भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जिले में कई देवी मंदिर है। इनमें से कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिनकी ख्याति देश के कोने-कोने तक है और वर्षपर्यंत हजारों श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते है।
भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जिले में कई देवी मंदिर है। इनमें से कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिनकी ख्याति देश के कोने-कोने तक है और वर्षपर्यंत हजारों श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते है। इन्हीं में से एक है रेतीले धोरों के बीच स्थित भादरियाराय माता का मंदिर। उपखंड मुख्यालय पोकरण से करीब 50 व जिला मुख्यालय जैसलमेर से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज के पास स्थित शक्ति व भक्ति के केन्द्र भादरियाराय माता मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है। यहां माता के सात बहिनों के स्वरूप की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के चलते पूरे वर्ष यहां श्रद्धालुओं की आवक जारी रहती है। विशेष रूप से नवरात्रा के दौरान यहां मेले का आयोजन किया जाता है। शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मौके पर आयोजित होने वाले मेले में हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचकर माता के मंदिर में शीष नवाते है।
धार्मिक मान्यताओं व दंत कथाओं के अनुसार मंदिर के पास आबादी में वर्षों पूर्व भादरिया नाम से राजपूत व्यक्ति निवास करता था और वह व उसका पूरा परिवार भादरियाराय माता के अनन्य भक्त थे। भक्ति की चर्चा सुनकर मध्यप्रदेश के तत्कालीन महाराजा भादरिया आए। यहां माता की सात बहिनों ने भाई के साथ दर्शन दिए। मान्यता है कि संवत् 1885 में जैसलमेर व बीकानेर शासकों के बीच जब युद्ध हुआ, तब भादरियाराय माता ने कई चमत्कार भी दिखाए। जिसके बाद तत्कालीन महारावल गजसिंह ने भादरिया में मंदिर का निर्माण करवाया। विक्रम संवत् 1888 आश्विन माह की पूर्णिमा को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई। संवत् 1969 माघ शुक्ल चतुर्दशी को पूर्व महारावल शालीवान ने भादरिया माता को चांदी का सिंहासन भेंट किया।
हरियाणा क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हरवंशसिंह निर्मल ने गोवंश की तस्करी को रोकने का कार्य किया और भादरिया में स्थित माता मंदिर में ही रुक गए। उन्होंने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। साथ ही गोवंश के लिए गोशाला की स्थापना की। इसी के चलते उन्हें भादरिया महाराज के नाम से ख्याति मिली। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर में दर्शनों के साथ समाधि के भी दर्शन करते है। मंदिर परिसर में ही भादरिया महाराज का मंदिर बनाया गया है।
संत भादरिया महाराज ने रेतीले धोरों के बीच ज्ञान के भंडार के रूप में भूमिगत पुस्तकालय की भी स्थापना की, जिसमें वर्तमान में 1 लाख से अधिक पुस्तकें संग्रहित की गई है। यह एशिया के बड़े पुस्तकालयों में शुमार है। इसके अलावा एक साथ 4 हजार लोगों के बैठने व पुस्तकों के अध्ययन की व्यवस्था की गई है।
भादरिया में स्थित गोशाला में 35 हजार से अधिक गोवंश का संरक्षण किया जा रहा है। 1.10 लाख बीघा क्षेत्रफल में फैली गोशाला में गायों के साथ विशेष रूप से बैलों को रखा गया है। जिनके लिए चारे, पानी आदि की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा क्षेत्र में कहीं पर भी बीमार या घायल गोवंश की सूचना पर गोशाला के वाहन से नि:शुल्क यहां लाकर भर्ती किया जाता है और उसका उपचार किया जाता है।