थार का तपता रेगिस्तान भी सांस्कृतिक उत्साह से ठंडा महसूस होने लगता है, जब गांव-गांव में पारंपरिक उत्सवों की धूम मचती है।
थार का तपता रेगिस्तान भी सांस्कृतिक उत्साह से ठंडा महसूस होने लगता है, जब गांव-गांव में पारंपरिक उत्सवों की धूम मचती है। खास बात यह है कि अब इन आयोजनों की कमान युवा पीढ़ी ने संभाल ली है। ग्रामीण अंचलों में लोक मेलों व धार्मिक आयोजनों में युवाओं की भागीदारी ने उत्सवों को नई पहचान दी है। वे पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते हैं, झांकियों में भाग लेते हैं, मंच का संचालन करते हैं और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से आयोजन को वैश्विक स्तर तक पहुंचा रहे हैं।
पुरानी पीढिय़ों की परंपराएं अब नई पीढ़ी के हाथों में जीवित हो रही हैं। यह बदलाव सिर्फ रूप में नहीं, भावना में भी देखा जा रहा है। जैसलमेर निवासी पूजा ओढ़ बताती है कि बचपन में केवल झूले और चाट की खुशी थी, अब हम खुद मेले की व्यवस्थाओं में शामिल होते हैं। इस बार मैंने महिलाओं की पारंपरिक प्रतियोगिता का संचालन किया। इस काम से आत्मविश्वास बढ़ा और संस्कृति से जुड़ाव भी। इसी तरह सिद्धार्थ कुमार का कहना है कि हमने इस बार धार्मिक आयोजन का प्रोमो वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर प्रचार किया। शहरों से भी लोग आने लगे हैं। अब हम हर आयोजन को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी तरह गीता बिश्नोई, ने बताया कि पहली बार लोकनृत्य में भाग लिया और अपनी सहेलियों के साथ मिलकर पूरी प्रस्तुति तैयार की। परिवार ने बहुत सराहना की। हमें गर्व है कि हम परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी तरह महावीर दईया का कहना है कि हम गांव में मेला समिति का हिस्सा हैं। इस बार पानी, छाया और बैठने की व्यवस्था हम युवाओं ने की। सभी ने तारीफ की। अब हर साल कुछ नया करने की प्रेरणा मिल रही है।