मोहित शर्मा.
AI Water Consumption: जयपुर. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की बढ़ती भूख ने पर्यावरण को नया झटका दिया है। एक नई रिसर्च के अनुसार, 2025 में एआई सिस्टम्स की पानी की खपत वैश्विक बोतलबंद पानी की कुल खपत से ज्यादा हो गई है। डेटा सेंटर्स में एआईसर्वर्स को ठंडा रखने और बिजली उत्पादन के लिए अरबों लीटर पानी खर्च हो रहा है, जो जल संकट को और गहरा सकता है। ये स्टडी सिर्फ चेतावनी है। एआई का फायदा तो है, लेकिन पर्यावरण की कीमत कौन चुकाएगा ये बड़ा सवाल है?
स्टडी में आया सामने2025 AI Study
डच रिसर्चर एलेक्स डी व्रीस-गाओ की पीयर-रिव्यूड स्टडी "The carbon and water footprints of data centers and what this could mean for artificial intelligence" (जर्नल Patterns में पब्लिश) ने पहली बार AI-स्पेसिफिक प्रभाव को अलग से मापा। कई बड़ी कंपनियों के एनवायरनमेंटलरिपोर्ट्स और एनालिस्ट अनुमानों के आधार पर पानी की खपत बताई है।
एआई की पानी खपत:312.5 से 764.6 बिलियन लीटर (डायरेक्ट कूलिंग + इंडायरेक्ट बिजली उत्पादन से)।
तुलना: वैश्विक बोतलबंद पानी खपत करीब 446 बिलियन लीटर सालाना।
कार्बन फुटप्रिंट: 32.6 से 79.7 मिलियन टन सीओटू, जो न्यूयॉर्क सिटी जितना है।
रिसर्चर कहते हैं, कंपनियां एआई और नॉन एआई वर्कलोड का पानी/कार्बन अलग-अलग नहीं बतातीं, इसलिए अनुमान हैं लेकिन ये बहुत बड़ा है। ये आंकड़े डच रिसर्चर की स्टडी से हैं, जो दिसंबर 2025 में पब्लिश हुई। स्टडी में स्पष्ट कहा गया है कि ये 2025 के लिए कुल अनुमान हैं पावर डिमांड और हार्डवेयर ग्रोथ को देखते हुए)। ये दैनिक या मासिक नहीं, बल्कि वार्षिक हैं। अगर रोजाना देखें तो औसतन 500 बिलियन लीटर प्रति दिन है। जो पर्यावरण पर बड़ा असर है। ये खपत वैश्विक स्तर पर अनुमानित है।
डेटा सेंटर्स में एआई चिप्स (जैसे जीपीयू) भारी गर्मी पैदा करते हैं। कूलिंग टावर्स और लिक्विड कूलिंग के लिए पानी इस्तेमाल होता है। साथ ही, बिजली बनाने (कोल/गैस प्लांट्स) में भी पानी खर्च। इंडायरेक्ट खपत आधिकारिक अनुमानों से 3-4 गुना ज्यादा निकली।
दुनिया भर में लोग सालाना 446 बिलियन लीटर बोतलबंद पानी पीते हैं। एआई अकेला इससे ज्यादा 'पी' रहा है। प्लास्टिक कचरे की तरह जल संकट भी बढ़ा रहा है।
एरिजोना : 2024 में मेसा और मारिकोपा काउंटी में गूगल प्रति वर्ष 5.5 मिलियन क्यूबिक मीटर (लगभग 1.45 बिलियन गैलन) पानी का उपयोग करता है, जो 23,000 स्थानीय निवासियों की वार्षिक खपत के बराबर है।
उरुग्वाय : 2024 में गूगल के डेटा सेंटर ने 74 साल के सबसे खराब सूखे के बीच जल संकट को और गहरा किया, जिससे स्थानीय समुदायों में विरोध प्रदर्शन हुए।
भारत : बेंगलुरु में 2024 तक डेटा सेंटर्स की जल खपत प्रतिदिन 8 मिलियन लीटर रही, और 2025 में यह और बढऩे की संभावना है, क्योंकि भारत में डेटा सेंटर्स की संख्या बढ़ रही है। यह शहर के जल संकट को और गंभीर बना रहा है।
एक बड़ा डेटा सेंटर हजारों घरों जितना पानी रोज खर्च करता है। एआई बूम से ये दोगुना हो रहा। इससे सूखे इलाकों में पानी की लड़ाई बढ़ेगी।
ट्रांसपेरेंसी बढ़ाएं, रिन्यूएबल एनर्जी अपनाएं। रिसर्चर की मांग एआई -स्पेसिफिक डेटा पब्लिश करें, वरना जल और क्लाइमेट क्राइसिस गहराएगा।
एआई से हम जितने सवाल पूछते हैं या उसका उपयोग करते हैं, उसमें इनडायरेक्टली पानी की खपत होती है। ये खपत डेटा सेंटर्स में मशीनों को ठंडा करने में होती है। इसमें कार्बन इमीशन ज्यादा होते हैं। एआई का हमने समुचित प्रयोग नहीं किया तो आने वाले समय में यह खतरा बन सकता है। खासकर राजस्थान जैसे प्रदेशों के लिए।
प्रो. लक्ष्मीकांत शर्मा, पर्यावरणविद्, राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर