जैसलमेर

धरोहरों को संरक्षण मिले तो बुझे प्यास, परंपरागत पेयजल स्रोतों पर संकट

झलारिया ग्राम पंचायत के हनुमानपुरा में स्थित ऐतिहासिक हनुमानबेरा कुंआ, जो कभी आसपास के गांवों की प्यास बुझाता था, अब उपेक्षा का शिकार हो गया है।

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Mar 30, 2025

झलारिया ग्राम पंचायत के हनुमानपुरा में स्थित ऐतिहासिक हनुमानबेरा कुंआ, जो कभी आसपास के गांवों की प्यास बुझाता था, अब उपेक्षा का शिकार हो गया है। प्रशासन और ग्रामीणों की अनदेखी के चलते यह परंपरागत जलस्रोत धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रहा है। मारवाड़ क्षेत्र में जल प्रबंधन और पशुपालन की परंपरा सदियों पुरानी है। ग्रामीणों ने कभी अकाल से निपटने के लिए कुंए और तालाबों का निर्माण कराया था, लेकिन जलदाय विभाग की पाइपलाइन और जीएलआरों की व्यवस्था के बाद लोगों का रुझान इन पारंपरिक जलस्रोतों से कम हो गया। परिणामस्वरूप, हनुमानबेरा कुंआ और इससे जुड़ा पशुकुंड अब क्षतिग्रस्त हो चुका है।

ऐतिहासिक महत्व, लेकिन नहीं हो रहा संरक्षण

सैकड़ों साल पहले लाल पत्थरों से निर्मित यह कुंआ झलारिया, हनुमानपुरा, नरसिंहपुरा, भाखरी, धूड़सर, मेड़वा जैसे कई गांवों की जल आवश्यकता पूरी करता था। ग्रामीण सामूहिक प्रयासों से इसकी सफाई और मरम्मत करते थे, लेकिन अब इसमें रेत भर चुकी है और कुंआ क्षतिग्रस्त हो रहा है।

हो रख-रखाव, तो बच सकता है कुंआ

जानकारों का मानना है कि इसकी खुदाई, मरम्मत और संरक्षण के प्रयास करे, तो इस ऐतिहासिक पेयजल स्रोत को बचाया जा सकता है। ग्रामीणों और प्रशासन को मिलकर इसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, ताकि यह विरासत अगली पीढिय़ों तक सुरक्षित रह सके।

Published on:
30 Mar 2025 10:55 pm
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