जयपुर

राजस्थान में बिना मंजूरी 3200 मेगावाट के टेंडर जारी; आखिर किसके लिए इतनी मेहरबानी, फैसला आने का इंतजार क्यों नहीं?

राजस्थान में 3200 मेगावाट बिजली खरीद अनुबंध (प्लांट) के लिए राज्य विद्युत विनियामक आयोग की मंजूरी से पहले ही ऊर्जा विकास निगम ने टेंडर जारी कर दिए।

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Oct 09, 2025
फोटो सोर्स: पत्रिका

जयपुर। राजस्थान में 3200 मेगावाट बिजली खरीद अनुबंध (प्लांट) के लिए राज्य विद्युत विनियामक आयोग की मंजूरी से पहले ही ऊर्जा विकास निगम ने टेंडर जारी कर दिए। इससे सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं। आयोग में इस अनुबंध से जुड़ी याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और अभी तक फैसला सुरक्षित है।

सूत्रों के मुताबिक निगम ने याचिका के दौरान मौखिक रूप से आयोग से टेंडर जारी करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन आयोग ने इसे मंजूरी नहीं दी थी। इसके बावजूद निगम ने 25 साल की अवधि वाले इस अनुबंध के लिए टेंडर जारी कर दिए। इससे यह सवाल उठने लगा है कि निगम ने आखिर इतनी जल्दबाजी किसके लिए दिखाई और किसे लाभ पहुंचाने की तैयारी की जा रही है?

इस आकलन पर जारी की निविदा

ऊर्जा विकास निगम ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की रिसोर्स एडिक्वेसी रिपोर्ट के आधार पर 3200 मेगावाट क्षमता के लिए निविदा जारी की। रिपोर्ट में वर्ष 2031-32 तक राजस्थान की अनुबंधित बिजली क्षमता की आवश्यकता 20532 मेगावाट (19710 मेगावाट कोयला और 822 मेगावाट गैस) आंकी गई थी। डिस्कॉम्स ने राज्य में 6897 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की जरूरत बताई थी, जिसमें से 3756 मेगावाट पहले ही केंद्र सरकार की कंपनियों व अन्य स्रोतों से सुनिश्चित की जा चुकी। बाकी 3141 मेगावाट की पूर्ति के लिए यह निविदा जारी की गई।

आकलन बदला, लेकिन संशोधन नहीं

इसके बाद सीईए ने वास्तविक बिजली मांग के रुझानों को ध्यान में रखते हुए अनुमानों में संशोधन कर दिया। नई संशोधित रिपोर्ट (वित्त वर्ष 2025-26 से 2035-36) में राजस्थान की आवश्यकता घटाकर 16561 मेगावाट (15960 मेगावाट कोयला और 601 मेगावाट गैस) आंकी गई है।
(विशेषज्ञ डी.डी. अग्रवाल और सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड पीपल के अंशुमन गोठवाल के अनुसार)

बिड में शामिल

-3200 मेगावाट के लिए 800-800 मेगावाट की चार यूनिट लगाना प्रस्तावित
-42 माह के भीतर पहली यूनिट शुरू होगी और इसके बाद की यूनिट का संचालन 6 महीने के अंतराल में
-60 प्रतिशत (11.11 मैट्रिक टन) कोयला मांड रायगढ़ और 40 प्रतिशत (5.78 मैट्रिक टन) कोरबा फील्ड से आवंटित किया कोयला मंत्रालय ने

ये सवाल, जो मांग रहे जवाब

-तकनीक लगातार बदल रही है और बिजली उत्पादन की लागत घट रही है, ऐसे में 25 साल का अनुबंध क्यों? जबकि बाजार में सस्ती दरों पर विकल्प उपलब्ध होंगे।

-दिन में पर्याप्त मात्रा में सोलर एनर्जी उपलब्ध है, तो फिर 24 घंटे बिजली खरीदने का अनुबंध क्यों? केवल पीक ऑवर्स के लिए अनुबंध ही पर्याप्त है।

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