हजारों किलोमीटर का सफर तय कर प्रवासी पक्षी कुरजां (डेमोसाइल क्रेन) साइबेरिया से रामदेवरा पहुंच गए हैं।
हजारों किलोमीटर का सफर तय कर प्रवासी पक्षी कुरजां (डेमोसाइल क्रेन) साइबेरिया से रामदेवरा पहुंच गए हैं। लंबा सफर तय करने वाले पक्षी कुरजां न तो अपनी राह भटकते हैं और न ही इनके यहां पहुंचने का समय गड़बड़ाता है। हर साल सितंबर के पहले पखवाड़े में वे यहां पहुंच जाते हैं। इन दिनों सर्दी के मौसम में कुरजां का कलरव से पूरा वातावरण रमणिक बन रहा है।
रामदेवरा के जैन मंदिर के ठीक सामने खुले मैदानी भाग पर कुरजाओं का कलरव देखते ही बन रहा हैं। कुरजां के कलरव के बीच यहां आने वाले यात्री इनको निहारने और दाना देने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
गर्मी की आहट पर धीरे धीरे कुरजां पक्षियों के जोड़े यहां से उडऩे शुरू हो जाते हैं। मार्च से अप्रैल के बीच कुरजां के सभी दल यहां से अपने देश को लौट जाती हैं।
ज्यादातर बड़े तालाबों वाले क्षेत्र में इन पक्षियों का कलरव सुना जा सकता है। जैसे-जैसे तापमान में कमी आ रही है, वैसे-वैसे इन पक्षियों का आना लगातार जारी है। दरअसल चीन, कजाकिस्तान, मंगोलिया आदि देशों में सितंबर के महीने में ही बर्फबारी शुरू हो जाती है। ऐसे में कुरजां पक्षी के लिए सर्दियों का वो मौसम उनके अनुकूल नहीं होता। कड़ाके की ठंड में खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद में हजारों किलोमीटर का सफर तय करके ये कुरजां पश्चिमी राजस्थान का रुख करती हैं।
एकांत प्रिय मिजाज का यह पक्षी अपने मूल स्थानों पर इंसानी आबादी से काफी दूर रहता है। लेकिन जहां डेरा डालते हैं, वहां इंसानी दखल को नापसंद नहीं करते हैं। ग्रामीण भी कुरजां को अपना मेहमान समझकर उनकी पूरी देखभाल एवं सुरक्षा करते हैं।