सीमावर्ती जिले में अवैध खनन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। अवैध खनन जैसलमेर, मोहनगढ़ और पोकरण तीनों इलाकों की सबसे बड़ी समस्या बन गया है।
सीमावर्ती जिले में अवैध खनन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। अवैध खनन जैसलमेर, मोहनगढ़ और पोकरण तीनों इलाकों की सबसे बड़ी समस्या बन गया है। सरहद से सटा जैसलमेर जिला पीले पत्थर, जिप्सम और सेंड स्टोन जैसे बहुमूल्य खनिजों के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इन्हीं खनिजों की चोरी-छिपे खुदाई ने जैसलमेर की धरोहर, पर्यावरण और स्थानीय जीवनशैली पर गहरा संकट खड़ा कर दिया है। शहर के समीप पहाड़ी क्षेत्र, अमरसागर और बड़ा बाग क्षेत्र की सरकारी जमीनों से बेशकीमती पीला मार्बल निकाला जा रहा है। उधर, अवैध खनन से फॉसिलीफेरस लाइन स्टोन के ब्लॉक खत्म होते जा रहे हैं। मोहनगढ़ क्षेत्र का हाल भी जुदा नहीं है। हमीरनाडा इलाके में जिप्सम का अवैध खनन आए दिन देखने को मिल रहा है। दिन में ट्रैक्टर और रात में भारी ट्रक-ट्रेलर जिप्सम निकालकर अन्यत्र सप्लाई कर रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार अब गांवों के बीच खुलेआम खुदाई हो रही है। सरकार को लाखों रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है, जिसे सख्त कार्रवाई से रोका जा सकता है।
पोकरण का उत्तर क्षेत्र भी अवैध खनन की चपेट में है। कैलाश टेकरी, डिडाणिया, पुरोहितसर और एकां की पहाड़ियों पर लगातार खुदाई चल रही है। भाखरी गांव के आसपास बड़े पत्थर निकालकर बाजारों में बेचे जा रहे हैं। फलसूंड और नाचना क्षेत्र में भी जिप्सम का अवैध खनन ग्रामीणों की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। पहाड़ियों के कटने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है और वर्षा जल का प्रवाह रुकने से खेतीबाड़ी पर भी असर पड़ने लगा है।
खनिज विभाग की ओर से दावा किया गया है कि अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए कार्रवाई जारी है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, हाल ही में 69 कार्रवाई की गईं और 73 लाख रुपए का जुर्माना वसूला गया। खनि अभियंता घनश्याम चौहान के अनुसार शिकायत मिलते ही तुरंत कार्रवाई होती है, लेकिन यह सवाल जस का तस बना हुआ है कि अगर कार्रवाई इतनी सख्त है, तो खनन क्यों नहीं रुक रहा।
केवल जुर्माना और मशीन जब्त करने से समस्या का स्थायी हल नहीं निकलेगा। अवैध खनन पर रोक के लिए दीर्घकालिक नीति जरूरी है।-ड्रोन सर्वे और तकनीकी निगरानी को अनिवार्य बनाया जाए, ताकि हर गतिविधि पर नजर रखी जा सके।- स्थानीय समुदाय को निगरानी में शामिल किया जाए। पर्यावरणीय मूल्यांकन को प्राथमिकता दी जाए, ताकि यह तय हो सके कि खनन कहां तक और किस सीमा तक संभव है।