जैसलमेर

अक्टूबर-नवंबर में शुरू होगी आवक, कई संकटग्रस्त प्रजाति के गिद्ध भी डालते है डेरा

देश में लुप्त हो रही प्रजाति के कई गिद्ध अक्टूबर-नवंबर माह में क्षेत्र में डेरा डालेंगे। सर्दी के मौसम में सरहदी जिले में गिद्धों की आवक होती है और चार से पांच माह तक प्रवास करते है।

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Sep 06, 2025

देश में लुप्त हो रही प्रजाति के कई गिद्ध अक्टूबर-नवंबर माह में क्षेत्र में डेरा डालेंगे। सर्दी के मौसम में सरहदी जिले में गिद्धों की आवक होती है और चार से पांच माह तक प्रवास करते है। हिमालय के उस पार से आने वाले दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों की आवक अगले माह शुरू होने वाली है। मध्य एशिया, यूरोप, तिब्बत आदि शीत प्रदेशों से पश्चिमी राजस्थान की तरफ आने वाले दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों का वन्यजीवप्रेमी भी इंतजार कर रहे है। सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ उनके आने का दौर शुरू हो जाएगा। गौरतलब है कि प्रतिवर्ष अक्टूबर माह के दूसरे पखवाड़े से नवंबर माह की शुरुआत में दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों का पहला जत्था यहां पहुंचता है। मध्य एशिया, यूरोप, तिब्बत सहित अन्य प्रदेश, जहां अक्टूबर माह में गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है, वहां से दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध उड़ान भरकर पश्चिमी राजस्थान में पहुंच जाते है। अक्टूबर से फरवरी माह के अंतिम सप्ताह तक उनके लिए यहां अनुकूल शीत का मौसम रहता है।

यहां डालते है पड़ाव

गिद्ध पशु बाहुल्य क्षेत्रों में ही अपना डेरा डालते है, ताकि उन्हें भोजन की तलाश के लिए भटकना नहीं पड़े। जैसलमेर जिले में कई जगहों पर पशु बाहुल्य क्षेत्रों में ये गिद्ध अपना डेरा डालते है। विशेष रूप से प्रवासी गिद्ध ओढ़ाणिया, लाठी, भादरिया, लोहटा, खेतोलाई गांव के आसपास अपना पड़ाव जमाते है, ताकि यहां मृत पशु और भोजन मिल सके।

इन प्रजातियों की होती है आवक

क्षेत्र में प्रतिवर्ष ग्रिफान, सिनेरियस, यूरेशियन, इजिप्शियन गिद्धों के झुंड प्रवास पर आते है। इसी प्रकार सफेद पीठ वाला गिद्ध, भारतीय गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध भी आते है। ये गिद्ध स्थानीय की श्रेणी में आते है और इनकी प्रजाति गंभीर रूप से खतरे में भी है।

गिद्धों के लिए यह खतरा भी

  • भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जैसलमेर जिले के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन है।
  • फसलों को कीटों व रोगों से बचाने के लिए किसान पेस्टीसाइड का उपयोग करते है।
  • इन्हीं फसलों को खाने से पेस्टीसाइड पशुओं में पहुंचता है और मृत पशु को खाने से गिद्धों में पेस्टीसाइड प्रवेश कर जाता है।
  • पेस्टीसाइड से शारीरिक नुकसान होता है और गिद्धों की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में गिद्ध संकटग्रस्त प्रजाति में जाने लगा है।
  • इसी प्रकार रेल पटरियों के आसपास सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। रेल की चपेट में आने से कई पशुओं की मौत हो जाती है।
  • इन मृत पशुओं को खाने के दौरान गिद्ध रेल की चपेट में आ जाते है। पूर्व में कई बार ऐसे हादसे हो चुके है।
Published on:
06 Sept 2025 10:34 pm
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